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अखण्ड ब्रह्मचर्य की सिद्धि-जिव्या साधना से प्राप्त करें-स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी 

Swami Satyendra SatyaSahib Ji
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#Akhand brahmachary siddhiy#ब्रह्मचर्य सिद्धि कैसे प्राप्त करें-जिव्या साधना..
इस साधना के करने पर सभी हठयोग राजयोग के समस्त योग साधन की सहज प्राप्ति होती है,यो यही सहज साधना भी कहलाती है।साक्षी ओर सच्चा मोन से लेकर ब्रजोली अमरोली शाम्भवी योनि तालव्य खेचरी आदि सभी सिद्ध अवस्थाओं की सहज ही प्राप्ति होती है।तो आओ जाने।
जिव्या का अर्थ ही है-जीव के समस्त व्यवधान क्लेशों को काटने वाली परमगोपनीय साधना।
पहले ब्रह्मचर्य का अर्थ जाने की-ब्रह्म+ चर्य यानी ब्रह्म की चर्या यानी ब्रह्म का आचरण की ब्रह्म जो कि स्त्री और पुरुष की एक प्रेम युगल अवस्था का नाम है,परमावस्था।ओर उसका आचरण व उद्धेश्य क्या है,उसे जानकर कैसे कर्म और व्यावहार में लाये,वो ज्ञान क्या है,ये ज्ञान प्राप्ति ही शिक्षाकाल ब्रह्मचर्य अर्थ है?
ब्रह्मचर्य का पहला भाग है काम चक्र मूलाधार चक्र,जिसका पहला भौतिक व बाहरी अंग है-स्त्री व पुरुष की जनेन्द्रिय।
ओर इस मूलाधार चक्र यानी काम चक्र को शारारिक रूप से पोषित करने के लिए है-मुख ओर उसमें जीभ।ओर मुख्यतया जीभ ही मुख के अंदर भौतिक रसना इन्द्रिय है,तभी स्त्री के रज ओर पुरुष के वीर्य को निर्मित करने के लिए समस्त खाये खाद्य पदार्थो से रस और उसके आनन्द आदि को प्रदान करने सारा कार्य करती है।ओर स्त्री पुरुष के भोग विषय मे ये मुख मैथुन में प्रमुख भूमिका निभाती है,यो ये मुख सहित जीभ ही सबसे पहली कामेन्द्रिय भी है,तभी इसीके नियंत्रण को कहा जाता है।कि भई अपनी जीभ पर नियंत्रण करो।क्योकि जीभ से शब्द उच्चारण आदि ओर रस संचालन ओर प्राण वायु को ठंडा गर्म रखने के नियंत्रण का कार्य है,तभी ये मुख्य अंग है,यो ये जन्म से सक्रिय होने वाली काम इन्द्रिय है।ओर मनुष्य की जनेन्द्रिय में रस का उदय लगभग 12 साल की अवस्था मे होता है।जबकि जीभ पहले से इस सब पर कार्यरत है।अतः ब्रह्मचर्य की सिद्धि को जीभ को ही योग में साधन बनाया गया है।
जिसके
दो प्रकार है-1-जीभ को दोहन आदि करके तालु मूल में लगाना।
2-जीभ को सामान्य अवस्था मे ही ऊपर को खड़े करके तालु चक्र में लगाये रखने का योग ध्यान अभ्यास व्रद्धि करना।
3-जीभ के तीन मुख्य बिंदु पर अपने मन को एकाग्रता के साथ एक एक क्रम से यानी पहले जीभ के अग्र भाग पर,फिर मध्य भाग पर,फिर गले के अंदर जीभ के अंतिम भाग पर एकाग्र करते धारणा को बढ़ाते हुए ध्यान करना।
ये तीसरा ध्यान का अभ्यास की प्रमुख है,बाकी इसके अभ्यास से स्वयं होते है और जीभ को दोहन करके तालु मूल में लगाना हठयोग का असाधारण असाध्य ओर अत्यंत निगूढ़ खतरनाक विषय है।यो सच्चे योग में केवल आप जीभ के अग्र व मध्य व अंतिम भाग पर ध्यान करे,तो सभी कुछ सिद्ध होगा।
जीभ के विषय मे ऐसे ध्यान करने पर योगी लोग मंत्र यानी अपने चिंतन के साकार रूप का भी दर्शन करने की गुप्त सिद्ध करते है।
क्योकि जीभ का सम्बंध रस के साथ साथ भाव जगत से भी है-भाव जगत का पहला क्षेत्र है-ह्रदय क्षेत्र और उसके दो भाग-1-भौतिक ह्रदय-2-आध्यात्मिक ह्रदय जो सूक्ष्म शरीर मे कुंडलिनी जागरण के उपरांत प्रकट होता है।
अब कैसे ओर किस भाग में प्रमुखता के साथ कहाँ करें जीभ में ध्यान...
जीभ का मध्य भाग ही ध्यान का विषय रखे,इससे आपको जीभ का अग्र ओर अंतिम दोनों में एक साथ प्रवेश व नियंत्रण प्राप्त होगा।क्योकि जीभ का मध्य भाग ही सत ओर तम का रज रूपी यानी क्रिया शक्ति का क्षेत्र है।यो यहीँ ध्यान करें।
ओर इस ध्यान के अभ्यास को इतना नियंत्रण में कर ले कि खुली आंख से व काम करते हुए भी जीभ के मध्य में एक ध्यान के स्पर्श का अहसास यानी अनुभव होता रहे।ऐसा अभ्यास बार बार रुक रुक करते रहने पर धीरे धीरे अपने आप आ जायेगा।
इस जीभ के मध्य भाग में मन की निरन्तर धारणा व ध्यान के करते चलने से योग के परम् उच्चतर लाभ होंगे।
1-शरीर मे लगातार किसी भी प्रकार के परिश्रम से आई थकन को तुरन्त विश्राम मिल शांति मिलेगी।
2-काम चक्र पर नियंत्रण होकर आपका वीर्य व रज के अनावश्यक स्खलन पर नियंत्रण होगा।
3-आपको गन्दे डरावने स्वप्न बिल्कुल ही बन्द हो जाएंगे।
4-आपका कोई भी जपने वाला गुरु हो या इष्ट मंत्र का साकार रूप के दर्शन पहले स्वप्न में फिर प्रत्यक्ष रूप से अति शीघ्र ही होने लगेंगे।यो केवल अर्थ वाले सच्चे स्वप्न व दर्शन ही होंगे।ओर कब अच्छे व सच्चे स्वप्न ही आएंगे,तब आपका ह्रदय क्षेत्र यानी भाव क्षेत्र में काम भाव का शुद्ध भाव और उसके दर्शन यानी स्वप्न ही आएंगे और ब्रह्मचर्य अखंडता को प्राप्त होता चला जायेगा।
5-स्वास प्रश्व्वास पर नितन्त्रण होने से केवल कुम्भक की व्रद्धि होती चलेगी।नतीजा बहुत जल्दी ध्यान व समाधि की अवस्था प्राप्त होने लगेगी।क्योकि ह्रदय का सम्बंध जीभ से भी है और जीभ के नियंत्रण से काम क्रोध पर नियंत्रण होगा,परिणाम शुद्ध भाव और आध्यात्मिक ह्रदय चक्र की जागृति होगी।और समाधि की प्राप्ति होगी।
6-लो हो हाई ब्लडप्रेशर पर नियंत्रण होगा।
7-तालव्य योग यानी योनि सिद्धि में प्रवेश ओर सफलता मिलेगी।
8-पेट के समस्त रोगों पर शीघ्र नियंत्रण होकर लिवर,पेनक्रियाज,आंत व पाचन तंत्र से लेकर नाभि हटना आदि व जनेन्द्रिय के समस्त रोग स्वस्थ होकर पूर्ण स्वस्थता की प्राप्ति होती है।तब स्वयं ही ब्रह्मचर्य की पूर्ण सिद्धि होती है
9-सूक्ष्म जगत में तो सबसे अति शीघ्र प्रवेश होने से सूक्ष्म शरीर की अति शीघ्र प्राप्ति होती है।
10-सच्चा मोन ओर परम् शांति में प्रवेश से ले कर उसकी सच्ची प्राप्ति होगी।
इससे आगे तो भई भक्तो करोगे तो सब कहा प्रत्यक्ष पाओगे।बस यहां बताया करो।
यहिं है,खेचरी मुद्रा व योनि मुद्रा ओर रसायन सिद्धि का परमगोपनीय रहस्य का योग विज्ञान व सिद्धि प्राप्ति।जो अनेक वर्षों तक गुरु की बड़ी विकट सेवा के बाद एक एक क्रम से विद्या के रूप में आपको यहां मेने सहजता से दी है।अब बिना किंतु परन्तु के बस इस सत्संग को बार बार सुनकर करें।

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4 июн 2019

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