काशी दर्शन चैनल जिसके माध्यम से हम आपकों पहुंचाते है काशी उन अनछुए पहलुओं के पास जो आपसे रह जाते है दूर...तो आईये हमारे साथ काशी को और करीब से जानिए और बने रहिए काशी की आध्यात्मिक विरासत, कला और दर्शन के साथ इसके साथ ही हम आपकों भारत की राजनैतिक परिस्थितियों पर विश्लेशणात्मक पहलुओं से भी अवगत कराते रहेंगे। आदाब बनारस...सलाम बनारस...सुबह-ए-बनारस को प्रणाम... #Kashi_Darshan #Banaras #Kashi #kashi_tere_rang_hazar #varanasi #viewofvaranasi #varanasitravelblog #travelblog #kashivishwanasthmandir #babavishwanath #ganaghat #varanasikeghat #sarnath #assighat #banarasipan #banarasisari #banaraskajayka #banaraskigaliya #viewofvaranasi
एक कहावत कही जाती है विशेषतः काशी के लिए ही... राण्ड...सांड... साधू...सन्यासी... इसने बचे तो सेवे काशी.... इसमें एक पान और पनेडियो को भी जोड़ देना चाहिए... क्योंकि खई के पान बनारस वाला खुल जाए बंद अकल का ताला।
[09/10, 9:15 pm] Ramesh Lalwani: बनारस ,बनारसी,और बनारसी पान की ऐतिहासिक शोधपूर्ण व्याख्या सचमुच अत्यंत रोचक प्रस्तुति का अंदाज़ काबिले तारीफ है।आप निसंदेह हरफनमौला बनारसी हैं।इहै बनारस हव राजा। [09/10, 9:16 pm] Ramesh Lalwani: हमने पान का शौक पल तो जरूर लेकिन यही पान हमारे दांत खा गया हुजूर।
पान का एक बीड़ा खिला दो फिर देखो कमाल बनारसी बाबू का,वाहहह बहुत शानदार प्रस्तुति सर , अपने बनारस की शान बनारसी पान की बेहतरीन ढंग से प्रस्तुति की। आपको सैल्यूट है सर ❤
काशी औघड़ों का है ठहाका है। पान जैसी नायाब चीज का अध्ययन करना , नामचीन दुकानदारों की सूची तैयार करना उसके बाद शूट करना यह तो श्रमसाध्य काम है। डॉ अरविंद कुमार सिंह के जज्बे को सलाम। स्क्रिप्ट भी रूचि कर है। और बीच बीच में संगीत और नैरेटिव बहुत ही मजेदार है। टाइटिल भी अर्थपूर्ण है। इससे बढ़िया टाइटिल हो ही नहीं सकता। जब कोई पान खाने वाला आनंदतिरेक में हो तो उसका भाव पढ़ा जा सकता मंगल हो
सारनाथ और काशी के बाबू जगत सिंह पुस्तक के माध्यम जो जानकारियां निकल कर सामने आ रही है वह सब बेहद चौंकाने वाला और इतिहास के पन्नों में जो कुछ दफन हो चुका है उसको सामने लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रही है । वास्तव में जो कुछ भी इतिहास पढ़ाया जा रहा है उससे इतर बहुत सारी चीज जिनकी जानकारी हमें नहीं है उन्ही में से एक जीत जागता किरदार बाबू जगत सिंह है । आपने ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ जंग छेड़ कर देश को आजाद कराने का बिल्कुल बजाया था। मैं मेजर डॉक्टर अरविंद कुमार सिंह जी अशोक आनंद जी और रॉयल फैमिली से श्री प्रदीप नारायण सिंह जी डॉ एच ए कुरैशी जी काशी के बाबू जगत सिंह के बारे में तथ्यों को सामने लाने के लिए धन्यवाद करता हूं।
काशी के अद्भुत पं अमरनाथ शर्मा! एक ऐसा व्यक्ति जिसके साथ मैंने पहली फ़िल्म "जागृति" देखी थी। वह रिश्ते मे मेरे मामा हैं। मेरी ननिहाल बनारस में दारानगर में थी। मेरे चार मामा थे ,सबसे छोटे अमर मामा ही थे उन्हे हम लोग टन्नू मामा कहते थे। मुझे टन्नूमामा और बिट्टन नानी से बहुत स्नेह मिलता था। टन्नू मामा मेरे आदर्श हैं,मैं उन्हे प्रणाम करता हूं उनके सुखी जीवन की कमना करता हूं।
कजरी गायन के 22 प्रकारों में से एक विधा है ।यह एक लोकगीत है जो मिर्जापुर एवं पूर्वांचल में सावन के महीने में गायी जाती है। जब गांव में वृक्ष पर झूला डाल दिया जाता है तो मां, बेटियां, बहनें उसे उत्साह से सारा बोर होकर इसे गाती हैं ।यहीं से यह आंचलिक गीत पूरे उत्तर प्रदेश में फैली ।इसमें सिंगार रस की भरमार होती है ।दूसरे प्रदेशों में, विदेशों में ,अपने प्रांत के पहचान के रूप में प्रदर्शित की जाती है । इसमें वाद्य यंत्रों के रूप में हारमोनियम, बांसुरी, तबला ,शहनाई और अन्य वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया जाता है। आंचलिक लोकगीत होने के कारण अन्य प्रांत के और विदेश के लोग उत्तर प्रदेश के संगीत से परिचित होकर विस्मय में पड़ जाते हैं। अपना बनारस संगीत घरानों से भरा पड़ा है। आज कजरी सुनकर पुरानी यादें ताजा हो गई । प्रोफे. (डॉ.) शैलेंद्र कुमार सिंह पूर्व कुलपति शहीद महेंद्र कर्मा विश्वविद्यालय, बस्तर जगदलपुर ,छत्तीसगढ़.
मिर्जापुर कईले गुलजार हो कचौड़ी गली भूल गइल बालमू वाह रे सरोज जी ने पूरे वातावरण कोआनंदित कर दिया, इस आयोजन के लिए अरविंद भैया और अशोक आनंद जी को हृदय से धन्यवाद।
शानदार प्रस्तुति हृदय को छूने वाली मधुर संगीत पूरे महौल को कजरी मय बना दिया क्या कहा जय सरोज जी का गायन और संगीत की हृदयस्पर्शी जुगलबंदी हरि भैया की आत्मा को भी संतुष्टि प्रदान कर रही थी। अरविंद भैया का लयबद्ध संचालन स्रोताओ को हिलने डुलने तक का भी समय नहीं दिया, अशोक जी को आयोजन के लिए हृदय से आभार ऐसा आयोजन वह भविष्य में करते रहें इसी शुभकामना के साथ बहुत बहुत धन्यवाद। आप का सत्येन्द्र।
बहुत सुंदर कार्यक्रम इतनी सुंदर प्रस्तुति पारंपरिक रचना जितनी भी बधाई दी जय बहुत ही कम है अशोक आनंद अरविंद जी आप लोगों को हृदय से धन्यवाद सरोज को बहुत बहुत आशीर्वाद ❤❤🎉🎉
लोकगीत हमारी सांस्कृतिक परंपरा की धड़कन है और कजरी तो इसका प्राण है।सावन की रिमझिम फुहार के बीच सुर ताल और लय का संयोजन आनंद में सराबोर कर देता है।हरि भैया लोकगीत के पर्याय रहे हैं।आज वे हर लोकगीत के स्वर में समाये हुए हैं।उनके नाम पर आयोजित स्वरांजलि उनकी सच्ची श्रद्धांजलि है।सरोज वर्मा ने जिस मन से गाया,नागेंद्र ने जिस भाव से बजाया और अन्य संगीतकारों ने इस स्वरांजलि को सार्थक बनाया सभी को बधाई। और असली बधाई और धन्यावाद तो भाई अरविंद तथा अशोक आनंद को जो मुझे अनायास ही सम्मान देते रहते हैं
प्रिय अशोक जी और अरविंद जी, कजरी कार्यक्रम में आमंत्रित करने के लिए मैं दिल से आपका धन्यवाद करता हूँ। वह शाम वाकई खास थी, और मैंने उन मधुर धुनों का भरपूर आनंद लिया, भले ही मुझे भोजपुरी या बनारसी भाषा नहीं आती। सच ही कहते हैं-संगीत की कोई भाषा नहीं होती। इस कार्यक्रम ने मुझे बनारस की समृद्ध संस्कृति और धरोहर के और भी करीब ला दिया, और इसके लिए मैं अत्यंत आभारी हूँ। इस खूबसूरत आयोजन में मुझे शामिल करने के लिए एक बार फिर से धन्यवाद।
मैं तो एक माध्यम हू्ं , अच्छा संपादन हो जाना तो गुरु जी का आशीर्वाद है ।पिता जी ( मास्टर जयराम) १९९४ में चले गये।उनके जाने के बाद हरी भैया ने मुझे पुत्रवत स्नेह दिया । कोई बेटा पिता का ऋण तो चुका ही नहीं सकता ।फिर भी ताउम्र जो भी उनकी स्मृति को क़ायम रखने में बन पड़ेगा, करता रहूंगा । इसमें कोई दो राय नहीं कि न जाने कैसे यह आयोजन अपनी ऊंचाई छूं गया । सबके मन थिरकने लगे । ये दो घण्टे कैसे बीत गये पता नहीं चला । डां .राम सुधार जी, (जो गुरु जी के जाने के बाद से मेरे अभिभावक हैं ,जिनके सानिध्य में रहने का खूब मौका मिला है ) कुछ बोलने के बाद जब बाहर निकलकर गली में आते हैं तो मुझसे बोल उठते हैं , अशोक जी ,लोग नाच क्यों नहीं रहें हैं।यह तो अद्भुत आयोजन है । एक बड़े समालोचक के मुंह से यह सुनना मेरे लिए सुखद और आत्म विभोर कर देने वाला था ।मुझे लगा कि हरी भैया ने आकाश से उतर कर मेरी पीठ थपथपा दी हो ।मेरे पास आकर कह रहे हो ,बेटा जी मैं तुम्हारे सौंदर्यानुभूति का कायल हूं। हम कार्यक्रम के एक एक पहलू की समीक्षा करें तो पायेंगे ---साउंड स्तरीय था ,सजावट बहुत अच्छा नहीं तो बुरा भी नहीं (अपरिहार्य कारणों से दीप जलाकर मंच नहीं सज सका),सौ अतिथियों काअनुमान था नब्बे आ गये । संतोषजनक प्रेजेन्स रहा ,जेनेरेटर की वजह से अंधेरे का सामना नहीं करना पड़ा। प्रत्युत्पन्नमति से मेजर ने जो समा बांधा बेजोड़ रहा।यह कहने में संकोच नहीं करूंगा कि संचालन मैं इनसे बेहतर नहीं कर पाता , क्योंकि मैं कई हिस्सों में बंटा था । प्रदीप भैया के माध्यम से आये रामजीत ने चाय पकौड़े जलेबी को स्तरीय बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। आपन या अपने भाभी (हमार भौजी) की समीक्षा आप पर छोड़ते हैं । बस इतना ही--- इसके आगे आप सब लिखें
बहुत ही सुन्दर संकलन के लिए आपका ह्रदय से आभार व्यक्त करते है । हरि भइया या हरि राम द्विवेदी को सुना -- संकटमोचन मे मंच संचालक के तौर पर तभी उनको देखा भी था ।
इतनी सुंदर प्रोग्राम के लिए अरविंद जी अशोक जी को बहुत बहुत हृदय से धन्यवाद सरोज वर्मा की गायकी मैं मिठास तथा पारंपरिक रचनाओं के लिए उनको बहुत बहुत बधाई धन्यवाद आशीर्वाद❤❤