मैने लगभग हर तरह की किताबों को पढ़ा जाना समझा है गहराई से - किताब धर्म, विज्ञान, इतिहास, भूगोल, गणित, मनोविज्ञान, सामाजिक विज्ञान या फिर कैसी भी क्यों ना हो और मै अभी इसी नतीजे पर पहुंचा हूँ कि किसी को सच नहीं मालूम है और ब्रह्मांड के नियमो की जानकारी नहीं है l यानी किसी को कुछ भी नहीं पता बस l सब बस अपनी अपनी बात बोल रहे हैं अपने दिमाग मे उठने वाले तूफानी विचारों से प्रभावित होकर और खुद को बिल्कुल ही सही मान रहे हैं और मुगालते मे जी रहे हैं l जबकि असल सच यह है कि किसी को कुछ भी नहीं पता है अगर हम पूरी तरह से वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सोचें तो l ब्रह्मांड बड़ा पेचीदा है और इसको समझने के लिए बहुत बड़ी करोडो तेज दिमागों के बराबर वाली अक्ल चाहिए जो अभी इंसानो के पास नहीं है l दरअसल अक्ल के मामले मे इंसान बस जानवरों से थोड़ा सा ही बेहतर है और इसी बेहतर अक्ल के दम पर उसने अपने फ़ायेदे के लिए अक्ल को इस्तेमाल किया है मगर अभी उसकी अक्ल इतनी तेज नहीं हुई है जो ब्रह्मांड के नियमों को जान और खोज सके l हमारा कम्पटीशन जानवरो से है और हम इंसान जानवरों से बेहतर हैं मगर असली सच इस ब्रह्मांड का हमको समझ मे नहीं आने वाला है क्योंकि हम इंसानो की अक्ल अभी बहुत छोटी ही है - हाँ जानवरों की अक्ल से थोड़ा बेहतर अक्ल है इंसानो की l अब तक बुद्दिमान इंसानो ने जो कुछ भी खोजा है वो सब सत्य और सच के सापेक्ष गलत ही है - ब्रह्मांड का सच जब भी मिलेगा वो बिल्कुल अलग और हमारी सोच से अलग ही होगा l तो आज मे पूरे जोर शोर से ये घोषणा कर सकता हूँ कि किसी को कुछ नहीं पता है इतना तो बस मुझको अब पता चल ही गया है l