Jai Ho mulnivasi scholar aap ka ye bat hamare educational bhai kab tak es manuwad ko chhonde ge pata nahi but ek din jarur aap jaise scholar sociaty ko samjhane me kamyab hoge but time lagega
Saroj tyagi ji aap se nivedan ki yesa biraha market me bhejiye jisase jiv hatya nahi ho aap prayas kijiye koi aadyatamik biraha bhejiye es gana ke liye bahut bahut sadhuvad
पंडित जी सुबह-सुबह अपने घर के आंगन में स्नान कर रहे थे। तभी उनका किशोर बेटा आया और उनके नहाने से बह रहे पानी से एक लोटा जल भरकर उनके सिर पर वापस डाल दिया ! पंडित जी गुस्से से चिल्लाए- क्या कर रहा है बेवकूफ, ये गंदा पानी मेरे ऊपर क्यों डाल रहा है ? बेटे ने आध्यात्मिक शांति के साथ जबाब दिया- आपको खुश करने की कोशिश कर रहा हूँ पिताजी ! आप पानी की गंदगी नहीं बस मेरी भावनाओं को देखिए ! पंडित जी जोर से चीखे- मेरे नहाने से निकला गंदा पानी वापस मेरे ऊपर डाल रहा है और बोल रहा है कि खुश कर रहा हूँ। इससे मैं क्यों खुश होऊंगा मूर्ख ? बेटा उसी आध्यात्मिक सहजता से बोला- तो शिव की जटाओं से होकर निकली गंगा का जल वापस शिवजी के ऊपर डलवाने से भोलेनाथ क्यों खुश होंगे पिताजी ? आपकी कथाओं के अनुसार साफ-सुथरी और निर्मल गंगा तो अनवरत उनके सिर पर गिर रही है, तो फिर उनके नीचे से उठाकर गंदा जल वापस काहे उनके ऊपर डलवाते हैं ? ऐसा करने से शिव काहे खुश होंगे और अगर शिव खुश होंगे तो आप खुश काहे नहीं हो रहे ? पंडित जी- अरे बेवकूफ ! कथा कहानियां तो मूर्ख और अंधविश्वासी लोगों को धार्मिक आस्था से बांधे रखने अपने पास बुलाने का निमित्त मात्र हैं। किसी भी बहाने से वो लोग हमारी दुकान पर आएंगे, धार्मिक कर्मकांड करवायेंगे, तभी तो हमारा धंधा चलेगा और उससे कमाई होगी। अपना खानदानी बिजनेस नहीं समझता गधा कहीं का ? पंडित जी के गुस्से में अब समझाने वाले भाव थे। बेटे ने फिर सवाल किया- जब वो हमारे ग्राहक हैं तो उन्हें पैदल और तकलीफ़ उठाकर दुकान (मंदिर) पर आने को काहे कहते हो ? आराम से आएंगे तो भी तो हमारा बिजनेस चलेगा। पंडित जी ने उत्तर दिया- इसकी दो वजह हैं मूर्ख ! पहली वजह यह है कि पैदल चलकर आने से उनके पैसे ट्रैवलिंग में खर्च नहीं होते हैं और वो पैसे हमारे काम आते हैं। इससे गरीब आदमी भी जेब में कुछ न कुछ लेकर ही आता है। दूसरी वजह ये है कि इन लोगों का तकलीफ़ सहना ही तो धर्म के प्रति इनकी आस्था बढ़ाता है। तू ये बात अभी नहीं समझेगा। तू अभी धर्म शास्त्रों का अध्ययन कर फिर तुझे समझ आयेगा। पंडित जी के बेटे को अब कुछ-कुछ समझ आने लगा है ! लेकिन... इन मूर्ख कांवड़ियों, अंधविश्वासी भक्तों और मानसिक गुलामों को कब समझ आएगी ? लगी दुकाने धरम की,शुद्र करै जय जय कार ब्राह्मण ,बनिया हो रहे दिनों दिन मालामाल।। कांवड़ ढोने वालो का दुख भरा संसार एड़ी ही घिसते रहे ,कबहु ना पावे पार। कांवड़ धारी खूब कर भांग नशे का सेवन शिक्षा नौकरी दूर रहे अंधकार मय जीवन। कांवड़ ढोए स्वर्ग मिले ब्राह्मण क्यों ना जाए बहुजन को ही भेज कर उल्लू खूब बनाएं।