हिंसा-प्रतिहिंसा के बीच शांति वार्ता के लिए आवाज उठी है दंतेवाड़ा और बीजापुर जिले की सरहद पर बसे गांव मुतवेंडी से। जहां प्रेशर आईईडी की जद में आने से गांव के एक 18 वर्षीय युवक गड़िया पुनेम की मौत हो गई, मौत से ना सिर्फ पूरा गांव सहमा हुआ है बल्कि घटना ने ग्रामीणों को भीतर तक झकझोर कर रख दिया है।गड़िया रिश्ते में उस बदनसीब छह माह की दुधमुही मंगली का मामा है, जिसकी जिंदगी एक जनवरी 2024 को क्राॅस फायरिंग मंे चली गोली ने लील ली थी। मुतवेंडी के जिस घर के आंगन से भांजी की अर्थी उठी थी, चार माह के भीतर उसी आंगनी से मामा की अर्थी उठी।गोली से मंगली और प्रेशर आईईडी से गड़िया की मौत ने ना सिर्फ मुतवेंडी के लोगों को झकझोर दिया अपितु उनके मन में हिंसा-प्रतिहिंसा को लेकर गुस्से का सैलाब भी उमड़ रहा है। चारपाई पर गड़िया के शव को रखकर गांव फूट-फूट कर रो रहा था। करूण विलाप गांव भाव विभोर था।
गमगीन माहौल और वार-पलटवार से युद्ध जैसे बने हालातों को लेकर गांव के कुछ नौजवानों का कहना था कि बस अब बहुत हुआ, अब बर्दाशत से बाहर है, हिंसा थमनी चाहिए। टूटी_ -फूटी
हिंदी में युवके का दो टूक कहना था कि समाचार माध्यमों से उन्हंे पता चला कि सरकार शांति वार्ता करना चाहती है, लेकिन ये शांति वार्ता होगी तो कब होगी? खींझ जताते इन्होंने कहा कि बस्तर का हर आदिवासी आज डरा हुआ है।जंगल जाओ तो डर, खेत जाओ तो डर,पहाड़ जाओ तो डर, डर हर जगह है और हमें डर दोनों तरफ से हैं। बस्तर में जो युद्ध चल रहा है आदिवासियों के सामने इधर कुआ-उधर खाई जैसे हालात हैं। इसलिए हम नक्सल संगठन और सरकार दोनों तक अपनी बात रखना चाहते हैं।
11 окт 2024