कड़वी सच्चाई इस चैनल में परोसी जाती है मीठा झूठ नही
Hello Everyone
Namaste, Jai jinendra ❣️
In this channel we will know the views of lord mahaveer on soul, karma , liberation ,kaal chakra, meditation, life after death, incarnation ,etc many more.. subscribe like n share for such informative videos ...
Hello tirthankar premi
हमने भगवान महावीर को तो नही देखा पर कम से कम उनकी वाणी को तो सुन ही सकते है ,हमारे इस चैनल में भगवान महावीर की वाणी या भगवान ने जो भी कहा है उससे संबंधित वीडियो देखने को मिलेंगे जैसे आत्मा कर्म कर्मफल काल चक्र संसार के रहस्य मोक्ष शरीर के प्रकार ध्यान योग तप जैन धर्म सिद्धियां मंत्र स्वाध्याय तप का फल तीर्थंकर सिद्ध
समभाव की साधना ही सामायिक है हर समय समभाव में रहना ही भाव सामायिक है बहन जी है साध्वी जी है या आप साधिका है मुझे मालूम नहीं क्यों की आपका परिचय नही आता है आप को बहुत बहुत साधुवाद।
Tirthankar char thirth ki sthapna karte hai .kevli nahi ( 2 janm se tin Gyan hote hai kevli ke nahi) (3 tirthankar ka mahotsav mmanane devta aate hai kevli ka mahotsav devta nahi manate) yahi antar hai thiranker aur kevli me 🙏
भगवान ऋषभदेव के 100 पुत्र थे दिन में 98 में दीक्षा ली और बाहुबली भारत सुंदरी और ब्राह्मी दो पुत्री थी स्थानक वालों के यहां ब्राह्मी सुंदरी की शादी हुई मैं बड़ी साधु वंदना में पढ़ा जो एक भारत से हुई और एक बाहुबली से क्या यह सही है बताना बेटा जय जिनेंद्र बेटा
एक दिन लोगों ने जाकर वासुदेव को सूचना दी कि घृत पागल हो गया है और बाजारों में न जाने क्या बकता फिरता है। ऊपर की गाथा में यही बात कही गई है - हे कृष्ण! उठो! आँखें बन्द करके मत सोओ! तुम यहाँ पड़े हो और तुम्हारा सहोदर घृत वायु ग्रस्त विक्षिप्त होकर गलियों में मारा-मारा फिरता है। भाई के पागलपन की बात सुन वासुदेव दौड़े हुए बाज़ार में आए और घृत को छाती से लगाकर पूछा, “तुम्हें क्या कष्ट है? तुम्हें क्या चाहिए?” घृत ने कहा, ‘शशा ! शशा !! शशा !!!’ वासदेव ने कहा, “हे भाई! मैं तुम्हारे लिये सोने, चाँदी के, हीरे, मोतियों और रत्नों के खरगोश बनवा सकता हूँ। बोलो, तुम्हें कौन-सा शशा चाहिए।” घृत ने आकाश में चमकते हुए चन्द्रमा की ओर उँगली उठाकर कहा, “वह! उसके भीतर चमकने वाला! वही शशा मुझे लादो।” वासुदेव ने कहा, “प्यारे भाई, तुम बुद्धिमान हो। असम्भव की याचना बुद्धिमान नहीं करते। क्या तुम नहीं जानते कि चन्द्रमा के भीतर का शशा पृथ्वी पर नहीं लाया जा सकता।” घृत पंडित ने तुरंत उत्तर दिया, “भैया, आप भी तो बद्धिमान हैं। क्या आप यह नहीं जानते कि मरा हुआ पुत्र पुनः जीवित नहीं किया जा सकता। फिर भी आप उसके लिये दुःखित क्यों होते हैं?” वासुदेव ने भाई को हृदय से लगा लिया। उस दिन से उन्होंने पुत्र के लिये शोक करना बन्द कर दिया और राज्य का काम पूर्ववत् देखने लगे। वासुदेव के शोक की कहानी के अंत में तथागत ने कहा, “उस जन्म में सारिपुत्र वासुदेव था और मैं तो घृत पण्डित था ही।”