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आपदा प्रबंधन प्राधिकरण कारक उपाय|mp online test|mppsc 2024 

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आपदा प्रबंधन प्राधिकरण कारक उपाय|mp online test|mppsc 2024
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आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (Disaster Management Authority) वह संस्था होती है जो किसी देश, राज्य या क्षेत्र में आपदाओं से निपटने, तैयारी करने, राहत कार्यों का संचालन करने और आपदा के बाद पुनर्वास में सहायता करने का काम करती है। भारत में, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA - National Disaster Management Authority) आपदा प्रबंधन के लिए सर्वोच्च संस्था है। इसे आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत स्थापित किया गया था।
आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के मुख्य कार्य:
1. नीतियों का निर्माण: आपदा से निपटने के लिए योजनाओं और नीतियों का निर्माण करना ताकि आपदाओं के दौरान प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया दी जा सके।
2. प्रशिक्षण और जागरूकता: आपदा के दौरान कम नुकसान हो, इसके लिए लोगों को जागरूक करना और संबंधित एजेंसियों को प्रशिक्षण देना।
3. आपदा तैयारी: आपदा से पहले तैयारी करने की योजना बनाना, जिससे जनहानि और संपत्ति का नुकसान कम से कम हो सके। इसमें आपदा की पूर्व चेतावनी, बचाव कार्यों की योजना, और संरचनात्मक सुरक्षा के उपाय शामिल हैं।
4. समन्वय और सहयोग: विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी एजेंसियों, राज्यों और केंद्र सरकार के बीच समन्वय स्थापित करना, ताकि आपदाओं के समय में राहत कार्य तेजी से किया जा सके।
5. राहत कार्य: आपदा के दौरान और बाद में राहत कार्यों का संचालन करना, जैसे कि भोजन, पानी, दवाइयां, चिकित्सा सहायता और अस्थायी आश्रयों की व्यवस्था करना।
6. पुनर्वास: आपदा के बाद प्रभावित लोगों का पुनर्वास करना और उनके लिए पुनर्निर्माण की व्यवस्था करना।
भारत में आपदा प्रबंधन की संरचना:
1. राष्ट्रीय स्तर पर: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) का नेतृत्व प्रधानमंत्री द्वारा किया जाता है। यह केंद्र सरकार और विभिन्न राज्यों के आपदा प्रबंधन संस्थाओं के बीच समन्वय करता है।
2. राज्य स्तर पर: राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) की स्थापना की गई है, जिसकी अध्यक्षता संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री करते हैं। यह राज्य स्तर पर आपदा प्रबंधन की देखरेख करता है।
3. जिला स्तर पर: जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA) का गठन किया गया है, जिसकी अध्यक्षता जिले के कलेक्टर करते हैं। यह जिले में आपदा प्रबंधन से संबंधित सभी कार्यों का संचालन करता है।
आपदा प्रबंधन के चरण:
1. आपदा की रोकथाम: आपदा के खतरे को कम करने के लिए पूर्वानुमान, जोखिम मूल्यांकन और सुरक्षा उपायों का कार्य।
2. तैयारी: आपदा की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए संसाधनों और मानवीय क्षमता को तैयार करना।
3. प्रतिक्रिया: आपदा के दौरान त्वरित राहत और बचाव कार्य करना।
4. पुनर्निर्माण और पुनर्वास: आपदा के बाद की स्थिति को सुधारना और पुनर्निर्माण करना।
भारत जैसे आपदा-प्रवण देश में, आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की भूमिका महत्वपूर्ण है ताकि जनहानि और संपत्ति के नुकसान को कम किया जा सके और आपदा के बाद सामान्य जीवन को जल्द से जल्द बहाल किया जा सके।
भूस्खलन (Landslide) एक प्राकृतिक आपदा है, जिसमें भूमि का एक बड़ा हिस्सा, चट्टानें, मिट्टी, और मलबा अचानक ढलान से नीचे की ओर खिसकने लगता है। यह घटना आमतौर पर पहाड़ी या ढलानदार क्षेत्रों में होती है और इसका मुख्य कारण गुरुत्वाकर्षण बल होता है। भूस्खलन कई कारकों के परिणामस्वरूप हो सकता है, जैसे भारी वर्षा, भूकंप, मानव गतिविधियाँ (सड़कों का निर्माण, वनों की कटाई), और भूगर्भीय अस्थिरता।
भूस्खलन के कारण:
1. भारी वर्षा: अत्यधिक बारिश के कारण मिट्टी में पानी का जमाव हो जाता है, जिससे मिट्टी की स्थिरता घट जाती है और ढलानों पर मिट्टी खिसकने लगती है।
2. भूकंप: भूकंप के दौरान धरती की सतह में होने वाले झटकों से पहाड़ियों और ढलानों में अस्थिरता आती है, जिससे भूमि खिसकने लगती है।
3. ज्वालामुखी विस्फोट: ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान निकलने वाली राख, मलबा, और लावा ढलानों को कमजोर बनाते हैं, जिससे भूस्खलन हो सकता है।
4. मानव गतिविधियाँ: वनों की कटाई, पहाड़ी क्षेत्रों में निर्माण कार्य, सड़कें और खदानें बनाने जैसी गतिविधियाँ भूस्खलन की संभावना को बढ़ा देती हैं, क्योंकि इससे भूमि की प्राकृतिक स्थिरता कमजोर हो जाती है।
5. ढलान की भूगर्भीय संरचना: कुछ क्षेत्रों की भूगर्भीय संरचना ऐसी होती है कि वहां की चट्टानें और मिट्टी कमजोर होती हैं, जिससे भूस्खलन की संभावना अधिक रहती है।
भूस्खलन के प्रकार:
1. मिट्टी का खिसकना (Debris flow): जब बारिश के कारण पानी मिट्टी में समा जाता है और मिट्टी खिसकने लगती है, तो यह एक सामान्य प्रकार का भूस्खलन होता है।
2. चट्टानों का खिसकना (Rockfall): पहाड़ों की ढलानों से चट्टानों का अचानक खिसकना, जो गुरुत्वाकर्षण के कारण नीचे की ओर गिरती हैं।
3. पृथ्वी का सरकना (Earthflow): जब ढलान पर स्थित भूमि धीरे-धीरे खिसकने लगती है और सतह पर दरारें पड़ने लगती हैं।
4. स्लंपिंग: जब मिट्टी या चट्टान का एक बड़ा भाग अपने नीचे की ओर खिसककर ढलान पर बैठ जाता है।
भूस्खलन के प्रभाव:
1. संपत्ति और इन्फ्रास्ट्रक्चर का नुकसान: भूस्खलन सड़कों, पुलों, इमारतों, और अन्य संरचनाओं को नुकसान पहुंचाता है या उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर देता है।

Опубликовано:

 

8 окт 2024

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