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कोई भी व्यक्ति सर्वांशमें, सर्वदा, और सभीके लिए दोषी नहीं होता। 33(अ) - Sri Sharnanand Ji Maharaj 

Swami Sharnanandji Maharaj
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Swami Sri Sharnanand Ji Maharaj's Discourse in Hindi
स्वामी श्रीशरणानन्दजी महाराज जी का प्रवचन
बहुत ही गम्भीरता से जब आप विचार करेंगे, तो आपको स्वयं ही यह अनुभव होगा कि किसी कामना-पूर्ति के लिए हम एम. ए. का उपयोग करें, यह बात अलग है। किन्तु जब तक दूसरी कामना पूरी नहीं होती, तब तक कोई अन्तर नहीं होता, एम. ए. होने में, न होने में। क्यों अन्तर नहीं होता? क्योंकि कामना-उत्पत्ति से पूर्व जो जीवन है वह सदैव है, उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता और हां नवीन कामना पूर्ति से कोई नई बात हो जाती हो ऐसा भी नहीं होता तो प्रत्येक कामना-पूर्ति का सुख नवीन कामना को जन्म देता है- ऐसा प्रत्येक भाई को, बहन को अपने-अपने जीवन में देखने से अनुभव होगा।

Опубликовано:

 

17 сен 2024

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Комментарии : 10   
@user-hc7hc5kq1v
@user-hc7hc5kq1v 5 лет назад
ऐसी बात बताइ जिस पर कभी किसी काध्यान ही नहीं जाता। कामना पूर्ति से पहले और कामना पूर्ति के बाद हम वहीं रहते हैं किंतु उसके राग में हम यह भूल जाते हैं और नई कामना को जन्म दे देते हैं। जो सभी दुखों का कारण है। कोटि कोटि प्रणाम।
@gopalparivrajak4117
@gopalparivrajak4117 3 года назад
Om
@gopalparivrajak1556
@gopalparivrajak1556 2 года назад
Om pranam
@santoshmishra1506
@santoshmishra1506 3 года назад
Namsn swami ji🌺🙏
@shriharidasraskeli9726
@shriharidasraskeli9726 3 года назад
Swamiju..... To mere pritam ke pran hi he.... 🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏
@neetunehra5148
@neetunehra5148 3 года назад
Nice
@namantiwari7557
@namantiwari7557 3 года назад
@santokakhazana-swamisharna8950
*स्वामीजीका कड़वा सत्य👇मानना तो पड़ेगा।* जैसे माँ को अपना काला-कलुटा बेटा भी प्रिय लगता है वैसे अपने मत के गुरु और ग्रंथ सबको प्रिय लगते है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं हो जाता है परीक्षा में ईमानदार परीक्षक उसको अव्वल नम्बर दे दें, अवल्ल नम्बर तो उसको ही मिलेगा जो वास्तव में उसका हकदार हो। रामसुखदास जी जैसे विश्व-हितैषी तटस्थ सन्त ने अपने सम्प्रदाय के गुरु और ग्रंथ आदि को तो अवल्ल नम्बर नहीं दिया किन्तु दुनियां भर के ग्रंथों को भी challange से फैसला सुना दिया कि शरणानन्दजी के समान मैं मानता नहीं हूँ किसी सन्त को। उसने जो लिखा है उसके आगे कुछ नहीं है। उनकी अकाट्य बातें अंतिम तात्पर्य है। *उन्हों ने सारे विश्व को सत्य के अनुयायी बनने का परामर्श दिया, किसी व्यक्ति याँ मझहब/सम्प्रदाय का नहीं। कुरान, बाइबल, वेद, वचनामृत आदि के आपसी मतभेद का एक मात्र समाधान रामसुखदास जी ने खोज दिया है, और वो है क्रांतिकारी शरणानन्दजी की अद्वितीय वाणी..* दोष मालूम होते हुए भी (गुरु/ग्रंथ का) त्याग न करना "राग" है और (अवल्ल नम्बर की सर्वोच्चता का) गुण मालूम होते हुए भी (शरणानन्दजी के साहित्य को) स्वीकार न करना "द्वेष" है। विश्व को रामसुखदास जी के फैसले पर विश्वास न आता हो तो शरणानन्दजी की सुनते-सुनते पढ़ने की व्यवस्थावाली इस 33A प्रवचन की यूट्यूब लिंक को देख लें, अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा. (सारे ग्रंथो पर भारी पड़ेगी यह 52+मिनट) खुद में अक्कल नहीं और रामसुखदास जी की माने नहीं -ऐसा नहीं चलता है। सन्त-तत्व होता है इसलिए क्रांतदर्शी रामसुखदासजी के शरणानन्दजी की अपूर्व बातों को अपनाने से सेठजी, भाईजी तो क्या विश्व भर के भूत-भविष्य-वर्तमान के सारे सन्तों प्रसन्न हो ही जाते है। *ये जो अनेक सन्तों की भिन्न शैलियों को साथ लेकर खिचड़ी पकाते हो उससे श्रोताओं से न्याय नहीं हो रहा है।* एक शरणानन्दजी की वाणी में ही सबकुछ समा जाता है -इस अटल सत्य पर विश्वास करके रामसुखदास जी के अवतारी कार्य में साथ दीजिए।* *इधर-उधर की बुद्धि लगाकर, मानव-मात्र को "एक-मत" करने की सामर्थ्य रखनेवाली, एक-मात्र शरणानन्दजी की वाणी की खोज के परिश्रम पर पानी मत फेरिए..* *विश्व के किसी ग्रंथमें👇ऐसे गुण हैं?* मैं (रामसुखदास जी) तो शरणानन्दजी की वाणी को ऐसा मानता हूँ कि जहाँ पर एक अंग्रेज, एक अमेरिकन, एक रशियन, एक हिन्दू, एक बौद्ध, विभिन्न देशों, विभिन्न मतों के लोग एक साथ बैठे और जीवन के शुद्ध सत्य पर विचार कर सके *-इस मंच को ऐसा सुरक्षित रखना है। इस मंच के माध्यम से किसी एक-देशीय साधना की चर्चा कभी नहीं की जाएगी। "सर्वमान्य सत्य" को देश, काल, मत, वर्ग, संप्रदाय, मजहब का भेद छू नहीं सकता है।*
@Neetu-is2fb
@Neetu-is2fb 4 месяца назад
Om
@gopalparivrajak4117
@gopalparivrajak4117 3 года назад
Om pranam
Далее
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