मुनिराज ६-७ गुण स्थान में झूलते हैं, ६ गुण स्थान में आने पर मुनिराज बिन पानी मछली की तरह तड़फते है, और अतिनद्रीय आनंद के लिए अंतर मुहुर्त में ७ गुण स्थान में आ जाते है। यह है मुनिराज की महिमा।
मुनिश्री ज्ञानसागर जी महाराज को नसीराबाद (राजस्थान) समाज द्वारा आचार्य पद दिया गया वो भी परम्पराचार्य श्री शिवसागर जी महाराज की समाधि के पूर्व और मुनि श्री धर्म सागर जी महाराज को परम्परा से आचार्य पद मिला परम्पराचार्य श्री शिव सागर जी महाराज की समाधि के बाद । अपने जीवन काल मे आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज और आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कभी भी अपने नाम को परम्पराचार्यो से जोड़ने का पुरुषार्थ नही किया जो कि उनकी समाधि के बाद किया जा रहा है ।
जब बोल दिया गया है कि निर्यापक को शिक्षा दीक्षा देने की अनुमति है तो अलग से आचार्य क्यों बनना है ? आचार्य पद के तर्कों के अनुसार विद्यासागर जी के जीवनकाल में ही आचार्य पद दे देती समाज तो अच्छा होता ताकि पत्रकाण्ड तो न होता