"2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर मामले की सुनवाई में तेजी लाई और अपना फैसला सुनाया। इसके लिए कुछ कारक जिम्मेदार थे: राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव: यह मामला भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाली सरकार के तहत तेजी से आगे बढ़ा, जिसने लंबे समय से विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण की वकालत की थी। 2014 के बाद राजनीतिक माहौल और इस मुद्दे के शीघ्र समाधान की मांग और अधिक प्रबल हो गई थी। जनहित और दबाव: इस मामले का जनहित से गहरा संबंध था, और समाज के बड़े हिस्से ने इसका समाधान मांगना शुरू कर दिया। जैसे-जैसे मामला खिंचता गया, सुप्रीम कोर्ट को जनहित में जल्दी सुनवाई की याचिकाएँ मिलने लगीं। विभिन्न राजनीतिक और धार्मिक समूहों ने भी इस मुद्दे का शीघ्र निपटारा करने की मांग की। भारत के मुख्य न्यायाधीश का हस्तक्षेप: मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व में इस मामले की गति बढ़ी, जिन्होंने एक संविधान पीठ का गठन किया और इस मामले की दैनिक सुनवाई करने का निर्णय लिया ताकि इसे तेजी से निपटाया जा सके। लंबे समय से लंबित और समाज के महत्व के मुद्दे को देखते हुए कोर्ट ने अपने विवेकाधिकार से काम किया। मध्यस्थता प्रयास: अंतिम सुनवाई से पहले, सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों के बीच सौहार्दपूर्ण समाधान खोजने के लिए मध्यस्थता का प्रयास किया, लेकिन जब यह विफल रहा, तो कोर्ट ने सुनवाई में तेजी लाने का फैसला किया।"