उपस्थित संख्यात्मक दृष्टि से अल्प दर्शकों से मेरा निवेदन है कि द्वितीय राजभाषा के रूप में संस्कृत को हटाकर "गढ़वाली,कुमाऊँनी,जौनसारी" को द्वितीय राजभाषा को दर्जा देने के बारे में सोचना शुरू करें🙏
प्रस्तावित 22 दिसंबर 24 की रैली में निजी कपड़ों का ग्लैमर रैली के हिसाब से चुने," कौथिग"के हिसाब से नहीं. ...चिपको आंदोलन के दिनों श्रीमती इंदिरा गांधी पौड़ी (1971/72) आयी थी, रैली में आयी सोने-चांदी से लदी महिलाओं को देखकर इंदिरा गांधी के साथ-साथ नौकरशाही भी चौंक गई, 5th schedule का अवसान तभी तय हो गया था, दिल्ली की प्रस्तावित रैली में वास्तविक पहनावे में आयें, आजकल तिरछी धारी वाली नकली टोपी और हिमाचली टोपी चलन में है वस्तुत: ये उत्तराखंड की टोपी नहीं हैं, तिरछी नकली टोपी की जगह "राठियों" की काली,सफेद,ऊनी टोपी ज्यादा आकर्षक होती हैं, उम्रदराज़ लोग ही पहने, हमारा स्वतंत्रता पूर्व का पहनावा भी है,उस पर भी विचार हो
टौखड़िबाज, सुसगरिबाज,बेढंगे नचाड़," पहाड़ी मीत किसके,भात खाए खिसके" 99.99% कुपढ़ या अनपढ़,जलनखोर लोग हैं उत्तराखंड के,.. इस अच्छी मुहिम को असफलता की ओर ही बढ़ा रहे हो पढ़े लिखे विद्वान,..कालिदास को कैसे बीच में घुसेड़ दिए हो साहेब, कौन कालीदास? मैंने अपने गांव के डिग्रीधारी लड़कों को पूछा कालिदास के बारे में, .. कोई नहीं जानता, भले ही उत्तराखंड ने संस्कृत को राजभाषा बनाया है, फिर वही ..." देवभूमि के देवता"🤣🤣🤣 होने के सर्वश्रेष्ठता के दावे?... 🤣🤣 जंगल में मोर नाचा किसने देखा?🤣🤣🤣 ये भी बोल दो कि राम,श्याम सब उत्तराखंड के ही हैं,इतनी सर्वश्रेष्ठ बिरादरी! हंसी आती है, फिर मिलेगा ST 🤣🤣🤣🤣 क्या!
विश्व की सबसे दबंग क़ौम "जाट" राजस्थान और दिल्ली के ओबीसी के केंद्रीय और राज्य सूची में है, उत्तराखंड में भी राज्य और केंद्रीय सूची में है, मसला भारतवर्ष में solved नहीं होगा, UN में जाना पड़ेगा, अंग्रेजी और अंग्रेजों की किताबें काम आएँगी, "देवभूमि के देवता और उनके औलाद" का narrative इस आंदोलन की रुकावट बन गई है,
जो लिखूँगा सच लिखूँगा समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में "चिट्ठियों" के माध्यम से p singh के प्रधानमंत्रित्व काल के जातिवादी मंडल कमीशन के प्रकटीकरण पर उत्तराखंड के लिए लिखने की मजबूरी थी, क्योंकि तत्कालीन OBC list में उत्तराखंड की पहाड़ी जनसंख्या नगण्य थी, भूमि सम्पन्न यादव,कुर्मी,कुशवाहा आदि आदि दबंग जातियां थी, देशबंधु कालेज के जूनियर साथी "राजीव गोस्वामी" का तथाकथित मंडल कमीशन का विरोध करने वाले पहला आत्मबलिदान/ दाह को देखा है,