।।अखण्ड सारशबद मार्ग दर्शन-संतो की वाणी।।अमरलोक से उतरे, सतगुरु सत कबीर। जलज माहि पौढन किये, दोऊ दीनन के पीर।।हाड मांस लहू की देह नही मेरा, कोई जानेगा सारशबद जिज्ञासी। तारण तरण अभय पद का दाता, ऐसा हूँ मै कबीर अविनाशी।।00।।जगत दिखावे को किया हमने अपना गुरु रामानंद। सतगुरु हमारा सारशबद अखण्ड है, जो हमेशा हमारे रहता संग।।कोटि नाम संसार मे, ताते मुक्ती ना होय। आदि नाम जो सुगुप्त जप, बूझे विरला कोय।।सारशबद सुमिरण करे, सतगुरु पद निज निर्वाण। परममात्मा अनुभूति और जीव दया जो करे, उसकी मुक्ती निश्चित जान।।01।।कहत साँई अरुण जी महाराज अपने सतसंग मे, मेरा लगाव उस एक परमपिता परमेश्वर एक से है, वही एक सब मे माहि। सब आत्मा परमात्मा मे परमपिता मै सबका, अब दूसर कोई नाहि। शबद स्वरुपी उतरे, सतगुरु सत विदेही कबीर। साँई अरुण जी शेलार पर दयाल है, डिगे बंधावे धीर।।02।।यह जगत की उल्टी रीत, सारशबद अखण्ड छोड करे काल जाल से प्रीत। ब्रम्हा विष्णु महेश की भक्ती, जिनसे कभी ना होय मुक्ती।।परम प्रेम पियाला जो पिये, शीश दक्षिणा देय। लोभी शीश ना दे सके, बस्स नाम प्रेम का लेय।।03।।,,साँई अरुण जी महाराज नासिक महाराष्ट्र को सादर समर्पित,,सालिकराम सोनी,,7898158018-🙏🏻🌹
Pushpraj mahamandleshwar Dada narsinghdev Jai gaou Mata ki Jai Ho Jai bharat mata ki jai Bhawani Shankar kamtanath Jai jai jagannath barhahanauman bundela machchandarnath Chandrashekhar Azad pushpraj mahamandleshwar Dada
Pushpraj mahamandleshwar Dada narsinghdev Jai gaou Mata ki Jai Ho Jai bharat mata ki jai Bhawani Shankar kamtanath Jai jai jagannath barhahanauman bundela machchandarnath Chandrashekhar Azad
।।मुक्तक छंद कविता।।ओहंम् सोहंम् के ऊपर एक और है, सत स्वयंभू का सतधाम। जहाँ हंस ही पार्षद है, करते अमृत रस का पान वहाँ जन्म मरण का नही काम।।00।।सारशब्दी शब्दानंद वहाँ पर, सतधामी सतखण्ड जहां पर। सत धारी संतो ने जिसे चित्त मे जीवित ही धारा। जहाँ सारशबद अखण्ड धुन चित्त सोहे सोई, जिसे बिरला बूझत हंस कोई कोई-संतो वही निज देश हमारा।।01।।जहाँ जाय कर फिर हंस ना लौटे इस भवसागर की धारा। परमपिता के ही संरक्षण मे ही करते गुजारा-संतो वही निज देश हमारा-।।02।।सूर्य चंद्र नही जहां प्रकाशित, नहि नभ मंडल तारा। उदय ना अस्त दिवस नही रजनी, बिन ज्योति उजियारा-संतो वही निज--।।03।।पांच तत्व गुण तीन तहाँ नही, नहि तहाँ सृष्टी पसारा। तहाँ ना माया कोट प्रपंच वहाँ, लोक कुटुम्ब परिवारा-संतो वही निज--।।04।।क्षुधा तृष्णा नही शीत उष्ण यहाँ, सुख दुख का संचारा। आधि ना व्याधि उपाधि तहाँ, पाप पुण्य विस्तारा-संतो वही निज--।।05।।ऊंच-नीच कुल की मर्यादा, ना आश्रम वर्ण विचारा। धर्म अधर्म तहाँ कछु नाहि, संयम नियम अचारा-संतो वही निज--।।06।।अति अभिराम धाम सर्वोपरि, शोभा जासु अपारा। कहत कबीर जी सुन भाई साधु, तीनो लोक से न्यारा-संतो वही निज-।।07।।कर्मो की है माया भाई, कर्मो के खेल सारे। कर्मो के इस जहान मे, क्या क्या अजब गजब के नजारे-संतो वही निज देश हमारा-।।08।।,,साँई अरुण जी महाराज नासिक महाराष्ट्र को सादर समर्पित,,सालिकराम सोनी,,7898158018।।🙏🏻🌹
सामने आकर बात कर कुत्ते = इस प्रवचन के प्रत्युत्तर में = मैं भी दूं तुझे = ऐसा बढ़िया प्रवचन कि = जन्म जन्म तक याद रहे तुझे ::= गुरुग्राम ; हरियाणा :: = भारतीय नारी = रजनीश धानिया :: 🔱🇮🇳🌍💥🔥🔥♨️♨️🔥🔥🔥🔥= किशनगढ़ ; राजस्थान = भेष धारी गौरव दास ::🔱🇮🇳🌍💥🔥🔥♨️♨️🔥🔥