भारत में जो भी रह रहे हैं वे सभी ऋषि और मुनियों
की संतानें हैं। चाहे वह सूर्यवंशी हो, असुरवंशी हो,
चंद्रवंशी हो या अन्य किसी भी कुल से हो। ऋषियों
में बहुत से ऐसे ऋषि थे जिन्होंने वेदों को संभालने
के लिए वेदों के विभाग करने उन्हें अनेक शाखाओं
में विभक्त करके सभी को अलग अलग वेद, शाखा
आदि को कंठस्थ कराकर उन्हें यह शिक्षा दी की
आप अपनी पढ़ियों को भी वेद की उक्त शाखा को
कंठस्थ कराएं। इस तरह ब्राह्मण कुल के अलग
अलग समाज का निर्माण होता गया।
वर्तमान में यदि कोई जानकार अपना परिचय देगा
तो अपना गोत्र, प्रवर, वेद, शाखा, शर्म, देवता,
आवंटक आदि को बताना होगा। अब हम जानते
हैं कि यह सब क्या होता है।
1.गोत्र : गोत्र का अर्थ है कि वह व्यक्ति किस
ऋषि के कुल का है। जैसे किसी ने कहा कि मेरे
गोत्र भारद्वाज है तो उसके कुल के ऋषि
भारद्वाज हुए। अर्थात भारद्वाज के कुल से
संबंध रखता है। भारद्वाज उसके कुल के आदि
पुरुष है। इसी तरह कोई इंद्र, सूर्य या चंद्रदेव से
तो कोई हिरण्याक्ष या हिरण्यकशिपु से संबंध
रखता है तो कोई महान राजा बलि की संतान
है। हालांकि सभी ऋषि अंगिरा, भृगु, अत्रि,
कश्यप, वशिष्ठ, अगस्त्य, कुशिक आदि
ऋषियों की ही संताने हैं।
गोत्रों के अनुसार ईकाई को 'गण' नाम दिया
गया। एक गण का व्यक्ति दूसरे गण में विवाह
कर सकता है। इस प्रकार जब कालांतर में
गणों के कुल के लोगों की संख्या बढ़ती गई
तो फिर उनमें अलग अलग भेद होते गए।
संख्या बढ़ने के साथ ही पक्ष और शाखाएं
बनाई गई। इस तरह इन उक्त ऋषियों के
पश्चात उनकी संतानों के विद्वान ऋषियों के
नामों से भी अन्य गोत्रों का नामकरण प्रचलित
हुए। जैसे अग्नि नाम का एक गोत्र या वंश है।
अग्नि के पुत्र अंगिरा हुए जिनके नाम का भी
गोत्र या वंश चला। फिर अंगिरा के पुत्र
बृहस्पति हुए और बृहस्पति के पुत्र भारद्वाज
हुए जिनके नाम का भी गोत्र या वंश चला।
गोत्रों से व्यक्ति और वंश की पहचान होती है।
वंश से इतिहास की पहचान होती है। वे लोग
धन्य है जिन्होंने अपने कुल धर्म को नहीं
छोड़ा है।
2.प्रवर : प्रवर के वैसे तो अर्थ श्रेष्ठ होता है।
गोत्रकारों के पूर्वजों एवं महान ऋषियों को
प्रवर कहते हैं। जैसे भारद्वाज ऋषि के वंश
में अपने कर्मो द्वारा कोई व्यक्ति ऋषि होकर
महान हो गया है जो उसके नाम से आगे
वंश चलता है। यह मील के पत्थर जैसे है।
मूल ऋषि के कुल में तीन, पांच या सात
आदि महान ऋषि हो चले हैं। मूल ऋषि के
गोत्र के बाद जिस ऋषि का नाम आता है
उसे प्रवर कहते हैं।
3.वेद- वेदों की रचनाएं ऋषियों के
अंत:करण से प्रकट हुई थी। उस काल में
सिल्लाओं के अलावा लिखने का और कोई
साधन नहीं था। ऐसे में उनी ऋचाओं की
रक्षा और संवरक्षण हेतु एक परंपरा का
प्रचलन हुआ। वह यह कि उसे सुनाकर ही
दूसरे को याद कराया जाए और इस तरह
वह कंठस्थ कर ली जाए। चूंकि चारों वेद
कोई एक ऋषि याद नहीं रख सकता था
इसलिए गोत्रकारों ने ऋषियों के जिस भाग
का अध्ययन, अध्यापन, प्रचार प्रसार,
आदि किया उसकी रक्षा का भार उसकी
संतान पर पड़ता गया इससे उनके पूर्व
पुरुष जिस वेद ज्ञाता थे तदनुसार
वेदाभ्यासी कहलाते हैं।
4.शाखा- मान लो कि किसी एक ऋषि
की कुल संतान को एक ऋग्वेद के ही
संवरक्षण का कार्य सौंप दिया गया तो
फिर यह भी समस्या थी कि इतने
हजारों मंत्रों को कोई एक ही याद करके
कैसे रखे और कैसे वह अपनी अगली
पीढ़ी को हस्तांतरित करें। ऐसे में वेदों
की शखाओं का निर्माण हुआ। ऋषियों
ने प्रत्येक एक गोत्र के लिए एक वेद के
अध्ययन की परंपरा डाली थी, कालांतर
में जब एक व्यक्ति उसके गोत्र के लिए
निर्धारित वेद पढ़ने में असमर्थ हो जाता
था तो ऋषियों ने वैदिक परंपरा को जीवित
रखने के लिए शाखाओं का निर्माण किया।
इस प्रकार से प्रत्येक गोत्र के लिए अपने
वेद की उस शाखा का पूर्ण अध्ययन करना
आवश्यक कर दिया। इस प्रकार से उन्होंने
जिसका अध्ययन किया, वह उस वेद की
शाखा के नाम से पहचाना गया। मतलब
यह कि उदाहरणार्थ किसी का गोत्र अंगिरा
, प्रवर भारद्वाज और वेद ऋग्वेद एवं ऋग्वेद
की 5 शाखाओं में से उसकी शाखा शाकल्प
है।
इसी तरह सूत्र होता है, व्यक्ति जब शाखा के
अध्ययन में भी असमर्थ हो गया, तब उस
गोत्र के परवर्ती ऋषियों ने उन शाखाओं को
सूत्र रूप में बांट दिया। फिर देवता, देवता
प्रत्येक वेद या शाखा का पठन, पाठन करने
वाले किसी विशेष देव की आराधना करते
हैं वही उनका कुल देवता या उनके आराध्य
देव है। इसी प्रकार कुल-देवी होती हैं। इसका
ज्ञान अगली पीढ़ी को दिया जाता है। इसके
अलावा दिशा, द्वार, शिखा, पाद आदि भेद
भी होते हैं। उक्त अंतिम भेद से यह पता
लगाया जा सकता है कि यह व्यक्ति किस
कुल का है, कौन से वेद की कौनसी शाखा के
कौन से सूत्र और कौन से सूत्र के कौन से देव
के ज्ञान को संवरक्षित करने वाला है।
वर्तमान में यह ज्ञान या यह जानकारी बहुत
कम ब्राहमणों हो ही रह गई है तो अन्य समाज
के बारे में सोचा नहीं जा सकता है कि उन्होंने
अपने कुल खानदान का क्या क्या खो दिया है।
लेकिन यदि कोई यह जानना चाहे तो अंतिम
भेद यदि वह जान ले तो प्रथम पर आसानी से
पहुंचा जा सकता है।
#brahman
#gotra
#pravar
#veda
8 янв 2022