मानव मात्र के दुर्गम पथ को आलोकित कर सुगम बनाने वाले, शुभ और मंगलकारी भावना के पोषक ,निर्मल-निर्दोष चित्त,करुणामयी,अति संवेदनशील,अप्प दीपो भव के संदेशवाहक, तमसो मा ज्योतिर्गमय के साधक, रहस्यदर्शी संत आचार्य श्री सत्येंद्र कुमार कराहती मानवता के लिये आशा क़ी किरण व अस्तित्व का वरदान हैं ।
योगस्थ: गुरु कर्माणि की साक्षात प्रतिमूर्ति आचार्य जी ने कठिन तपस्या और साधना से जो प्राप्त किया वह साधना का पुण्यप्रतिफल ध्यान शिविर और प्रवचनों के माध्यम से जन साधारण पर करुणावश लुटा देना चाहते हैं...
उठो,जागो...
अब नहीं तो कब?
आइये..आचार्य जी से जुड़कर चेतना के उच्चतम आयामों में स्थित होकर आनंदपूर्ण जीवन जीने क़ी कला सीखें,
आइये..जन्मों से तपते प्राणों को आचार्य जी के सान्निध्य रुपी गंगा क़ी धारा से शीतल करें... आइये..वेदना से विकल प्राणों को वेदों से तृप्त करें...
कैसी कोमल, निर्मल और प्रेरणादाई वाणी है आपकी! मन हर्षित हुआ जाता है। भक्त शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी की बैराग गाथा को इतनी सरलता से आपने कह दिया इसके लिए आपका कोटि आभार! 🙏🏻🙏🏻
जो मनुष्य सत्य बोलते हैं उनका हृदय निर्मल और निष्काम होता है, उनका व्यवहार कपट रहित होता है। श्रीराम के ऐसे भक्तों को कलियुग कभी भ्रमित नहीं कर सकता अर्थात उन्हें मोह माया के बंधनों में फंसाया नहीं जा सकता।
नाते नाते राम के राम सनेह सनेहु। तुलसी मांगत जोरी कर जनम जनम सिव देहु।। हे भोले शंकर, मैं हाथ जोड़कर वरदान मांगता हूं कि जन्म जन्मांतर में श्रीराम के नाते ही मेरा किसी से नाता हो और श्रीराम के प्रेम के कारण ही प्रेम हो।
जिनके हृदय श्रीराम बसे, तिन और का नाम लिया ना लिया। जिसकी प्रीति प्रभु राम से हो गई उसे फिर किसका मोह। जिस हंस ने मानसरोवर पा लिया उसे फिर ताल तलैये से क्या लेना!
आसक्ति ही दुख का मूल कारण है, अतः सांसारिक मायाजाल से दूर रहने में ही परम सुख है। श्रीराम इस संसार में रखना चाहते हैं इसलिए मोहरहित होकर रहना चाहिए। या तो संसार में राम के भक्त बनकर रहें या मुक्ति के लिए प्रयत्न करें।