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यहाँ पर एक मनुष्य के मस्तिष्क की स्मरणशक्ति के अनुसार सोचे तो आपका कहना उचित जान पड़ता है, किन्तु महर्षि पिप्पलाद ने गर्भोपनिषद में एक शिशु के भीतर प्रवेश कर चुकी जीवात्मा के चिंतन के विषय में बतलाया है। तो संभव है की जीवात्मा की स्मृति, मानव मस्तिष्क की स्मरणशक्ति की तुलना में श्रेष्ठ हो और वह पूर्व के कई जन्मों की स्मृति सहेजे हुए हो।