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'कल्याणी' || a story by सुभद्रा कुमारी चौहान || स्वर - आशा रघुदेव 

Asha ki Baithaki
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सुभद्रा कुमारी चौहान-
बीसवीं सदी के हिन्दी लेखन में सुभद्रा कुमारी चौहान का नाम बहुत ऊंचा और प्रेरणादायी है. हिन्दी प्रदेश के पाठक वर्ग की
क ई पीढ़ियों ने झांसी की रानी और सुभद्रा कुमारी को एक ही संदर्भ में समझा है- आजादी की लड़ाई के संदर्भ में.
सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म सन् 1904 में उत्तर भारत के एक मध्य वर्गीय परिवार में हुआ था.बचपन से ही उनकी रूचि कविता में थी. राजनीतिक जीवन की सक्रियता इसी से समझा जा सकता है कि सन् 1921 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली वे प्रथम महिला थी. उनकी लेखनी की धार कविता और कहानी पर समान से तेज थी.सन् 1948 में कार दुर्घटना में उनकी मृत्यु के साथ सोद्देश्य लेखन का एक महत्वपूर्ण अध्याय समाप्त हो गया.
सुभद्रा कुमारी चौहान की साहित्यिक कृतियाँ-
कहानी संग्रह-- बिखरे मोती 1932
उन्मादिनी 1934
सीधे साधे चित्र 1947
( हंस प्रकाशन, इलाहाबाद )
कविता संग्रह--- मुकुल
त्रिधारा
उनहोंने ने अनेक बाल कविताएँ भी लिखीं. उनकी कुछ प्रसिद्ध कविताएँ-
यह कदंब का पेङ अगर माँ होता यमुना तीरे
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे -धीरे

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

वीरों का कैसा हो बसंत

मैं बचपन को बुला रही थी, बोल उठी थी बिटिया मेरी.
सम्मान --सेकसरिया पारितोषिक 1931,
( मुकुल कविता संग्रह )
सेकसरिया पारितोषिक 1932,
( बिखरे मोती , कहानी संग्रह )
भारतीय डाक तार विभाग ने 6 अगस्त 1976 को सुभद्रा कुमारी चौहान के सम्मान में 25 पैसे का डाक टिकट जारी किया।
भारतीय तटरक्षक सेना ने 28 अप्रैल 2006 को लेखिका और कवियत्री के राष्ट्र प्रेम की भावना को सम्मानित करने के लिए नए नियुक्त एक तटरक्षक जहाज को सुभद्रा कुमारी चौहान का नाम दिया।
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Опубликовано:

 

6 окт 2024

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