Pmc Gujarat Channel यह नए युग का एक अद्वितीय और आध्यात्मिक, शान्ति, स्वास्थ्य, आत्म ज्ञान का वैज्ञानिक चैनल है, जो परिवर्तनशील, सकारात्मक मीडिया के माध्यम से संपूर्ण मानव जाति को सार्वभौमिक आध्यात्मिक सत्य और वास्तविकता दिखाने के लिए प्रयासरत है|
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Pyramid Meditation Channel Gujarat (#PMCGujarat) is an unique new-age Spiritual channel, that envisions and endeavours to showcase the Universal Spiritual Truth and Reality to the whole of mankind through transformative, positive media.
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The wise men who wrote #Tibetan Book of Dead regarded dying as, in effect, a skill-something which could be done either artfully or in an unbecoming manner, depending upon whether one had the requisite #knowledge to do it well. Listen this video; Read 👆🏻the description to know SKILL of DYING - Raymond A Moody - #DrSRanjan
Dr. Rediger’s brilliance and wisdom are profound and eminently practical. His humility and humanity makes this book " Cured" the masterpiece that it is. Read about this Book & Author, a Harvard Faculty in the 👆🏻description. www.thecrimson.com/article/2022/3/10/rediger-spontaneous-healing/
The Bardo of Dying/ process of dying : intermediate state between death and rebirth. Individuals go through various bardos or transitional states after death before being reborn. The Bardo of Dying is considered a crucial stage where one's consciousness begins to separate from the body and transitions to the next life. During this phase, Tibetan Buddhist tradition says that individuals may experience different visions, encounters with various beings, and face their past actions. There is much more guidance on how individuals can navigate this process with awareness. ia802302.us.archive.org/17/items/soi-book-collection-4/The-Tibetan-Book-of-the-Dead.pdf
I had received my Ph.D. in philosophy, I was teaching in a university in eastern North Carolina.. In one course I had my students read Plato's Phaedo, a work in which immortality is among the subjects discussed. In my lectures I had been emphasizing the other doctrines which Plato presents there and had not focused upon the discussion of life after death. After class one day a student stopped by to see me. He asked whether we might discuss the subject of immortality. He had an interest in the subject because his grandmother had "died" during an operation and had recounted a very amazing experience. I asked him to tell me about it, and much to my surprise, he related almost the same series of events which I had heard the psychiatry professor Dr George Ritchie (Book, Return from Tomorrow) describe in 1965. - Raymond A. Moody more details in the 👆🏻description.
Epilepsy' #psychology => Feeling attacked, criticized, and condemned to a certain fate. Out of balance with life. Feeling neglected, mistreated, abandoned, unwanted, violated. Belief that something is wrong with you.
There is no incurable disease. - DrBernieSiegel medicine is not required to heal 97% disease. - #patriji Learn to work on #energy and #mind even surgical disease can be healed naturally. - #DrSRanjan
वह, जिसने महा माया को जीत लिया है, इन वरदानों को अपने ही विश्राम और आनंद के लिए, अपने ही सुअर्जित सुख और गौरव के लिए उपयोग नहीं करेगा? नहीं, ओ निसर्ग के गुह्य-विद्या के साधक, यदि कोई पवित्र #तथागत के चरण-चिह्नों पर चले तो वे वरदान और शक्तियां उसके लिए नहीं हैं। क्या तू उस नदी को बांध देगा, जिसका जन्म सुमेरु पर हुआ है? क्या तू उसके स्रोत अपने लिए और अपनी ओर बहाएगा या उस शिखर-श्रृंग के पथ से उसके मूल उदगम को वापस भेज देगा? यदि तू कठिन श्रम से उपलब्ध ज्ञान की उस स्रोतस्विनी को, स्वर्ग में जन्मी प्रज्ञा को प्रवाहमान रहने देना चाहता है, तो तुझे उसे एक ठहरा हुआ सरोवर बनने से बचाना होगा। जान कि यदि तुझे अमित युग के अमिताभ का सहयोगी बनना है, तो तुझे प्राप्त प्रकाश को, जुड़वें बोधिसत्वों की तरह तीनों लोक पर विकीर्णित करना होगा। जान कि अति मानवीय ज्ञान और देव-प्रज्ञा की इस धारा को, जिसे तूने अर्जित किया है, स्वयं से, आलय (परमसत्ता) की नहर के द्वारा, दूसरी नदी में प्रवाहित कर देना है। ओ, गुह्य-मार्ग के यात्री, नारजोल (#सिद्ध), जान कि इसके शुद्ध व ताजे जल से समुद्र की तीखी लहरों को--उस शोक समुद्र की खारी लहरों को जो मनुष्य के आसुंओं से बनी है--मधुर बनाना है। आह, जब तू एक बार उस सबसे ऊंचे आकाश का ध्रुवतारा बन गया है, तब उस स्वर्गीय प्रभामंडल को अंतरिक्ष की गहराइयों से, अपने सिवाय सबके लिए बिखेरना है। #प्रकाश सबको दे, किसी से भी ले मत। आह, जब एक बार तू पर्वत की घाटियों में शुद्ध तुषार जैसा हो गया है, जो ठंडा है और स्पर्श के लिए संवेदनाशून्य है, किंतु जो उसके हृदय में सोने वाले बीज के लिए गर्म और रक्षाकारी है, तब उस तुषार को स्वयं ही हड्डियों को छेदने वाले उन उत्तर के हिमपातों को पी जाना होगा, ताकि उनके तीखे व क्रूर दांतों से धरती की रक्षा की जा सके। उसी धरती #earth में वह फसल छिपी पड़ी है, जिससे भूखों को भोजन मिलेगा। oshoworld.com/samadhi-ke-sapat-dwar-15/
ध्यान-द्वार संगमरमर के कलश जैसा है--सफेद और पारदर्शी। उसके भीतर एक स्वर्णाग्नि जलती है, वह प्रज्ञा की शिखा है, जो आत्मा से निकलती है। तू ही वह कलश है। अब तूने अपने को इंद्रियों के विषयों से विच्छिन्न कर लिया है, तूने दर्शन-पथ तथा श्रवण-पथ की यात्रा कर ली है, और अब तू ज्ञान के प्रकाश में खड़ा है। अब तू तितिक्षा23 की अवस्था को उपलब्ध हो गया। ओ नारजोल (सिद्ध), तू सुरक्षित है। पापों के विजेता, एक बार किसी सोवानी24 अर्थात स्रोतापन्न ने सातवें मार्ग को पार कर लिया है, तब समस्त प्रकृति आनंदपूर्ण आश्चर्य से भर जाती है और पराजित अनुभव करती है। रजत-तारा अब जलते इशारों से रजनीगंधा को यह समाचार बताता है; झरना अपने कलकल स्वर में कंकड़ियों को यह कथा सुनाता है; सागर की काली लहरें गर्जन करके यही बात फेनिल चट्टानों को बताती हैं; गंध-भरी हवाएं घाटियों के कान में इसका ही गीत गाती हैं, और चीड़ के शानदार वृक्ष बड़े रहस्यपूर्ण ढंग से गुनगुनाते हैं: बुद्ध का उदय हुआ है--आज के25 बुद्ध का। अब वह पश्चिम में उज्ज्वल स्तूप की तरह खड़ा है, जिसके मुख पर शाश्वत भाव का उदीयमान सूर्य अपनी प्रथम महागौरवमयी किरणों को बरसा रहा है। उसका मन एक शांत और असीम सागर की तरह तटहीन अंतरिक्ष में फैलता जा रहा है। और वह जीवन और मृत्यु को अपने मजबूत हाथों में धारण किए है। समाधि का पांचवां द्वार है: वीर्य। oshoworld.com/samadhi-ke-sapat-dwar-14/
यदि तूने प्रयत्न किया और विफल हो गया, अदम्य लड़ाके, तो भी साहस न छोड़। लड़े जा और बारंबार युद्ध में जुटता रह। जिसके घावों से उसका कीमती जीवन-रक्त बह रहा हो, ऐसा निर्भीक योद्धा प्राण त्यागने के पहले शत्रु पर फिर-फिर आक्रमण करेगा और उसे उसके दुर्ग से निकाल बाहर करेगा। कर्म करो, तुम सब जो निष्फल और दुखी हो, उसकी तरह ही कर्म करो और निष्फल होने के बाद भी अपनी आत्मा के सभी शत्रुओं को--महत्वाकांक्षा, क्रोध, घृणा और अपनी वासना की छाया तक को--निकाल बाहर करो...। याद रहे, तू मनुष्य की मुक्ति21 के लिए युद्ध कर रहा है, अतः तेरे लिए प्रत्येक विफलता भी सफलता है। और प्रत्येक निष्ठापूर्ण प्रयत्न समय में पुरस्कृत होता है। शिष्य की आत्मा में जो पवित्र अंकुर उगते हैं और अनदेखे बढ़ते हैं, उनकी डालियां प्रत्येक परीक्षा से गुजर कर बड़ी होती हैं। और सरकंडे की तरह वे झुक जाती हैं, लेकिन कभी टूटती नहीं हैं और न वे कभी नष्ट हो सकती हैं। और जब समय आता है, तब उनमें फूल भी आ खिलते हैं।22 लेकिन यदि तू तैयारी करके आया है, तो भय की कोई बात नहीं है। यहां से सीधे वीर्य-द्वार के लिए रास्ता साफ हो जाता है, सप्त द्वारों में यह पांचवां द्वार है। अब तू उस राह पर है, जो ध्यानाश्रय या छठे बोधि-द्वार को जाती है। मनुष्य के जीवन में जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, वह है समय। समय--जो दिखाई भी नहीं पड़ता। समय--जिसकी कोई परिभाषा भी नहीं की जा सकती। समय--जो हमें जन्म से लेकर मृत्यु तक घेरे हुए है, वैसे जैसे मछली को सागर घेरे हुए है। लेकिन न जिसका हमें कोई स्पर्श होता है, न जो हमें दिखाई पड़ता है, न हम जिसका कोई स्वाद ले सकते हैं--हम निरंतर उसकी बात करते हैं। और कहीं गहरे में कुछ अनुभव भी होता है कि वह है। लेकिन जैसे ही पकड़ने जाते हैं परिभाषा में, हाथ से छूट जाता है। संत अगस्तीन ने कहा है कि समय बड़ा अदभुत है। जब मुझसे कोई पूछता नहीं, तो मैं जानता हूं कि समय क्या है, और जब मुझसे कोई पूछता है, तभी मैं मुश्किल में पड़ जाता हूं। आप भी जानते हैं कि समय क्या है, लेकिन कोई अगर पूछे कि समय क्या है, तो आप मुश्किल में पड़ जाएंगे। क्या है समय? oshoworld.com/samadhi-ke-sapat-dwar-13/
जब तू विराग की उस अवस्था को प्राप्त कर चुकेगा, तब वे द्वार, जिन्हें तुझे मार्ग पर चल कर जीतना है, तुझे अपने भीतर लेने के लिए अपना हृदय पूरा का पूरा खोल देंगे। प्रकृति की बड़ी से बड़ी शक्तियां भी तब गति को नहीं रोक सकेंगी। तब तू सप्तवर्णी मार्ग का स्वामी हो जाएगा; लेकिन, ओ परीक्षा के प्रत्याशी! उसके पहले यह संभव नहीं है। तब तक एक बहुत कठिन काम तुझे करना है: तुझे अपने को एक साथ सर्व-विचार भी अनुभव करना है और अपनी आत्मा से सर्व-विचारों को निष्कासित भी करना है। तुझे मन की उस स्थिरता को उपलब्ध होना है, जिसमें तेज से तेज हवा भी किसी पार्थिव विचार को उसके भीतर प्रविष्ट न करा सके। इस तरह परिशुद्ध होकर मंदिर को सभी सांसारिक कर्म, शब्द व पार्थिव रोशनी से रिक्त करना है। जिस प्रकार पाला की मारी तितली देहली पर ही गिर कर ढेर हो जाती है, उसी प्रकार सभी पार्थिव विचारों को मंदिर के सामने ढेर हो जाना चाहिए। ‘‘इसके पहले कि स्वर्ण-ज्योतिशिखा स्थिर प्रकाश के साथ जले, दीप को वायुरहित स्थान में सुरक्षित रखना जरूरी है। बदलती हवाओं के सामने होकर प्रकाश की धारा हिलने लगेगी और उस हिलती शिखा से आत्मा के उज्जवल मंदिर पर भ्रामक काली और सदा बदलने वाली छाया पड़ जाएगी।’’ - #osho #samadhi ke sapt dwar ओ सत्य के संधानी, तेरे मन, आत्मा जंगल में दौड़ते-फिरने वाले पागल हाथी की तरह हो जाएंगे। जंगल के वृक्षों को जीवित शत्रु मान कर पागल हाथी सूर्य से प्रकाशित चट्टानों पर नाचने वाली अस्थिर छायाओं को मारने की चेष्टा में ही समाप्त हो जाता है। सावधान हो, नहीं तो कहीं अहं की चिंता में देव-ज्ञान की भूमि पर तेरी आत्मा के पैर न उखड़ जाएं! सावधान हो, नहीं तो कहीं तेरी आत्मा परमात्मा को भूल अपने कांपते मन के ऊपर नियंत्रण न खो बैठे और इस प्रकार अपनी जीत का फल भी न गंवा दे। परिवर्तन से सावधान, क्योंकि परिवर्तन तेरा बड़ा शत्रु है। यह परिवर्तन लड़ कर तुझे तेरे मार्ग से निकाल बाहर करेगा और तुझे संदेह के दुष्ट दलदल में गाड़ देगा। और भी गहन कठिनाई सामने आनी शुरू होती है। जैसे ही हम जगत से अपनी चेतना को भीतर की तरफ मोड़ते हैं, वैसे ही क्या यथार्थ है और क्या अयथार्थ है, इसकी जांच कठिन हो जाती है। जैसे स्वप्न में होता है, स्वप्न में जो भी दिखाई पड़ता है, प्रतीत होता है यथार्थ है। क्योंकि मापदंड का कोई उपाय नहीं होता; कोई संगी-साथी साथ नहीं होते, कोई समाज नहीं होता, आप होते हैं अकेले, और जो आप देखते हैं, वह होता है। - #oshotalks समाधि के सप्त द्वार oshoworld.com/samadhi-ke-sapat-dwar-by-osho-01-19/