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वीर बर्बरीक बलशाली गदाधारी भीम और हिडिम्बा के पुत्र घटोत्कच दैत्य मूर की पुत्री मोरवी के पुत्र हैं। महाबली भीम एवं हिडिम्बा के पुत्र वीर घटोत्कच के शास्त्रार्थ की प्रतियोगिता जीतने पर इनका विवाह दैत्यराज मुर की पुत्री कामकटंककटा से हुआ। कामकटंककटा को “मोरवी” नाम से भी जाना जाता है। घटोत्कच व माता मोरवी को तीन पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई सबसे बड़े पुत्र के बाल बब्बर शेर की तरह होने के उसका नाम बर्बरीक रखा गया।
बर्बरीक के जन्म के पश्चात् महाबली घटोत्कच इन्हें भगवान् श्री कृष्ण के पास द्वारका ले गये और उन्हें देखते ही श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक से कहा- हे पुत्र मोर्वेय! जिस प्रकार मुझे घटोत्कच प्यारा है, उसी प्रकार तुम भी मुझे प्यारे हो। श्री कृष्ण ने उनके सरल हृदय को देखकर वीर बर्बरीक को “सुहृदय” नाम से अलंकृत किया। वीर बर्बरीक ने श्री कृष्ण से पूछा- गुरूदेव! इस जीवन का सर्वोत्तम उपयोग क्या है?वीर बर्बरीक के इस निश्छ्ल प्रश्न को सुनते ही श्री कृष्ण ने कहा- हे पुत्र, इस जीवन का सर्वोत्तम उपयोग, परोपकार व निर्बल का साथी बनकर सदैव धर्म का साथ देने से है।तुम्हें बल एवं शक्तियाँ अर्जित करनी पड़ेगी। अतएव तुम महीसागर क्षेत्र (गुप्त क्षेत्र) में नवदुर्गा की आराधना कर शक्तियाँ अर्जन करो। तत्पश्चात् बर्बरीक ने समस्त अस्त्र-शस्त्र, विद्या हासिल कर, महीसागर क्षेत्र में नवदुर्गा की आराधना की। सच्ची निष्ठा एवं तप से प्रसन्न होकर भगवती जगदम्बा ने वीर बर्बरीक के सम्मुख प्रकट होकर तीन बाण एवं कई शक्तियाँ प्रदान कीं, जिससे तीनों लोकों पर विजय प्राप्त की जा सकती थी। जब ये तय हो गया कि महाभारत का युद्ध कौरवों और पांडव के बिच हो कर रहेगा तब, यह समाचार बर्बरीक को प्राप्त हुए तो उनकी भी युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा जागृत हुई। जब वे अपनी माँ से आशीर्वाद प्राप्त करने पहुँचे और माँ को हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन दिया। बर्बरीक तीन बाण और धनुष के साथ कुरूक्षेत्र की रणभूमि की ओर चल पड़े।श्री कृष्ण को बर्बरीक के अपनी माता को दिए हुए वचन के बारे में जानकारी हो चुकी थी।
बर्बरीक की बातों को सुनकर श्रीकृष्ण ने अविश्वास प्रकट किया कि वह मात्र तीन बाणों के बल पर युद्ध में हारते हुए पक्ष को जिताने आए है ? बर्बरीक ने कहा कि मात्र एक बाण शत्रु सेना को परास्त करने के लिए पर्याप्त है और ऐसा करने के बाद बाण वापस तूणीर में ही आएगा। तीनों बाण तो पूरे ब्रह्माण्ड का विनाश करने में सक्षम हैं । यह सुनकर भगवान् कृष्ण ने फिर से अविश्वास प्रकट करते हुए कहा कि “ हे वीर, यदि तुम सत्य कहते हो तो मेरे मन का संशय दूर करने के लिए इस पीपल के वृक्ष के सभी पत्तों को वेधकर दिखलाओ।”उस समय वे दोनों पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े थे। वीर बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार की और अपने तूणीर से एक बाण निकाला और माँ जगदम्बा का स्मरण कर बाण पेड़ के पत्तों की ओर चलाया। बाण ने क्षणभर में पेड़ के सभी पत्तों को वेध दिया और श्री कृष्ण के पैर के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा, क्योंकि एक पत्ता उन्होंने अपनी एड़ी के नीचे छुपा लिया था।
कहते हैं कि उस बाण के घर्षण के कारण श्रीकृष्ण के तलुए में घाव हो गया था जो कालांतर में जरा नामक व्याध द्वारा भगवान श्रीकृष्ण की देहत्याग लीला का भी कारण बना ।
श्रीकृष्ण ने अपना पैर हटा लिए और वह बाण उस पीपल वृक्ष के अंतिम बचे हुए पत्ते को बींध कर वापस वीर बर्बरीक के तूणीर में पहुँच गया । श्री कृष्ण जानते थे कि युद्ध में हार तो कौरवों की निश्चित है । और बर्बरीक क्योंकि अपनी माता को हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन देकर आया है तो ऐसे में, वचनबद्ध होने के कारण उसे न चाहते हुए भी कौरवों का साथ देना ही होगा,और यदि बर्बरीक ने उनका साथ दिया तो परिणाम गलत पक्ष में चला जाएगा। श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक से दान की अभिलाषा व्यक्त की। बर्बरीक ने उन्हें वचन दिया और दान माँगने को कहा। श्री कृष्ण ने उनसे शीश का दान माँगा। वीर बर्बरीक क्षण भर के लिए अचम्भित हुए, परन्तु अपने वचन से अडिग नहीं हो सकते थे। बर्बरीक ने उनसे इच्छा व्यक्त की कि वे अन्त तक युद्ध देखना चाहते हैं। श्री कृष्ण ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली।श्री कृष्ण ने उनके शीश को युद्धभूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर सुशोभित किया, जहाँ से वीर बर्बरीक सम्पूर्ण युद्ध को देख सकते थे। महाभारत युद्ध की समाप्ति पर प्रश्न उठा कि युद्ध में विजय का श्रेय किसको जाता है? श्री कृष्ण ने सुझाव दिया कि बर्बरीक का शीश सम्पूर्ण युद्ध का साक्षी है, अतएव उससे बेहतर निर्णायक भला कौन हो सकता है? सभी इस बात से सहमत हो गये और पहाड़ी की ओर चल पड़े, वहाँ पहुँचकर वीर बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया कि उन्हें युद्धभूमि में सिर्फ उनका सुदर्शन चक्र घूमता हुआ दिखायी दे रहा था जो शत्रु सेना को काट रहा था। श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक को वरदान दिया कि कलियुग में तुम पूजे जाओगे।
24 сен 2024