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वीडियो जानकारी: 24.08.23, गीता समागम, गोवा
प्रसंग:
न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किञ्चन ।
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि ।।
पार्थ तीनों लोकों में मेरा कोई कर्तव्य नहीं है। ना मुझे कुछ अप्राप्य है, ना ही मुझे कुछ प्राप्त करने को है। लेकिन इसके बाद भी मुझे देखो, मैं कर्म में ही निरंतर रत रहता हूँ। जबकि मुझे पाने के लिए कुछ बचा नहीं है।
~ श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय 3, श्लोक 22)
~ श्रीकृष्ण के कर्त्तव्य कामना से नहीं आते तो फिर कहाँ से आते है ?
~ कामना कर्तव्य की निशानियाँ क्या है ?
~ हमारे कर्तव्य कहाँ से निकलते है ?
~ जगत से हमरा रिश्ता क्या है ?
~ सारा अध्यात्म किस बात की खोज है ?
~ हमारी सारी समस्याएं कहाँ से आती है ?
संगीत: मिलिंद दाते
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27 май 2024