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ऋषिकेश मंदिर कथाः श्री मनोकामना सिद्ध हनुमान जी /Temple story/ Temple of Rishikesh 

Dug Dugi (डुग डुगी)
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‪@DugDugiRajesh‬
ऋषिकेश के मायाकुंड में श्री मनोकामना सिद्ध हनुमान जी का मंदिर है। मंदिर में हनुमान जी की विशाल मूर्ति की प्रतिष्ठा लगभग सौ वर्ष पहले की गई थी। काली मिट्टी, उड़द की दाल, बेल फल, नीम, विभिन्न प्रकार के वानस्पतिक गोंद के इस्तेमाल से संतों ने स्वयं अपने हाथों से भगवान हनुमान जी की मूर्ति बनाई थी। दक्षिणाभिमुखी (दक्षिण दिशा की ओर मुख वाली) विशाल मूर्ति भगवान हनुमान जी की, वह छवि दर्शाती है, जब हनुमान जी अशोक वाटिका में माता जानकी के समक्ष खड़े थे।
उन्होंने माता जानकी से कहा था-
कछुक दिवस जननी धरु धीरा। कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा।।
निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं। तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं।। (श्रीरामचरित मानस के श्री सुंदरकांड की चौपाई)
( भावार्थः श्री हनुमान जी माता सीता से कहते हैं- माता आप, कुछ दिन और धीरज धरो। श्री रामचंद्रजी वानरों सहित यहां आएंगे और राक्षसों को मारकर आपको ले जाएंगे। नारद आदि (ऋषि-मुनि) तीनों लोकों में उनका यश गाएंगे।)
मान्यता है कि जिस प्रकार भगवान श्री हनुमान जी ने माता जानकी को वचन दिया था, उसी प्रकार अपने भक्तों की सच्चे हृदय से मांगी गई मनोकामना को पूरा करते हैं। श्री मनोकामना सिद्ध श्री हनुमान मंदिर की स्थापना के बारे में श्री हनुमत् पीठाध्यक्ष महामण्डलेश्वर डॉ. स्वामी रामेश्वर दास जी महाराज "श्री वैष्णव" विस्तार से जानकारी देते हैं।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एमए पीएचडी डॉ. स्वामी रामेश्वर दास जी महाराज "श्री वैष्णव" बताते हैं, मंदिर के संस्थापक श्रीरामदास जी महाराज, जिनको उड़िया बाबा के नाम से जाना जाता था, स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के साथी थे। उड़िया बाबा देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए अभियान में जुटे थे।
उड़िया बाबा योगानंद जी महाराज के शिष्य थे। योगानंद जी नारदजी के अवतार हैं, ऐसी संतों में मान्यता है। श्री रामानंदाचार्य जी स्वयं श्री राम के अवतार के रूप में थे।
उस समय लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक बर्मा की मांडले जेल में बंद थे। उड़िया बाबा के विरुद्ध अंग्रेजों ने वारंट निकाल दिया। उड़िया बाबा ऋषिकेश में गंगा तट के किनारे, मायाकुंड क्षेत्र में साधु संतों के साथ रहने लगे। भजन कीर्तन, प्रभु की भक्ति-साधन में लीन रहने के साथ उड़िया बाबा राष्ट्र सेवा में भी सच्चे हृदय से कार्य करते थे। यह बात 20वीं सदी के आरंभ की, 1910 के आसपास की है।
बताते हैं, एक दिन उड़िया बाबा गंगा जी में सूर्य भगवान को अर्घ्य दे रहे थे, तभी उनके हाथ में श्री हनुमान जी की छोटी सी मूर्ति आ गई। उड़िया बाबा गंगा जी से प्राप्त मूर्ति को अपने साथ ले आए। रात्रि में हनुमान जी ने उनको आदेश दिया कि ' हमें यहां पधराओ और वृहद रूप में पधराओ'।
उड़िया बाबा ने कहा, मेरे पास तो कुछ भी नहीं है, मैं कैसे आपको यहां पधराऊं। यहां संत महात्मा रहते हैं, उनके भाग्य से ही हमें भी कुछ भोजन प्रसाद मिल जाता है। हम तो कुछ नहीं करते। उड़िया बाबा, भगवान श्री हनुमान जी का आदेश कैसे पूरा होगा, का चिंतन कर रहे थे। हनुमान जी ने उनसे कहा, मेरी चिंता मत करो, मेरी व्यवस्था हो जाएगी।
उसी समय, परम पूज्य सद्गुरु श्री रणछोड़ दास जी महाराज (चित्रकूट वाले) ऋषिकेश काली कमली वाला में आए थे। प्रातः काल यहां (मायाकुंड) पहुंचे। उनको यह स्थान बहुत रमणीक लगा। यहां रह रहे संत उनको पहचान गए और उन्होंने उड़िया बाबा को संदेश दिया। उस समय उड़िया बाबा भजन कर रहे थे।
सद्गुरु श्री रणछोड़ दास जी ने उड़िया बाबा से कहा, यहां भगवान हनुमान जी की स्थापना करो। उड़िया बाबा ने बताया कि उनको गंगा जी में हनुमान जी की छोटी सी मूर्ति मिली है। इस पर श्री रणछोड़ दास जी महाराज ने कहा, मूर्ति वृहद स्वरूप में स्थापित की जाएगी। उड़िया बाबा उनकी बात से हतप्रभ रह गए, क्योंकि हनुमान जी ने उनको वृहद स्वरूप में ही स्थापना का आदेश दिया था।
इस पर यह निर्णय लिया गया कि वृहद मूर्ति को उस छवि में प्रतिष्ठित किया जाएगा, जब हनुमान जी अशोक वाटिका में माता जानकी के समक्ष खड़े थे। माता जानकी का श्रीमुख उत्तर की ओर था, क्योंकि लंका से भारत उत्तर में है और श्री रामजी भारत में थे। श्री हनुमान माता जानकी के समक्ष खड़े थे, उनका श्रीमुख दक्षिण की ओर था। इसलिए इस मूर्ति को दक्षिणाभिमुखी (दक्षिण दिशा की ओर मुख वाली) बनाया गया। श्री हनुमान जी ने गदा को बाएं कंधे पर रखा है और उनकी दाईं भुजा सीने पर रखी है। उनकी यह छवि माता जानकी को वचन देते समय की है।
इसके बाद श्री हनुमान जी की वृहद स्वरूप वाली मूर्ति बनाने का कार्य आरंभ हुआ। पुराने समय में संत महात्मा मूर्तियों का काली मिट्टी, उड़द की दाल, कच्चे बेल फल, विभिन्न प्रकार की वानस्पतिक गोंद के इस्तेमाल से बनाते थे। 'उड़िया बाबा' श्री रामदासजी महाराज एवं परम पूज्य सद्गुरुदेव श्री रणछोड़ दास जी महाराज (चित्रकूट वाले) ने श्री मनोकामना सिद्ध हनुमत् पीठ (मंदिर) की स्थापना की।
मायाकुंड स्थित प्राचीन मंदिर में प्रतिष्ठित भगवान श्री हनुमान जी की लघु स्वरूप वाली मूर्ति, जो वृहद स्वरूप वाली मूर्ति के हृदय में विराजमान है, कितनी प्राचीन है, इसके बारे में कहीं कोई जानकारी नहीं है।
मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु श्री राम दरबार, भगवान श्री हनुमान जीऔर श्री शंकर भगवान के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। यहां श्री हनुमान जयंती और श्री अन्नकूट पर विशाल भंडारा आयोजित किया जाता है। प्रत्येक मंगलवार मंदिर में श्रद्धालुओं की काफी भीड़ रहती है।
श्री हनुमत् पीठाध्यक्ष महामण्डलेश्वर डॉ. स्वामी रामेश्वर दास जी महाराज "श्री वैष्णव" बताते हैं, यहां सबकुछ श्री हनुमान जी द्वारा दिया गया है। श्री हनुमत् पीठ के लिए उनके मन में जो कुछ आता है, भगवान श्री हनुमान जी पूरा कर देते हैं। उनको बहुत सारे भक्त बताते हैं, श्री हनुमान जी से उन्होंने जो मनोकामना की थी, वो पूरी हो गई।

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11 окт 2024

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Комментарии : 7   
@RajivMishra-eb5wh
@RajivMishra-eb5wh 6 месяцев назад
जय श्री हनुमान
@chandabhoopendrasahu5134
@chandabhoopendrasahu5134 Год назад
जय भगवान जी🙏🙏🙏🙏
@DugDugiRajesh
@DugDugiRajesh Год назад
जय श्रीराम
@DugDugiRajesh
@DugDugiRajesh Год назад
ru-vid.com/video/%D0%B2%D0%B8%D0%B4%D0%B5%D0%BE-CWqO0rIzUnM.html
@empowersociety7520
@empowersociety7520 Год назад
Aisa aur cover karo Pandeyji,well done 👍 🙏
@DugDugiRajesh
@DugDugiRajesh Год назад
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@NamrataShri
@NamrataShri Год назад
Pandey uncle kya ye mandir mountain ke top par hai? Pls koi hanuman mandir jo mountain top par jo woh btaiye..haridwar ya rishikesh me😊
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