पहाड़ी सस्कृति चेन्नल के माध्यम से मै आप सभी बंधूओ को पहाड़ के लोक जागर दिखाने व् सुनाने का प्रयास करता हूँ,,, वर्तमान समय मे 99% युवा इन जागरों को समझ नही पाते हैं ,, यह हम सब का दुर्भाग्य ही हैं,,, प्राचीन काल से ही पहाड़ो मै किसी भी देवी देवता को इन्ही जागरों के माध्यम से याद किया जाता था,,और आज भी यह परम्परा पहाड़ मे कायम हैं, इन जागरों मे हमारी पहाड़ी संस्कृति छुपी हैं ,, भिन्न- भिन्न स्थानों पर अलग अलग प्रकार के जागर गाये जाते हैं,, जितने भी देवी देवताओं की हम पूजा करते हैं ,उन सभी देवताओं के अलग अलग जागर होते हैं, इन जागरों के माध्यम से देवतां मनुष्य के शरीर मे प्रवेश करते हैं ,, प्राचीन काल मे मनोरंजन के साधन न होने के कारण हमारे पूर्वज पूस के महीने की लम्बी लम्बी राते इन्ही जागरों को सुन के काटा करते थे ,,, जो कोई भी इन पहाड़ी जागरों को समझता हैं वो इंसान इन्हें सुन के भावुक हो उठता हैं और उसकी आँखे नम हो जाती हैं ,इस चेन्नल का एक ही मात्र एक ही उद्देश्य हैं कि हमारी युवा पीढ़ी इन जागरों को समझे और अपनी संस्कृति के संरक्षण मे हमारा सहयोग करें