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चारू कालरा | कवि सम्मेलन| क़लमकार 

Kalamkaar: The Literary Society
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गिरती हूँ, संभलती हूँ, हर बार निखरती हूँ, मैं जिंदगी हूँ साहब, यूँ ही चलती हूँ।
-~चारु कालरा
दीन दयाल उपाध्याय महाविद्यालय की साहित्यिक समिति, क़लमकार द्वारा आयोजित क़लमकार लिट्रेचर फैस्टिवल एवं कवि सम्मेलन में कई कवियों और कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं के इत्र से माहौल को सुग्ध कर दिया था।
आपके लिए पेश है चारू कालरा जी की प्रस्तुति ।
बाकी कवियों की कविताएँ सुनने के लिए हमसे जुड़े रहें।

Опубликовано:

 

27 авг 2024

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