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आख़िर क्या था उस तरबूज का रहस्य..Acharya Chatursen Shashtri ~"कहानी ख़त्म हो गयी" 

InspiredCorner : किस्से कहानियों का कोना by Shweta
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आख़िर क्या था उस तरबूज का रहस्य..Acharya Chatursen Shashtri ~"कहानी ख़त्म हो गयी"
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Опубликовано:

 

6 сен 2024

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Комментарии : 26   
@sangeetamishra.
@sangeetamishra. Месяц назад
बहुत ही बढ़िया 🎉🎉
@ChandanKumar-zq2lv
@ChandanKumar-zq2lv 8 месяцев назад
Aapki kahani pathan Adhbhut hai...Mera Pranaam hai aapko🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
@InspiredCorner
@InspiredCorner 8 месяцев назад
🙏🏻आभार चंदन जी 🌹🙏🏻
@sarojpandey7933
@sarojpandey7933 8 месяцев назад
जमींदारी के समय की एकदम सजीव और मार्मिक कहानी
@InspiredCorner
@InspiredCorner 8 месяцев назад
जी सरोज जी 🙏🏻 धन्यवाद 🌹
@vineetsarathefinancialadvi3925
@vineetsarathefinancialadvi3925 8 месяцев назад
Aap ka kahani padne ka andaj bahut sarahneey hai💐🙏
@InspiredCorner
@InspiredCorner 8 месяцев назад
Thankyou Vineet ji🙏🏻🙏🏻
@dr.shreeranjansooridevakav1958
@dr.shreeranjansooridevakav1958 6 месяцев назад
Marmik kahani ❤
@InspiredCorner
@InspiredCorner 6 месяцев назад
🙏🏻Bahut bahut dhanyawad 🌹
@user-cu6bh5lt5l
@user-cu6bh5lt5l 8 месяцев назад
Nice voice ❤
@InspiredCorner
@InspiredCorner 8 месяцев назад
Thankyou so much 🙏🏻
@ElizabethMathewiiind
@ElizabethMathewiiind 8 месяцев назад
Various writers yet literary angle varied but nice
@InspiredCorner
@InspiredCorner 8 месяцев назад
Thankyou so much Elizabeth ji 🌹🙏🏻
@rupikakumari6901
@rupikakumari6901 6 месяцев назад
Mai to ek din me hi 3,4 kahani sun leti hu. Story come per jaati h.
@InspiredCorner
@InspiredCorner 6 месяцев назад
😇😄Rupika ji bahut sari stories hai mere channel per, kum nahi padehi 😇😇 Dhanyawad meri sunai kahaniyan pasand karne ke liye 🙏🏻
@rakhireallife3415
@rakhireallife3415 8 месяцев назад
Mam aapki badi kirpa hogi agr btay ki aap record phone m krti h.,ya kisi or ye thumbnail kesa bnate hai Please btaiye Koi hai jo bta sakte hai 😮
@InspiredCorner
@InspiredCorner 8 месяцев назад
Mai blue yeti mic use karti hu par shuruwat me phone per hi record karti thi 🙏🏻 thumbnail ke liye canva use karti hu 🙏🏻
@hpdancer23
@hpdancer23 8 месяцев назад
Part 2. वह किस से साथ जाए||| किस सहायता मांगे||| यही सोचते हुए घनश्याम आगे बढ़ता जा रहा था||| रात काफी हो चुकी थी|| अकेले इस वीरान रास्ते पर चलना खतरे से खाली नहीं था|| घनश्याम ने सोचा कहीं आश्रम मिले तो आज की रात वहीं रुक जाऊं|| उसने चारों ओर देखा कुछ दूर जाकर उसे उसे एक मकान दिखा||| मकान की बत्ती जल रही थी शायद कोई अभी सोया नहीं था||| उसे आशंका थी कि क्या वह मुझे आश्रय देंगे|| वह मकान के द्वार पर पहुंचा |||और उसने दरवाजा खटखटाया||| अंदर से आवाज आई:- कौन है || घनश्याम ने कारण स्वर में कहा:- मैं एक राहगीर दरवाजा|| खुला अंदर से एक अंधेड उम्र का व्यक्ति बाहर आया||| उम्र लगभग 44 होगी|| मुंह पर झुर्रियां पड़ने लगी थी||| व्यक्ति ने विनम्र पूर्वक कहा,:- क्या चाहते हो| घनश्याम ने डरते डरते कहा:- मुझे यहां एक रात का आश्रम मिल सकता है || युवक ने कहा :- अवश्य, तुम यहां रह सकते हो|| तुम्हारा क्या नाम है युवक ने पूछा||| मैंने भी उसी प्रकार विनय पूर्वक कहा:- मेरा नाम घनश्याम है||| व्यक्ति मुझे अंदर ले गया|| उसने प्रेम पूर्वक मेरा आदर किया|| उसने अंदर जाकर कहा:- भोजन करना चाहोगे|| मैंने कहा:- अवश्य ,रास्ते भर से भूखा हूं| कुछ खाया नहीं है| युवक ने कहा:- अवश्य, मैं अभी लेकर आता हूं| युवक बाहर चला गया|| मैं उसे कमरे को देखने लगा|| कमरा बड़ा विचित्र था एक भी खिड़की नहीं थी ||मात्र एक दरवाजा था जो बाहर की ओर को खुलता था|| वह भी दो हाथ का ||और दीवार में एक छोटा सा छेद था||जिस से बाहर देखा जा सकता था||| कमरे में अंधेरा था||| बस एक लालटेन जल रही थी||| कभी-कभी लालटेन की बत्ती इतनी मंद हो जाती की कुछ दिखाई ना पड़ता|| और कभी-कभी पूरे कमरे को रोशनी से भर देती||में इसी में खोया हुआ था || तभी युवक ने कहा:- कहा खोए हो| भोजन कर लो| मैं तुम्हारे लिए भोजन लेकर आया हूं| समाज ने सदा मुझे कटु वचनों से संबोधित किया|| लेकिन युवक की प्रेम भावना को देखकर|| मैं उसे पर मोहित हो गया ||भोजन में ज्यादा कुछ तो था|| नहीं बस दाल और रोटियां थी परन्तु प्रेम पूर्वक मिलने पर दाल रोटियां||| भी बड़े-बड़े पकवानों के समान लग रही थी||| युवक ने मेरे सामने थाली रखकर कहा बस यही है||| हमारे पास अगर आप इसे ग्रहण करना चाहे तो|| एक -दूसरे के घर में कड़ी मेहनत करने के बाद दो रोटी नसीब होती थी|| वह भी गालियां समेत ||प्रेम को देखकर मेरा मन व्यथित हो उठा जी चाहता था|| कि युवक को गले लगा ||||कर अपनी सारी पीड़ा कह दूं||| परंतु अपनी आंखों के समंदर को रोक कर|| मैंने कहा :- जी, अवश्य आपकी बड़ी कृपा जो आपने मुझे भोजन दिया|| अगर संभव हुआ तो मैं आपकी रोटी का मूल्य जरूर चुकाऊंगा||| युवक बोला:- इसमें कृपा की क्या बात है||| घर आए मेहमान को भोजन तो करना ही चाहिए || अवश्य चुकाना|| अब तुम भोजन कर लो||| युवक की बातें ऐसी लग रही थी||| जैसे वह मेरे वर्षों से हुए धावो पर मरहम लगा रही हो||| क्या कहूं कैसी मधुर वाणी थी|| कैसी सहजता|| कैसी सरलता |||कैसा प्रेम पूर्ण आचरण||| मैंने भोजन किया||| और फिर युवक और मेरे बीच बहुत सारी बातें हुई||| युवक की एक-एक बात में इतनी मधुरता थी||| मैं उसमें खो- सा गया|| युवक ने कहा:- तुम सो जाओ|| इतना कहकर युवक कमरे से चला गया। मैंने लालटेन को बुझा दिया|| और खटिया पर लेट गया |||मैं लेटे लेटे अपने अतीत के बारे में सोच रहा था|| कल तक जिस प्रेम के मारे तड़प उठता था|| वह प्रेम मिला तो केवल एक रात्रि के लिए ||धन्य है तेरी माया|| हे ईश्वर! अपनी अतीत के बारे में सोचते सोचते ना जाने|| कब मैं निंद्रा मग्न हो गया|| कुछ पता ही नहीं चला|| अक्समात मुझे कुछ आवाज सुनाई दी|| और मेरी निंद्रा भंग हो गई|| मैंने उसे आवाज को गोर से सुनने की कोशिश चलते कदमों की आवाज आ रही थी|| मैंने दीवार के छेद से देखने की कोशिश|| की तुम मुझे कुछ दिखाई दिया मुझे|| क्या परछाई? काली परछाई? बहुत सारे लोगों की परछाई? और परछाई में साफ दिखाई दे रहा है| कि उनके हाथ में यह क्या है? क्या बंदूक है? हां हां बंदूक ही है| मगर यह यहां कर क्या रहे हैं? क्या यह कोई टुकड़ी है? सेना के टुकड़ी या आतंकवादियों की ? तभी मेरी नज़र युवक पर पड़ी| और कुछ कमांड दे रहा था| साफ-साफ सुनाई नहीं दिया| मगर कुछ सुनाई पड़ रहा था| भाइयों आज हम जर्नल राइटर को मार कर उसे चौकी पर कब्जा कर लेंगे| और अपने अपने साथियों सहित मीरगंज में बम से हमला कर देंगे| और पूरी मीरगंज को जलाकर राख कर देंगे| भाइयों हमें कानून से सरकार से अपनी एक-एक आतंकवादी का बदला लेना है| इस घटना के बाद सरकार हमारे कब्जे में आ जाएगी|| और मीरगंज पर हमारा राज होगा||
@InspiredCorner
@InspiredCorner 8 месяцев назад
वाह बहुत खूब.. क्या यह कहानी आपने लिखी है?
@Himanshupal-ei4ru
@Himanshupal-ei4ru 6 месяцев назад
​@@InspiredCorner हा आप यदि इसका वाचन करे तो आपकी बड़ी कृपा होगी मै आपको पूरी कहानी भेज दूंगा आप अपनी email id बता दीजिए
@hpdancer23
@hpdancer23 6 месяцев назад
​@@InspiredCornerPart 1 लीजिए ,सुनिए मेरी यानी हर्षपाल की लिखी कहानी ‌‌‍‌"अच्छा मूल्य चुकाया " इस कहानी में लेखक ने समाज की रुढ़वादिता और गरीब की सत्यता उदारता| और प्रेम की भावना को प्रकट किया है||| सावन का मौसम था |||फूल मुस्कुरा रहे थे |||कालिया खेल रही थी कभी-कभी मंद बारिश की बूंदे दिखाई देती|| तो कभी विलुप्त हो जाती|| आज प्रातकाल से ही मूसलाधार वर्षा हो रही थी|| घनश्याम बढ़ते हुए कदमों को तेज करते हुए ||अपने घर की ओर जा रहा था उसका सारा शरीर कीचड़ से सना हुआ था |||घनश्याम एक 14 वर्षीय बालक है|| यह इस कहानी का नायक है|||| घनश्याम का जन्म पंडित राम प्रताप के यहां हुआ ||||वह एक गरीब ब्राह्मण थे|||| पुत्री के विवाह में रिश्तेदारों से कर्ज लिया||| और उसकी पूर्ति ने करने के कारण आत्महत्या कर ली|||| माता ने भी अपने को पंचमहाभूत में विलीन कर लिया||| असहाय अकेली स्त्री के वश में क्या होता||| क्या कर सकती थी ||जो कर सकती थी सो किया||| घनश्याम उनका इकलौता पुत्र था|| प्रतिष्ठा की आड़ में उसका सब कुछ लुट गया||| अब किसकी प्रतिष्ठा|| किसका सम्मान|| क्या यही जीवन है||| की अपनी सम्मान और प्रतिष्ठा के लिए अपना सारा जीवन कुर्बान कर दें||| अब कौन अपमान करेगा||| इसका अपमान करेगा |||उसका जो अभी संसार में नहीं रहा|||| किस़़से अपनी धन की वसूली करेगा|||| उससे जिसने अपने सम्मान और प्रतिष्ठा के लिए अपने जीवन को कुर्बान कर दिया||| काल की दृष्टि बहुत ही भयानक होती है||| न जाने किस बात|| किस दृश्य और किस विचार से वह हमारी प्रमाण छीन ले||| काल का चक्र घनश्याम के जीवन पर ऐसा पड़ा|| कि कल तक जिसके साथ उसके माता-पिता उसका पूरा परिवार था||| आज वह असहाय की की भांति| अपने जीवन रूपी एक पहाड़ को अपने कंधों पर उठाए हुए है|||हाय, क्या खेल है तेरी माया का|| जब तू देता है तो सारा संसार कदमों में रख देता है ||||और जब तो लेता है तो उम्र का ख्याल भी नहीं रखता||| निष्ठुर बड़ी प्रवृत्ति है तेरी|||वह किस से साथ जाए||| किस सहायता मांगे||| यही सोचते हुए घनश्याम आगे बढ़ता जा रहा था||| रात काफी हो चुकी थी|| अकेले इस वीरान रास्ते पर चलना खतरे से खाली नहीं था|| घनश्याम ने सोचा कहीं आश्रम मिले तो आज की रात वहीं रुक जाऊं|| उसने चारों ओर देखा कुछ दूर जाकर उसे उसे एक मकान दिखा||| मकान की बत्ती जल रही थी शायद कोई अभी सोया नहीं था||| उसे आशंका थी कि क्या वह मुझे आश्रय देंगे|| वह मकान के द्वार पर पहुंचा |||और उसने दरवाजा खटखटाया||| अंदर से आवाज आई:- कौन है || घनश्याम ने कारण स्वर में कहा:- मैं एक राहगीर दरवाजा|| खुला अंदर से एक अंधेड उम्र का व्यक्ति बाहर आया||| उम्र लगभग 44 होगी|| मुंह पर झुर्रियां पड़ने लगी थी||| व्यक्ति ने विनम्र पूर्वक कहा,:- क्या चाहते हो| घनश्याम ने डरते डरते कहा:- मुझे यहां एक रात का आश्रम मिल सकता है || युवक ने कहा :- अवश्य, तुम यहां रह सकते हो|| तुम्हारा क्या नाम है युवक ने पूछा||| मैंने भी उसी प्रकार विनय पूर्वक कहा:- मेरा नाम घनश्याम है||| व्यक्ति मुझे अंदर ले गया|| उसने प्रेम पूर्वक मेरा आदर किया|| उसने अंदर जाकर कहा:- भोजन करना चाहोगे|| मैंने कहा:- अवश्य ,रास्ते भर से भूखा हूं| कुछ खाया नहीं है| युवक ने कहा:- अवश्य, मैं अभी लेकर आता हूं| युवक बाहर चला गया|| मैं उसे कमरे को देखने लगा|| कमरा बड़ा विचित्र था एक भी खिड़की नहीं थी ||मात्र एक दरवाजा था जो बाहर की ओर को खुलता था|| वह भी दो हाथ का ||और दीवार में एक छोटा सा छेद था||जिस से बाहर देखा जा सकता था||| कमरे में अंधेरा था||| बस एक लालटेन जल रही थी||| कभी-कभी लालटेन की बत्ती इतनी मंद हो जाती की कुछ दिखाई ना पड़ता|| और कभी-कभी पूरे कमरे को रोशनी से भर देती||में इसी में खोया हुआ था || तभी युवक ने कहा:- कहा खोए हो| भोजन कर लो| मैं तुम्हारे लिए भोजन लेकर आया हूं| समाज ने सदा मुझे कटु वचनों से संबोधित किया|| लेकिन युवक की प्रेम भावना को देखकर|| मैं उसे पर मोहित हो गया ||भोजन में ज्यादा कुछ तो था|| नहीं बस दाल और रोटियां थी परन्तु प्रेम पूर्वक मिलने पर दाल रोटियां||| भी बड़े-बड़े पकवानों के समान लग रही थी||| part 2 next comment me
@archanarao8585
@archanarao8585 8 месяцев назад
Sihar uthi Mai. Laga tha par ye insan itna paaji kaise nikla
@InspiredCorner
@InspiredCorner 8 месяцев назад
जब आपको किसी किरदार से नफ़रत हो जाये तो समझिये लेखक की मेहनत सफल हो गयी 🤗बहुत धन्यवाद अर्चना जी 🌹🙏🏻
@hpdancer23
@hpdancer23 8 месяцев назад
Part 3 हमारा यह कहकर युवक हंसने लगा|| कैसी भयानाक हंसी थी|| समझ नहीं आ रहा था|| की कुछ देर पहले जिस व्यक्ति से करुणा के भाव झलकते थे|| वह इतना क्रुर होगामेरी आशाओं का ऐसा घड़ा फूटेगा|| अगर मैं जानता तो इस व्यक्ति से कभी आशा ने बांधता||| अभी कभी व्यक्ति के आचरण से हम उसके अंदर के भावों को जाने बिना|| उसे मोह कर बैठते हैं||| और उसका इतना भयानक परिणाम होता है|| इसका ज्ञान मुझे आज जाकर होआ| मैं युवक की बातों को सुनने लगा| तभी एक आदमी ने युवक से पूछा सरदार सुनना है| आपने किसी को आश्रय दिया है | विजेंद्र एक 14 साल का बच्चा है| प्यारा बच्चा है |अभी सो रहा है |सुबह ही उठेगा| तब तक हम अपना काम कर चुके होंगे सुबह होते हैं| यहां से चला जाएगा|| उसके माता-पिता नहीं है|| वह बहुत गरीब है ||विजेंद्र, गरीबी भी क्या कुछ नहीं कराती गरीबी के कारण ही लोग हमसे डरते हैं|| और हम उन्हें लूटते हैं|| लोगों को भयानक लगते हैं|| सब गरीबी की माया है |||क्या हमारा मन नहीं कि हम एक सम्मान भरी जिंदगी जीए|| परंतु पेट के खातिर क्या कुछ नहीं करना पड़ता||| यह दुनिया भलाई कि नहीं है||| इस दुनिया में रोटी मांगने जाओ||| तो गालियां मिलती हैं |||इसलिए इस जमाने में रोटी मांगनी नहीं छीनी चाहिए|| वही हमारा काम है||| आज मुझे पहली बार लगा की युवक की बात में सच्चाई है||| भलाई करने जाओ तो बुराई मिलती है||| युवक की कुछ मजबूरियां थी जिनकी वजह से उसे इस काम में आना पड़ा|| परंतु काम तो और भी हो सकते हैं|| मुझे वहां खड़ा ना रह गया||| मैं खाट पर आकर बैठ गया||• क्या कर सकता ?हूं मैं क्या करूं? क्या उसे संसार को बचाऊ? जिसने मुझे सदा गालियां दी है सदा ठोकरें मेरी है| मेरी आवेला की है |और उस व्यक्ति का साथ विश्वास धात करूं| जिसने मुझे अपने प्रेम भाव से कृतार्थ किया| जिसने मेरे भूखे पेट को प्रेम से रोटी खिलाई| या उस व्यक्ति का साथ दूं || जिसे मुझे प्रेम से आश्रय दिया|| यह ईश्वर दो पल की खुशी थी|| और उसमें भी मुझे असमंजस में डाल दिया|| तू ही मेरी सहायता कर|| क्या उनकी जान बचाऊं? जो मेरे कभी अपने ना हुए| क्या उसकी जान बचाऊं जिसने कभी मेरा साथ नहीं दिया|| क्या उसके साथ रहूं जो दो पल में ही मेरा हो गया||| हाय , कैसी दुविधा है|| कुछ समझ नहीं आता क्या||| करूं क्या न्याय और धर्म के पद को ठुकरा दूं||| जिसे मेरे पिता ने मुझे विरासत में दिया था||| या क्या उसे विश्वास को धोखा दू ||| जो मेरी मां ने मुझे सिखाया था|||| मैं इसी दुविधा में खाट पर बैठा सोच रहा था|| कुछ देर बाद मेरे मन में विचार आया||| कि मैं भी इस सत्य और धर्म का साथ दूंगा||| जिसके कारण मेरे पिता ने अपनी जान दी||| वे अपनी जान दे सकते हैं|| तो क्या में एक व्यक्ति का विश्वास भी नहीं तोड़ सकता||| मैं यही कहूंगा यही करूंगा||| मैं ऐसा मन में विचार कर|| मैं दरवाजे पर गया ||मैंने देखा वह गाड़ी में बैठकर मेरी गंज की तरफ जा रहे हैं||| मैं चुपके से दरवाजा खोला||| और और पीछे की तरफ दीवार कूद कर||| चौकी की तरफ भागा||| मैं जंगलों के सहारे आधा रास्ता काट कर|| चौकी पर उनसे पहले पहुंच गया||| और मेरी गंज पर आने वाली घटना का वर्णन उनसे कर दिया||| जर्नल राइटर तैयार हो गए||| उन्होंने आक्रमण के सूचना अपने सैनिकों को दी|| तभी उधर युवक और उनके सैनिक आ गए||| दोनों तरफ से गोलियां बरसाई गई||| जब पुलिस कर्मी युवक और उनकी सेवा पर भारी होने लगे||| तो युवक के सहयोगी उन्हें छोड़कर भाग गए|||| जनरल राइटर ने गोली युवक के कंधे पर मारी|||| युवक घायल होकर गिर पड़ा||| पुलिसकर्मियों ने उसे चारों तरफ से घेर लिया|||| युवक की नजर मुझ पर गई |||तब तो घायल अवस्था होने के कारण उसने कुछ नहीं कहा||| अगले दिन युवक को कोर्ट में ले जाया गया|||| वहां युवक को फांसी का दंड मिला||| कोर्ट के बाहर युवक ने मुझे दिखा||| उसके हाथ-पैर जंजीरों से बंधे थे |||उसने मेरी तरफ करूणा दृष्टि से देखा||| उसके दुख को देखकर मेरे आंखों में आंसू आ गए|| उसने हंसकर कहा - अच्छा मूल्य चुकाए रोटियां का अभी आप सुन रहे थे|| हर्षपाल की लिखी|| कहानी" अच्छा मूल्य चुकाया"
@InspiredCorner
@InspiredCorner 8 месяцев назад
बहुत अच्छी कहानी है 🙏🏻 अच्छा लगता है जब हमारे चैनल से ऐसे महान लोग जुड़ते हैं जो ना सिर्फ़ कहानियाँ सुनते हैं बल्कि अच्छी कहानियाँ लिखते भी हैं 🙏🏻बहुत बहुत धन्यवाद.. 🙏🏻
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