कौन सी बात बेवकूफी की है साबित करके दिखा... नहीं तो चलता बन..संविधान हमेशा समय के अनुसार बनता है और फिर उसमे जो कमियां होती हैं वो सही की जाती हैं.. खुद भारत के संविधान मे 100 से ज्यादा बार संशोधन हो चुके.. पता है ना?? उस समय का संविधान मनुस्मृति था.. और आज का संविधान अम्बेडकर स्मृति है.. मनुस्मृति मे संसोधन हुआ तो यज्ञवाल्कय स्मृति आयी जिसमे महिलाओ को अधिकार दिए गए, फिर नारद स्मृति आयी जिसमे दास प्रथा समाप्त की गयी.. फिर और स्मृतियाँ आयीं..लेकिन तू तो अनपढ़ है, तुझे बताने का फायदा क्या 😂😂.. जाके कभी सिविल सर्विस का सिलेबस ही देख ले, ये सारी बाते तुझे वहां भी मिल जाएंगी.. यहाँ अपनी जाहिलियत का प्रदर्शन मत कर.. आरक्षण से बुद्धि और ज्ञान मिल जाएगा इस गलतफहमी मे मत रह..
हाँ धपोलशंख... कुछ पढ़ा खुद से?? पढ़ लिख के समझ और समझ के फिर बोल.. बिना खुद पढ़े चला आया मुँह उठा के... 😡.. और हलाला मे क्या समझदारी का विज्ञान है, वो तो बता दे 😂😂.. थोड़ा मेरा भी ज्ञान वर्धन कर दे केवल हिन्दू धर्म मे कमियां खोजने वाले गुरु घंटाल..😂
Hello Vikas ji, I have been watching your videos, they are very informative. I would like to have a discussion with you on the phone. Can you please give me some time ?
Why did he criticised Islam in his book "Pakistan or Division of India"? Did you ever read it?? Or you only know about Manusmriti? Ambedkar was a scholar of law and not of spiritualism.. He burnt based on his understanding.. Don't be impatience.. If you are watching my videos, watch them full.. Else don't ask those things which I already have to cover.. I will cover each and everything..
You first watch this video from my playlist.. ru-vid.com/video/%D0%B2%D0%B8%D0%B4%D0%B5%D0%BE-p09HJ-gW5uc.html Problem with you guys is that you neither read anything related to Sanatan yourself, nor you watched any of my videos completely and with prejudice thoughts, your target is just to throw stone wherever you see Manusmriti written.. It's not a sign of educated and rational person... So come out of this prejudice syndrome..
Actual manusmriti jb hai hi nhi ,, aapke ya kisi ke pass jo bhi hai wo Williams jones ke dwara translated hai,,, use kyu mension nhi krte😂 Angrejon ke maansik gulam
हे गधों के बीच खच्चरो की भांति प्रकाशमान मुखर्विष्टाविशेषज्ञ मुर्खाधिराज, सीधा सा प्रश्न पूछ रहा हूँ, सीधे सीधे उत्तर दो कि जिस आंग्ल विद्वान (विलियम जोन्स ) का तुमने नाम लिया उसने ये व्याख्या कहाँ की है, जो इस वीडियो मे बताई गयी है.. तुम्हारा कहना है कि ये व्याख्या मैंने वहां से ली है.. अतः हे खच्चराधीपति, मुझे बताओ कि विलियम जोन्स ने ये व्याख्या कहाँ की है.. अगर मिले तो बताओ अन्यथा अपना यहाँ से मुँह काला करते बनो.. ये चैनल पूरी तरह से अहिंसक है, यहाँ बातों से भी मारा नहीं जाता, बस घसीटा जाता है.. अतः प्रमाण लेकर आओ, नहीं तो फिर से अपनी कुरता फाड़ बेइज्जती करवाने यहाँ मत आना.. ये व्याख्या भारत के महान विद्वानों (युकतेश्वर गिरी और पंडित श्री राम शर्मा )की वैज्ञानिक व्याख्यायों को आधार बनाकर की गयी है.. इसलिए हे रात्रिचऱ उल्लूकाधिपती, खुद पढ़ना सीख.. बिना सोचे मत बोला कर...
hello sir, do law of attraction and vibration work.. does our thoughts release wave in the earth atmosphere gathers similar energy of waves and transfer it back through the ether medium back to receiver... if so it only effects the the receiver... how does the outer reality or his life situations changes.... how are they effected by it..??
Yes, a very beautiful experiment on same has been done by Elon Musk on same.. Read about the chip in human mind and how the thoughts generated in the form of electrical pulses were recieved by reciever which was connected to a computer playing chess.. Just by thinking next move, the move was executed in software without clicking any mouse button...
Shuny hone par koi jeevan nhi milta lekin shunya hone par awareness aa jati hai, phir aatma apna koi bhii jevan khud chun sakti hai... Aware hone par chunti hai, jab tak unaware rahti hai wo chunti nahi use milta hai
वेदश्रवणप्रतिषेधो,वेदाध्ययनप्रतिषेधस्तदर्थज्ञानानुष्ठानयोश्च प्रतिषेधः शूद्रस्य स्मर्यते. श्रवणप्रतिषेधस्तावत् अथास्य वेदमुपशृण्वतस्त्रपुजतुभ्यां श्रोत्रप्रतिपूरणमिति पद्यु ह वा एतच्छ्मशान। यच्छूद्रस्तस्माच्छूद्रसमीपे नाध्येतव्यमिति च भवति च वेदोच्चारणे जिह्वाच्छेदो धारणे शरीरभेदइति.न शूद्रायमतिंदद्यात। - ब्रह्मसूत्र 1/3/38 पर शंकरभाष्य भावार्थ - -अपने भाष्य में उन्होंने लिखा है कि शूद्र को न वेद सुनने का अधिकार है और न पढ़ने का, न उस के अर्थ समझने का अधिकार है और न उस के अनुसार अनुष्ठान (यज्ञ आदि) करने का. यदि वह (शूद्र) वेद पढ़ने वालों के पास जा कर उसे (वेद को ) सुन ले तो उस के दोनों कानों में सीसा (रांगा) और लाख पिघला कर भर देनी चाहिए. शूद्र चलताफिरता श्मशान होता है, अतः उस के समीप वेद नहीं पढ़ना चाहिए. वेद का उच्चारण करने पर शूद्र की जीभ काट देनी चाहिए और वेद को सुन कर कंठस्थ कर लेने पर उस का शरीर चीर देना चाहिए. शूद्र को ज्ञान नहीं देना चाहिए।
वर्ण व्यवस्था जन्म से होती है और आप इसको बदल नही सकते । पूरी शंकराचार्य का प्रवचन सुने 3:10 पर।ru-vid.com/video/%D0%B2%D0%B8%D0%B4%D0%B5%D0%BE-EqT7vhN2MBg.htmlsi=KztZ1F0c8CnTTHMT
आ गए गलत जानकारी फैलाने.? ठीक से जाके पुरी शांकराचार्य की बात सुनो... खुद की समझने की क्षमता विकसित करो .. भगवाद गीता, पुराणों, उपनिषद, कहीं भी ये व्याख्या नहीं मिलेगी कि वर्ण व्यवस्था जन्म से है.. और अगर पुरी के शांकराचार्य इसे जन्मजात बता रहे हैं तो मै उनका भी विरोध करता हूँ.. पुरी के शांकराचार्य की बात ठीक से समझो जाकर.. वर्ण कर्म से होता है.... अपनी चेतना को कर्म करते हुए जिस स्तर पे तुमने छोड़ा है, उसके आगे की यात्रा उसी चेतना वाले लोगो के बीच शुरू होगी.. जन्म के समय पिता/माता के वर्ण का बस इतना ही योगदान है- "अपने जैसी चेतना को आमंत्रित करना".. एक बार आप आ गए फिर केवल कर्म हैं जिसके आधार पर आपका वर्ण निर्धारित होगा... अर्जुन खुद क्षत्रिय था लेकिन उसने कहा कि अगर मै अपने खानदान का विनाश कर दूंगा तो मेरे कुल मे वर्ण संकरता आ जायेगी..ये भगवद गीता मे साफ लिखा है.. अगर केवल जन्म से वर्ण चिपक जाता है तो अर्जुन ऐसा क्यों कहता? वो ऐसा नहीं कह सकता क्योंकि उसे पता था कि अपने लोगो को मारने का कर्म करने से मै अपने वर्ण से नीचे गिर जाऊँगा.. सनातन धर्म मूली का पराठा नहीं है जो बस यूँ ही पच जाएगा.. इसको गहराई से समझना पड़ता है.. आधी अधूरी जानकार आत्म मुग्धता तो ला सकती है, ज्ञान नहीं... 🙏
वर्ण व्यवस्था पूरी तरह एक वैज्ञानिक पद्दती है.. जिसे भगवान् बुद्ध ने भी समर्थन दिया.. अब ये मत कहना कि बुद्ध ने ऐसा नहीं कहा था.. क्योंकि तुम अभी अधूरे ज्ञान के नशे मे हो..
Guru ji, ab iss gyan ko koi lena nahi chahta. Charvak philosophy is great. Periyar philosophy is also great. This planet is not made by anyone. Virus is created all plats, tree and other creatures. Our ancestors are still alive in Andaman Nikobar. Stop this false information.
oh man, you r not even one percent close to what your name says..This video doesn't discuss which philosophy to follow, but I'm glad you're aware of the existence of Charvak philosophy in our country. It highlights the beauty of Sanatan Dharma. Unlike Western and Islamic philosophies, which have strict repercussions for blasphemy, consider what happened to Socrates.
dont spread unscientific divisive and hateful agenda in the society; move to modern times and the future, along with the modern world's values, if you want the country to move forward.
Forget about Country only, entire world will seek the refuge of Sanatan principles.. You guys better focus to preach terrorists who blindly believe the reward of heaven in return of bloodshed of people belonging to other faith..
And how this is hateful whatever explained in video? Can you please elaborate? It's clearly said that varnas has nothing to do with birth, it's all how you act... Stop preaching here.. You guys have done enough damage to this country on the name of spreading the modern values..
Don't make any arbitrary statements... Quote the timeline in this video which specifically spreading hateful agenda (If you have really watched this video completely)..
सफाईकार भंगीजन ? किस वर्ण कर्म विभाग में आता है? सफाईकार भंगीजन वैशम वर्ण कर्म करता है पुराने समान प्रोडक्ट को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ट्रांसपोर्ट करता है। चरण पांव चलाकर ट्रांसपोर्ट करता है पुराने समान प्रोडक्ट को इसलिए चरण समान वैशम वर्ण कर्म होता है। सफाई कर्मी जन पुराने समान प्रोडक्ट को एक स्थान से उठाकर ट्रांसपोर्ट कर दूसरे स्थान पर पंहचाता है इस कर्म में स्थान बदवाव होता है इसलिए सफाईकार भंगीजन वैशम वर्ण कर्म में आता है। इसलिए सफाईकार भंगीजन वैश्य होता है। सफाईकार भंगीजन कोई प्रोडक्ट निर्माण उत्पादन नहीं करता है इसलिए वह शूद्रम वर्ण ( उत्पादण निर्माण वर्ग) में शूद्रन नहीं होता है।
हे मनुष्यो ! जन्म से सबजन दस इंद्रिय समान लेकर जन्म लेते हैं और चार वर्ण कर्म विभाग के समान शरीर के चार अंग समान लेकर जन्म लेते हैं इसलिए जन्म से सबजन बराबर होते हैं। हरएक मानव जन हरएक समय मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं वे किसी भी वर्ण का कार्य चारो अंग से करते रहते हैं। इस पोस्ट को पढ़कर समझकर अपना अज्ञान मिटाई करें ओर अपने समाज का ज्ञान वर्धन करवाएं । यह अकाट्य सत्य सनातन शाश्वत ज्ञान प्राप्त करके कि मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हरएक मानव जन हैं। चरण पांव चलाकर ही व्यापार वितरण ट्रांसपोर्ट वाणिज्य क्रय विक्रय वैशम वर्ण कर्म करते हैं। इसलिए चरण समान वैशम वर्ण कर्म है। चार वर्ण कर्म = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम। पांचवेजन जनसेवक दासजन नौकरजन सेवकजन दासजन भी इन्ही चतुरवर्ण कर्म को वेतन पर करते हैं। यह अकाट्य सत्य सनातन शाश्वत ज्ञान प्राप्त कर अज्ञान मिटाई करवाएं और प्रिंट सुधार करवाएं।
ब्रह्म = ज्ञान ब्रह्म वर्ण = ज्ञान शिक्षण अध्यापन विभाग। ब्रह्मण = ज्ञानदाता अध्यापक गुरूजन पुरोहित चिकित्सक विप्रजन शिक्षक। हे मनुष्यो ! जन्म से सबजन दस इंद्रिय समान लेकर जन्म लेते हैं और चार वर्ण कर्म विभाग के समान शरीर के चार अंग समान लेकर जन्म लेते हैं इसलिए जन्म से सबजन बराबर होते हैं। हरएक मानव जन हरएक समय मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं वे किसी भी वर्ण का कार्य चारो अंग से करते रहते हैं। इस पोस्ट को पढ़कर समझकर अपना अज्ञान मिटाई करें ओर अपने समाज का ज्ञान वर्धन करवाएं । यह अकाट्य सत्य सनातन शाश्वत ज्ञान प्राप्त करके कि मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हरएक मानव जन हैं। चरण पांव चलाकर ही व्यापार वितरण ट्रांसपोर्ट वाणिज्य क्रय विक्रय वैशम वर्ण कर्म करते हैं। इसलिए चरण समान वैशम वर्ण कर्म है। चार वर्ण कर्म = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम। पांचवेजन जनसेवक दासजन नौकरजन सेवकजन दासजन भी इन्ही चतुरवर्ण कर्म को वेतन पर करते हैं। यह अकाट्य सत्य सनातन शाश्वत ज्ञान प्राप्त कर अज्ञान मिटाई करवाएं और प्रिंट सुधार करवाएं।
ब्रह्मा के पांच मुख का मतलब हैं एक अध्यापक ब्राह्मण, दूसरा सुरक्षक क्षत्रिय, तीसरा उत्पादक शूद्राण और चौथा वितरक वैश्य। पांचवे मुख का मतलब है दासजन जनसेवक नौकरजन सेवकजन चारो वर्ण कर्म विभाग में सहयोग करने वाला। ब्रह्म = ज्ञान । मुख से । ब्रह्म वर्ण = ज्ञान विभाग। ब्राह्मण = ज्ञानदाता/ अध्यापक/ गुरूजन/ विप्रजन/ पुरोहित/ आचार्य/ अनुदेशक/ चिकित्सक/ संगीतज्ञ। क्षत्रम = ध्यान न्याय। बांह से । क्षत्रम वर्ण = ध्यान न्याय रक्षण विभाग। क्षत्रिय = सुरक्षक बल चौकीदार न्यायाधीश । शूद्रम = तपसे उत्पादन निर्माण = पेटऊर से । शूद्रम वर्ण = उत्पादन निर्माण उद्योग विभाग। शूद्राण = उत्पादक निर्माता उद्योगण तपस्वी वैशम = वितरन वाणिज्य व्यापार = चरण से । वैशम वर्ण = वितरण विभाग। वैश्य = वितरक वणिक व्यापारी ट्रांसपोर्टर। चरण पांव चलाकर ही व्यापार ट्रांसपोर्ट वाणिज्य क्रय विक्रय वैशम वर्ण कर्म होता है । दासजन/ जनसेवक = वेतनभोगी /नौकरजन।सेवकजन/भृत्यजन। चारो वर्ण कर्म विभाग में कार्यरतजन। जय विश्व राष्ट्र प्रजापत्य दक्ष धर्म सनातनम वर्णाश्रम संस्कार ।ॐ।
शूद्रं शब्द का मतलब तपस्वी है । यजुर्वेद मंत्र - तपसे शूद्रं । शूद्रं शब्द में बडे श पर बडे ऊ की मात्रा लगाकर अंक की बिंदी लगी है। यह बिंदी अवश्य लगानी चाहिए। अंक की बिंदी लगने से शूद्रन/ शूद्रण/ शूद्रम भी लिख बोल सकते हैं। चारवर्ण चारकर्म चारविभाग जीविका विषय अनुसार उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार ही शूद्रण है। कर्म चार = = वर्ण चार = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम। पांचवेजन जनसेवक दासजन नौकरजन सेवकजन भी इन्ही चतुरवर्ण चतुर कर्म विभाग में वेतनमान पर कार्यरत हैं। वेदमंत्र दर्शनशास्त्र ज्ञान विज्ञान विधान अनुसार और प्रत्यक्ष कर्म अनुसार प्रमाण हैं। कुछ किताबो में शूद्रन का मतलब तपस्वी उत्पादक निर्माता उद्योगण ना लिखकर सिर्फ सेवक लिख कर गलती कर रहे हैं । शिक्षित द्विजन ( स्त्री-पुरुष) को सुधार कर बोलना लिखना चाहिए और सुधार कर प्रिंट करना चाहिए। अनुचित लेखन कर्म अनुचित बोलना लिखना वेद विरूद्ध करते रहते हैं आजकल अज्ञजन । लेखक प्रकाशक जन अज्ञानता में सुधार नहीं करते हैं। द्विज और द्विजोत्तम भी अलग अलग हैं। चारो वर्ण कर्म विभाग वाले सवर्ण और असवर्ण होते हैं। शूद्रण भी द्विज और पवित्र होता और चार वर्ण कर्म विभाग अनुसार उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार तपस्वी होता है। जो द्विज तपश्रम उद्योग उत्पादन निर्माण कार्य करते हैं वे शूद्रण हो जाते हैं। अशूद्र अब्राहण अछूत व्यभीचारी जुआरी नपुंसक चाटुकार होता है। क्षुद्र पाशविक सोच रखकर जीने वाला होता है। इस पोस्ट को कापी कर अन्य सबजन को लेखक प्रकाशक को भेजकर कर प्रिंट सुधार करवाएं।
मुख से ब्रह्मण, बांह से क्षत्रिय ,पेटउदर से शूद्रण और चरण से वैश्य हरएक मानव जन हैं और जो मानव जन अध्यापक शिक्षक गुरुजन पुरोहित विप्रजन द्विजोत्तम हैं वे उच्च पद पर होते हैं । पाचमुख मतलब है पांचजन = जनसेवक दासजन वेतभोगी × ( अध्यापकजन ब्रह्मवर्णजन + सुरक्षकजन क्षत्रमवर्णजन + उत्पादकजन शूद्रमवर्णजन + वितरकजन वैशमवर्णजन)। यही चारवर्ण पांचज़न सनातन शाश्वत जीविकोपार्जन प्रबन्धन विषय व्यवस्था है। शूद्रं शब्द का मतलब तपस्वी है । यजुर्वेद मंत्र - तपसे शूद्रं । शूद्रं शब्द में बडे श पर बडे ऊ की मात्रा लगाकर अंक की बिंदी लगी है। यह लगानी चाहिए। अंक की बिंदी लगने से शूद्रन/ शूद्रण/ शूद्रम भी लिख बोल सकते हैं। चारवर्ण चारकर्म चारविभाग जीविका विषय अनुसार उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार ही शूद्रण है। कर्म चार = = वर्ण चार = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम। पांचवेजन जनसेवक दासजन नौकरजन सेवकजन भी इन्ही चतुरवर्ण चतुर कर्म विभाग में वेतनमान पर कार्यरत हैं। वेदमंत्र दर्शनशास्त्र ज्ञान विज्ञान विधान अनुसार और प्रत्यक्ष कर्म अनुसार प्रमाण हैं। कुछ किताबो में शूद्रन का मतलब तपस्वी उत्पादक निर्माता उद्योगण ना लिखकर सिर्फ सेवक लिख कर गलती कर रहे हैं । शिक्षित द्विजन ( स्त्री-पुरुष) को सुधार कर बोलना लिखना चाहिए और सुधार कर प्रिंट करना चाहिए। अनुचित लेखन कर्म अनुचित बोलना लिखना वेद विरूद्ध करते रहते हैं आजकल अज्ञजन । लेखक प्रकाशक जन अज्ञानता में सुधार नहीं करते हैं। द्विज और द्विजोत्तम भी अलग अलग हैं। चारो वर्ण कर्म विभाग वाले सवर्ण और असवर्ण होते हैं। शूद्रण भी द्विज पवित्र होता और चार वर्ण कर्म विभाग अनुसार उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार तपस्वी होता है। अशूद्र अब्राहण अछूत व्यभीचारी जुआरी नपुंसक चाटुकार होता है। क्षुद्र पाशविक सोच रखकर जीने वाला होता है।
मित्रो! गीता में चार वर्ण कर्म विभाग जीविकोपार्जन प्रबन्धन विषय विधि-विधान नियम सही नहीं लिखा हुआ है। इस पोस्ट अनुसार प्रिंट सुधार करवाएं। चार वर्ण कर्म = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम। चार वर्ण कर्म को करने वाले मानव पांचजन = ( अध्यापक ब्राह्मण + सुरक्षक क्षत्रिय + उत्पादक शूद्राण + वितरक वैश्य ) × दासजन/ जनसेवक। = ( ब्रह्मण अध्यापक + क्षत्रिय सुरक्षक + शूद्राण उत्पादक + वैश्य वितरक) × दासवर्ग /ऋषिवर्ग। = सतसेवा ज्ञान शिक्षण ब्रह्म कर्म + रजसेवा ध्यान न्याय क्षत्रम कर्म सुरक्षण + तपसेवा उत्पादण निर्माण शूद्रम कर्म + तमसेवा वितरण वाणिज्य वैशम कर्म। = ( शिक्षा सेवा+ सुरक्षा सेवा + उद्योग सेवा + व्यापार सेवा ) × दाससेवा/ ऋषिसेवा/ नौकरसेवा /जनसेवा। जन्म से सबजन दस इंद्रिय समान लेकर जन्म लेते हैं इसलिए जन्म से सबजन बराबर हैं । हरएक मानव जन मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं , चरणपांव चलाकर ही क्रय विक्रय वाणिज्य वित्त वितरण व्यापार ट्रांसपोर्ट वैशम वर्ण कर्म होता है । वेतनमान पर चतुरवर्ण में कार्यरत ऋषिजन जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन हैं। चार आश्रम परिवार कल्याण के लिए = ब्रह्मचर्य + गृहस्थ + वानप्रस्थ + यतिआश्रम। जय वर्णाश्रम प्रबन्धन श्रेष्ठतम जीवन प्रबंधन। जय विश्व राष्ट्र सनातन प्रजापत्य दक्ष धर्म । सतयुग सनातनम् दक्षधर्म संस्कार। जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम्। ॐ। यह चारवर्ण पांचज़न सनातन शाश्वत जीविकोपार्जन प्रबन्धन सेवा है। पोस्ट निर्माता बुद्ध प्रकाश प्रजापत। शिक्षित द्विजन ( स्त्री-पुरुष) इस पोस्ट को कापी कर अन्य सबजन को भेजकर ज्ञानवर्धन कर प्रिंट सुधार करवाएं।
Sir aapke samjhane ka tareeka itna captivating and intense hain ki alag hi level ki concentration aa jata hai.Hum sab aapke abhari hai. Jis grantho ko padhne ki humari yogyata nehi thi woh aapne hum sab tak pohcha diya. Pranam. 🙏.