सत्यार्थ प्रकाश का प्रथम संस्करण जो 1875 ई. में प्रकाशित हुआ था इसमें लिखने वाले पंडितों या किसी अन्य कुछ व्यक्तियों के कारण कुछ त्रुटियां रह गई थीं, परंतु महर्षि दयानंद जी ने इस संस्करण को बंद नहीं करवाया था। विज्ञापन देकर इन त्रुटियों से अपने पाठकों को अवगत कराया था। इस संस्करण की बिक्री होती रही। और कुछ वर्षों बाद जब ग्रंथ अनुपलब्ध हो गया तो इसका संशोधित संस्करण अर्थात् द्वितीय संस्करण तैयार किया जो 1884 में प्रकाशित हुआ।