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आईए जानते हैं कैसे बनी इतनी बड़ी एथली प्लेयर P.T. USHA |  

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आज अगर भारत में किसी से भी तेज दौड़ने वाली महिला के बारे में पूछा जाए तो बच्चे बच्चे के मुंह से सबसे पहले पीटी उषा का नाम आता है। पीटी ऊषा ने लगभग दो दशकों तक भारत को एथलीट के खेल में सम्मान दिलाया है।
P.T. Usha को किसी भी परिचय की आवश्यकता नहीं है। पीटी उषा ने लगभग दो दशक तक सबसे तेज दौड़ने वाली महिला के रूप में भारत को बहुत सम्मान दिलाया है। उन्होंने एथलीट के खेल में ओलंपिक में गोल्ड
मेडल हासिल किया है। आज पीटी ऊषा केरल में एक एथलीट स्कूल चलाती है और अन्य बच्चों को इस मुकाम तक पहुंचने में मदद करती है।
नमस्कार दोस्तों आपका सुआगत है हमारे यूट्यूब चेंनल गेम विमिंग मंत्र मै जिसमे हम बताते गेम से जुड़े विशेष मुद्दों को और गेम जितने केअनेक मंत्रों को | तो आज हम अपनी इस वीडियो में बात करने वाले है जानी मानी भारतीय महिला
खिलाडी PT उषा के खेलो से जुड़े उनके प्रेडनादायक किस्सों के बारे में जिनसे अभी तक आपसभी होंगेअनजान लेकिन दोस्तों वीडियो शुरू करने से पहले अगर आपने हमारे यूट्यूब चेंनल गेम विनिंग मंत्र को अभी तक सब्सक्राइब
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पर मिलती रहे तो इसी के साथ चलिए फ्रेंड्स जानते हे भारतीय महिला खिलाडी PT से जुडी उनके जीवन और खेलो से जुडी दिलचस्प खबरों को
तो फ्रेंड्स,
पीटी उषा का पूरा नाम पिलाउल्लाकांडी थेक्केपरांबिल उषा है। - पीटी उषा भारत की महानतम एथलीटों में से एक हैं, जिन्हें अक्सर देश की "क्वीन ऑफ ट्रैक एंड फील्ड" कहा जाता है।
पीटी उषा लंबे स्ट्राइड के साथ एक बेहतरीन स्प्रिंटर थीं। वो 1980 के दशक में अधिकांश समय तक एशियाई ट्रैक-एंड-फील्ड इवेंट्स में हावी रहीं। जहां उन्होंने कुल 23 पदक जीते, जिनमें से 14 स्वर्ण पदक थे। जहां भी वो दौड़ने जाती,
वो दर्शकों की फेवरेट बन जाती थीं।
केरल के कुट्टाली गाँव में जन्मी, पीटी उषा ने पास के पय्योली में अध्ययन किया। बाद में उनको निकनेम के रूप में ’द पय्योली एक्सप्रेस’ का नाम मिला। उनकी प्रतिभा का पता तब चला जब वो महज नौ साल की थीं।
एक स्कूल की दौड़ में चौथी कक्षा के छात्रा ने देखते ही देखते स्कूल के चैंपियन को हरा दिया, जो उससे तीन साल सीनियर था। इसने शिक्षकों को हैरान कर दिया। अगले कुछ सालों में उनकी क्षमताओं ने उन्हें स्पोर्ट्स स्कूलों के पहले बैच
में से जगह दिलाई, जिसे केरल सरकार ने स्थापित किया था।
पीटी उषा ने राज्य और नेशनल गेम्स में अपना दबदबा कायम रखा और 16 साल की उम्र में ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली तत्कालीन सबसे कम उम्र की एथलीट बन गईं, जब उन्हें मास्को में 1980 के खेलों के लिए
भारतीय दल में शामिल किया गया था।
उषा तब फाइनल के लिए क्वालिफाई नहीं कर सकी थीं, लेकिन 1982 के एशियाई खेलों में भारतीय दर्शकों का दिल जीत लिया, जब उन्होंने 100 मीटर और 200 मीटर में रजत पदक जीता।
वो 1983 की एशियाई चैंपियनशिप में 200 मीटर में रजत पदक जीतने मे कामयाब रहीं और जब उन्होंने 400 मीटर में स्वर्ण पदक जीता, तो उनके कोच ओ.एम. नांबियार ने सुझाव दिया कि वह 400 मीटर बाधा दौड़ की कोशिश करें।
ये भारत के सबसे यादगार ओलंपिक क्षणों में से एक को ट्रैक पर लाएगा।
लॉस एंजेलिस 1984 में एक फिट, बेहतर-प्रशिक्षित पीटी उषा फिर से अपनी छाप छोड़ने के लिए तैयार थीं।
क्वालिफाइंग में प्रभावशाली प्रदर्शन के साथ 400 मीटर बाधा दौड़ के फाइनल में पहुंचने के बाद, उषा केवल एक सेकंड से भी कम समय से कांस्य पदक से चूक गईं।
एक गलत शुरुआत पर काबू पाने के बाद, भारतीय 100 मीटर स्प्रिंट की तरह अंतिम समय में दौड़ी थीं। हालांकि उनका पैर कांस्य विजेता क्रिस्टियाना कोजोकारू से आगे था, लेकिन उन्होंने अपनी छाती को फिनिश लाइन से आगे
नहीं किया था।
ये एक ऐसा पल था जिसने पीटी उषा को खेल की बुलंदियों पर पहुंचा दिया और महज 20 साल की उम्र में खेलों की दुनिया में उन्होंने अपना नाम बनाया। इससे भी महत्वपूर्ण बात ये बात थी कि देश एथलेटिक्स की की ओर बढ़ने लगे।
जकार्ता में 1985 की एशियाई चैंपियनशिप में पीटी उषा ने पांच स्वर्ण पदक और एक कांस्य पदक जीते और ये सारे पदक उन्होंने पांच दिनों के अंतराल जीता, उनके अंतिम दो स्वर्ण एक-दूसरे के आधे घंटे के भीतर आए।
सियोल 1986 के एशियन गेम्स में उन्होंने चार स्वर्ण पदक और एक रजत पदक जीते, जिनमें से प्रत्येक एशियाई रिकॉर्ड समय के साथ दर्ज हुआ था। इन दोनों एशियाई राजधानियों में उन्होंने अपने नाम की गुंज सुनी।
हालांकि, दो साल बाद सियोल 1988 ओलंपिक में उषा पिछले चार साल के अपने कारनामों को दोहरा नहीं सकीं। अपनी शुरुआती हीट में सातवें स्थान पर रहीं।
उषा ने 1990 में संन्यास की घोषणा की, लेकिन उससे पहले उन्होंने 1989 के एशियाई चैंपियनशिप और 1990 के एशियाई खेलों में चार स्वर्ण और पांच सिल्वर अपने नाम किया।
हालांकि कहानी में एक मोड़ आना बाकी था। चार बार के ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता एवलिन एशफ़ोर्ड से प्रेरित और उनके पति श्रीनिवासन (एक पूर्व राष्ट्रीय कबड्डी खिलाड़ी) से सहयोग मिलने के बाद, पीटी उषा ने ट्रैक पर
वापसी करने का फैसला किया।
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Опубликовано:

 

11 фев 2024

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