चूड़धार: शिरगुल महाराज शांत महायज्ञ संपन्न I कुरड स्थापना के साथ सम्पन्न हुआ महायज्ञ| 52 वर्षो बाद हुआ शांत महायज्ञ|
शिरगुल महाराज का मंदिर
हिमाचल प्रदेश जितना प्राकृतिक रूप से समृद्ध है, उतना ही यहां पर देवी देवताओं के पवित्र स्थान भी मौजूद हैं। हिमाचल के शिमला जिले में स्थित शिरगुल महाराज का मंदिर ।
हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों में सबसे ऊंची चोटी चूड़धार है, जहां शिरगुल महाराज का मंदिर बना हुआ है। मंदिर में स्थापित भगवान शिव को सिरमौर और चौपाल का देवता के रूप में स्थानीय लोग जानते हैं। इस मंदिर को लेकर स्थानीय लोगों के अंदर बेहद अटूट श्रद्धा है और ऐसा कहा जाता है कि 'शिरगुल महाराज' के समक्ष अपनी समस्याओं को बताने से उनका निदान भी मिलता है। ऐसे ही कई दिलचस्प किस्से जुड़े हुए हैं इस मंदिर को लेकर। आईये जानते हैं...
क्या है मंदिर को लेकर कहानी
Praचीन समय में चूरू नाम का एक शिव भक्त अपने बेटे के साथ इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आया करता था। एक दिन अचानक एक विशाल सर्प निकलकर चूरू और उसके बेटे को डंसने के लिए आगे बढ़ा। तभी चूरू ने shirgulmaharaj ko याद करते हुए अपने प्राणों की रक्षा की गुहार लगाई। चूरू की गुहार पर एक विशाल पत्थर आकर उस सांप के ऊपर गिर गया और इस तरीके से चूरू और उसके बेटे के प्राणों की रक्षा भगवान शिव ने की। कहा जाता है कि इस घटना के बाद से इस स्थान को 'चूड़धार' के नाम से भी जाना जाने लगा।
बावड़ियों को लेकर कहानी
शिरगुल महाराज मंदिर के पास दो बावड़ियां बनी हुई हैं, जिनको लेकर लोगों में गहन आस्था है। कहा जाता है कि इन बावड़ियों में स्नान के पश्चात ही शिरगुल महाराज के दर्शन का फल प्राप्त होता है। इन दोनों बावड़ियों में से एक-एक लोटा जल लेकर अगर अपने सर पर डाला जाए तो आपके मन की मुराद शिरगुल महाराज पूरी करते हैं। इतना ही नहीं, सिरमौर जिले में जब भी किसी नए मंदिर की स्थापना होती है तो इन बावड़ियों में से जल भर देवी देवताओं को स्नान कराया जाता है।
अन्य जानकारी
चूड़धार जिला शिमला व सिरमौर की सीमा पर बसा है। इस स्थल का नाम करण चूडि़या दानव पर हुआ है। देवता शिरगुल के मानव रूप के समय इस दुराचारी दानव का भयंकर अत्याचार फैला हुआ था। राजगढ़ में राज परिवार में जन्में शिरगुल के दो भाई-बहन थे, जिनका नाम चंद्रशेखर, बिजट और बिजाई के नाम से आज सिरमौर व शिमला के क्षेत्रों में देवता के रूप में पूजा जाता है। शिरगुल का जीवन कठिन परिस्थितियों में गुजरा मां-बाप बचपन में ही उन्हें छोड़ गए तथा मामा के घर पर पले बडे़।
जहां मामी के अत्याचारों का कहर उन्हें सहना पड़ा। इनके पिता भुकड़ महाराज जो सिरमौर रियासत के पराक्रमी योद्धा माने जाते थे। मुगलों के समय जब पूरे भारतवर्ष के शक्तिशाली राजाओं को बंदी बनाया गया, तो उसमें शिरगुल महाराज भी शामिल थे। वहीं से इनमें देवशक्ति प्रकट हुई तथा मुगलों को ध्वस्त कर सभी राजाओं को बंधनमुक्त कर सभी पहाड़ी राजाओं के साथ हिमाचल रवाना हुए, जो राजा आज हिमाचल के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से देवरूप में पूजे जाते हैं। जनश्रुतियों के अनुसार शिरगुल महाराज के पास एक पावन घोड़ी थी, जो हवा के वेग में दौड़ा करती थी।
प्राचीन दंतकथाओं के अनुसार दिल्ली से चूड़धार मात्र तीन छलांगों में पहुंच जाती थी। यह भी माना जाता है चूड़धार का प्रसिद्ध काला बाग जो दिल्ली नगरी के नाम से जाना जाता है शिरगुल महाराज ने अपनी शक्तियों से स्थापित किया था। इस पवित्र स्थली में एक प्राचीन मंदिर है। जिसके भीतर शिवलिंग विद्यमान है। चूड़धार के पत्थर पहाड़ आज भी प्राकृतिक संवाद करते हुए सुने जा सकते हैं। इस स्थान को महाभारत से भी जोड़ा जाता है। जब महाभारत का युद्ध हो रहा था तो बबरीक नाम का प्रभु भक्त कुरुक्षेत्र की लड़ाई में कौरव पक्ष में जा रहा था, तो भगवान कृष्ण ने उसका सिर दान में मांग कर उसे रोका, तो बदले में उसने भगवान से वरदान मांगा कि प्रभु मैं सिर तो आपको भेंट कर रहा हूं बदले में महाभारत का युद्ध मुझे दिखाने की कृपा करें। भगवान ने उसका सिर बांस के साथ इस ऊंची चोटी पर लटका दिया। आज भी इस चोटी से कुरुक्षेत्र साफ दिखाई देता है। इस चोटी की ऊंचाई पर एक विशाल सुरंग भी है। जहां से माना जाता है कि पाताल लोक के दर्शन भी होते थे।
52 साल बाद महा यज्ञ
चूड़धार स्थित शिरगुल महाराज के मंदिर में कल धार्मिक अनुष्ठान यानी शांत महायज्ञ का आयोजन किया जाएगा। करीब 52 साल बाद चूड़धार चोटी पर इस तरह का बड़ा धार्मिक आयोजन हो रहा है। 11अक्टूबर को सुबह 11:00 बजे से लेकर 1:00 बजे के बीच कुरुड़ स्थापित होगा। इस अवसर पर क्षेत्र से शिरगुल महाराज बिजट महाराज और सभी देवी देवताओं की 12 पालकियां चूड़धार के समीप काला बाग में पहुँच चुकी है जो रात्री को वंही विश्राम करेगी और इसके अलावा दर्जनों स्थानीय देवी-देवता भी इस महायज्ञ में शरीक हुए है। इस अनुष्ठान में शिमला, सोलन व सिरमौर जिले के अलावा पड़ोसी राज्य उत्तराखंड से 25 हजार से अधिक श्रद्धालुओं के जुटने की संभावना है। चूड़धार मंदिर के जीर्णोंद्धार का कार्य पिछले 20-22 वर्षों से किया जा रहा है। मंदिर में लकड़ी की अद्भुत नक्काशी की गई है और मंदिर को पांच क्विंटल गेंदे के फूलों से सजाया गया है।चूड़धार मंदिर कमेटी अध्यक्ष एवं एसडीएम चौपाल हेम चंद वर्मा ने कहा कि चूडधार के शांत पर्व के दौरान वीरवार को रात्री ठहराव के लिए प्रशासन ने काला बाग में टेंट की व्यवस्था की है। काला बाग नामक स्थान पर 12 टेंट देवता की पालकी के लिए तथा 40 टेंट चूडधार दर्शन हेतू पधारने वाले श्रद्धालुओं के रात्री ठहराव के लिए लगाये गए है। इसके अलावा मंदिर व समिति की सरांय में भी ठहरने की व्यवस्था की गई है। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए अस्थाई शौचालय बनाये गए है तथा श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए रात्री में ठंड से बचने के लिए आग जलाने के लिए लकडियाँ भी एकत्र की गई है।
12 окт 2024