आध्यत्म का मतलब यह नहीं होता कि घर परिवार को छोड़ कर साधु सन्यासी बन जाना, आध्यत्म का अर्थ होता है उस राह पर चलना जो सीधा और सच्चा हो . जिस राह पर चलने के बाद अंत समय में परमात्मा से मिलने के बाद शर्मिदगी न हो ,अंत में तो एक दिन चाहे न चाहें परमात्मा से मिलना है ही..
आपको क्या जानना है? हम आपको हर तरह की जानकारी देंगे जहां तक मेरी जानकारी में है, क्योंकि मेरा यह चैनल बस इसी लिए हैं कि हम लोगों तक सही ज्ञान दें सकें। ॐ शान्ति विश्वम।।
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आत्मज्ञानी परमेश्वरी सहाय गुप्त ने अपने लेख, "ब्रह्मांड भ्रमण" में लिखा है की एक वर्ष तक आत्मा को आकाश में रहना पड़ता है, जहां उसको जीवन की सारी सुविधा, खानपान चाहिए। इसलिए मासिक श्राद्ध पहले वर्ष, फिर वार्षिक, फिर पितृपक्ष श्राद्ध करने चाहिए। पितृ तर्पण नित्य क्रिया है। ।
पहले प्रत्येक इंद्री से प्राण निकलकर कंठ में केंद्रित होते है। फिर मुख्य प्राण के साथ मिलकर कर्मानुसार आंख, कान, मुंह, ब्रह्मरंद्र, मल, मूत्र के रास्ते निकल जाते है।