।।मुक्तक छंद कविता।।सारशब्द अखण्ड को पाने वाला, परममोक्ष पा जाता है, अंत समय मे सतगुरु कृपा से, सतधाम सीधा ले जाया जाता है। सारशब्द अखण्ड के सुमिरण से सुख होत है, सारशब्द अखण्ड सुमिरण से दुख जाय। कहे कबीर सारशब्द सुमिरण किये, साँई माहि समाय।।00।।मोह माया मे फंसा है बावरे, किस मद मे मतवाला है। हे संसारी नर जाग जाओ, संसार मुसाफिर खाना है-निगुरे मानुष को यम दरवाजे जाना है।।01।।क्या लेकर तू आया जगत मे, क्या लेकर तुझको जाना है। मुट्ठी बांध कर आया वन्दे, क्या हाथ पसारे जाना है।।कोई आज गया कोई काल गया, कोई चंद रोज मे जायेगा। जिस तन से निकल गया हंसा, उस तन मे वापस नही आना है-निगुरे मानुष को यम दरवाजे जाना है।।02।।सुत मात पिता बंधु अरु नारी, धन धान्य यही रह जायेगा। यहां चंद दिनो की यारी है, फिर कहां ठिकाना पायेगा।।कहे साँई अरुण जी महाराज, सतगुरु का परमधाम ही अखंड ठिकाना है। पाकर सारशब्द अखण्ड धुन धुर धाम की पूंजी, अजर अमर हो जाना है-निगुरे मानुष को यम दरबाजे जाना है।।03।।,,साँई अरुण जी महाराज नासिक महाराष्ट्र को सादर समर्पित,,सालिकराम सोनी। ।
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