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क्या आपके पोधें भी फल नहीं दे रहे है? 🤔😢 Sapota Farming (Chiku), Planting, Care, Harvesting  

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चीकू की उन्नत खेती
भारत में सपोटा/चीकू (मनीलकारा आचरस) एक लोकप्रिय फल है । इसका जन्म स्थान मेक्सिको और मध्य अमेरिका माना जाता है । इसका फल खाने में सुपाच्य, कार्बोहाइड्रेट (14-21%), प्रोटीन, वसा, फाइबर, खनिज लवण, कैल्शियम और आयरन का एक अच्छा स्रोत माना जाता है । यह कच्छ गुजरात में आम और अनार के बाद एक सबसे ज्यादा उगाया जाने वाला फल है।
मृदा एवं जलवायुः
चीकू की खेती कुछ हद तक लवणीयता एवं क्षारीयता सहन कर सकती है । इसके उचित विकास के लिए 6-8 पीएच अच्छा माना जाता है । चीकू की खेती से अधिक उत्पादन लेने के लिए गहरी उपजाऊ तथा बलुई दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है । पौधों के उचित विकास के लिए खेत में जल निकास का अच्छा प्रबंधन होना चाहिए । फल के बेहतर विकास के लिए चीकू की खेती के लिए 11° से 38° डिग्री सेल्सियस तापमान और 70% आरएच आर्द्रता वाली जलवायु अच्छी मानी जाती होती है । इस तरह की जलवायु में इसकी फलत साल में दो बार होती है । जब कि शुष्क जलवायु में, यह पूरे साल भर में केवल एक ही फसल देता है ।
चीकू की उन्नत किस्में:
देश में चीकू की 41 किस्में हैं, जिसमें काली पट्टी, पीली पट्टी, भूरी पट्टी, झूमकिया, ढोला दीवानी और क्रिकेटवाल आदि किस्में गुजरात में उगाई जाती है । क्रिकेटवाल एक आहार उद्देश्शीय किस्म है, इसके फल आकार बड़ा, गोल, गूदा मीठा और दानेदार होता है । काली पट्टी को गुजरात के अधिकतर क्षेत्रों में उगाई जाती है । काली पट्टी लोकप्रिय आहार उद्देश्य किस्म है, पत्ते बड़े तथा फल आयताकार या गोल होते है । इसकी मुख्य फलत सर्दियों के मौसम में आती है, उपज: 350-400 फल / पेड होती है ।
प्रवर्धन की विधि एवं समयः
चीकू का प्रवर्धन बीज, इनारचिंग, वायु लेयरिंग और सॉफ्टवुड ग्राफ्टिंग द्वारा किया जा सकता है । इसकी व्यवसायिक खेती के लिए चीकू को इनारचिंग द्वारा लगाते है, जिसके लिए खिरनी (रायन) मूल वृन्त का उपयोग किया जाता है क्योंकि रायन पौधे की शक्ति, उत्पादकता और दीर्घायु के लिए सबसे माना जाता है। गमलो में तैयार पेंसिल की मोटाई के दो वर्ष पुराने खिरनी मूलवृन्त पौधों का उपयोग कलम बांधने के लिए किया जाता है। इसको लगाने के लिए दिसंबर-जनवरी का महीना उपयुक्त माना जाता है । पौधे खेत में रोपाई हेतु अगले वर्ष जून-जुलाई तक तैयार हो जाते हैं
पौध रोपाई की विधि और समयः
रेतीली मिट्टी में: 60 सेमी x 60 सेमी x 60 सेमी आकार के गड्ढे और भारी मिट्टी: 100 सेमी x 100 सेमी x 100 सेमी आकार के गड्ढे अप्रैल - मई में बनाते है और गड्ढे में 10 किग्रा. गोबर की खाद, 3 किलो सिंगल सुपर फॉस्फेट और 1.5 किलो म्यूरेट ऑफ़ पोटाश और 10 ग्राम फोरेट धूल अथवा नीम की खली (1 किग्रा.) भरते है । गड्ढे भरने के एक महीने बाद मानसून के प्रारंभ में (जुलाई) मैं पोधों की रोपाई कर देते हैं।
रोपाई की दूरीः
रोपाई की दूरी पौधों के विकास पर निर्भर करता है सामान्यतयः पौधों से पौधों की दूरी 6 मीटर एवं पंक्ति से पंक्ति की दूरी 6 मीटर रखनी चाहिए । सघन घनत्व रोपण लिए 5 x 4 मीटर दूरी पर रखते है ।
अंन्तर फसलः
चीकू के साथ अन्तर फसल के रूप में केला, पपीता, टमाटर, बैंगन, गोभी, फूलगोभी, दलहनी और कददू बर्गीय फसलें चीकू लगाने के प्रारंभिक वर्ष के दौरान ली जा सकती है ।
कटाई - छंटाई:
बीज से अंकुरित पौधे में कटाई-छटाई की कोई जरूरत नहीं पड़ती है, लेकिन इनार्जिंग से तैयार किये पौधे को कटाई छटाई कर के एक आकार में देने की आवश्यकता होती है । पौधे की मृत और रोग ग्रस्त शाखाओं को हटाने और पौधे को आकार देने के लिए पेड़ की हल्की कटाई-छंटाई की जाती है।
खाद एवं उर्वरकः
अधिक उपज प्राप्त करने हेतु 50 किलो गोबर की खाद, 1000 ग्राम नाइट्रोजन, 500 ग्राम फास्फोरस और 500 ग्राम पोटाश की मात्रा प्रतिवर्ष प्रति पौधा आवश्यक होती है । जैविक खाद और रासायनिक उर्वरकों की कुल मात्रा में से आधी मात्रा मानसून के शुरुआत में गड्ढ़ों में डाल देना चाहिए और शेष आधी मात्रा सितंबर - अक्टूबर में डालनी चाहिए । अरंडी की खली का उपयोग उच्च गुणवत्ता फसल उत्पादन के लिए फायदेमंद होता है।
फसल की कटाई एवं प्रबंधन :
जलवायु के आधार पर फल की परिपक्वता में 7-10 महीने का समय लग जाता हैं। चीकू पर एक वर्ष में दो बार फलत होती है । ये क्रमशः जनवरी से फरवरी तक और फिर मई से जुलाई तक । चीकू का उत्पादन उसके प्रबंधन पर निर्भर करता है, 15-20 टन फल एक हेक्टेयर से प्राप्त किया जा सकता है। फल परिपक्व होने पर उसका रंग हरे रंग से बदलकर हल्के भूरे रंग का हो जाता है और त्वचा खरोंचने पर उसमे से पानी का रिसाब नही होता । एक समान और जल्दी से पकाने के लिए फलो को ईथोफेन या इथ्रल रसायन के (1000 पीपीएम) घोल में डूबाकर, 20° - 25°C डिग्री सेल्सियस तापक्रम पर रात भर के लिए रख देते है । शेल्फ लाइफ बढाने के लिए, फल को जिबरेलिक एसिड (GA) 300 पीपीएम के घोल में फलो को डूबाकर उपचारित किया जा सकता है।
जय हिन्द नर्सरी
भिवाड़ी राजस्थान

Опубликовано:

 

15 окт 2024

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