बहुत सुंदर लगा बचपन याद आ गया,पौड़ी की बात ही निराली थी,तब अपर बाजार में बहुत चहल पहल रहती थी,पहले पहले जब गढ़वाल स्वीट हाउस खुला था नजारा ही कुछ और था, मॉल रोड,धारा रोड,बूचड़ गली, कंडोल्या रोड पैदल ही घूमना बहुत अच्छा लगता था,एक पुरानी कथा भी थी पौड़ी वालों की कि आई बेट्टा मेरी पौड़ी भला ही वो मजाक में कही जाती थी किंतु भावना पौड़ी में बुलाने की होती थी,विकास बहुत हुआ किंतु पौड़ी निरंतर उपेक्षित होती गई,आप ने इस वी डी ओ के माध्यम से एक अच्छी पहल की है साधुवाद,Siton suin का नाम भी भी सीतावन के कारण ही पड़ा था,और वहां पर कोट महादेव के ऊपर बाल्मिकी ऋषि का मंदिर भी था सायद अब भी अवशेष बचे हों,फिर भी अच्छी जानकारी है,आभार ।
बहुत ही भावनात्मक टिप्पणी की है आपने, दिल को छू गई।पता नहीं पहाड़ों में संतुलित विकास की शुरुआत कब होगी।कभी कभी लगता है कि सब कुछ खत्म होने के बाद ही क्या लोग जागेंगे। आभार🙏
आपने पौड़ी की संरचना के साथ साथ पुरतान संस्कृति से भी हमें अवगत कराया है, ख़ास तौर से सितोन्स्यूँ घाटी का जो सीता माता के नाम से ही विख्यात है वहाँ का पौराणिक महत्व बताया और जो दृष्य आपने दिखाये उसके लिये आपको हृदय से आभार.
शब्द भी कम हैं आपके इस प्रयास को धन्यवाद देने के लिए। अपने सामने ही इस शहर को वीरान होते देखा, जबकि एक समय कहते थे की पौड़ी में हर दिन मेला होता था। इस शहर से एक अलग रिश्ता है और आज मैं जहां भी हूं, वो इसकी ही देन है। टीस भी है दिल में की अपने इस खूबसूरत शहर के लिए कुछ कर पाएं कभी तो ...
इतनी सुन्दर डाक्यूमेंट्री बनाने के लिए आपका हार्दिक आभार। यदि इसी प्रकार इस क्षेत्र का प्रचार हो तो निश्चित ही यहां आने के लिए लोगों की जिज्ञासा बढ़ेगी। प्रकृति की सुंदरता समेटे पौड़ी।
बहुत ही सुन्दर पौड़ी के बारे में आपके द्वारा दी गई जानकारी बहुत ही बढिया है। आपके द्वारा दिया गया वाचन बहुत ही अच्छा लगा। तथा साथ ही वीरेन्द्र भाई व डा. धस्माना जी से काफी जानकारी मिली।
पौडी और श्रीनगर दोनों ही किसी जमाने मे महान सांस्कृतिक केंद्र थे/रामलीला दोनों जगह बहुत कलात्मक और रागात्मक होती थी/सन् 1976 से हम भी इन दोनों शहरों से बहुत दिन जुडे रहे
पौड़ी हमारे बचपन में वाकई बहुत सुंदर कस्बा था जो हमारे गांव की बाजार भी था ।कंडोलिया में घना जंगल था। उस जंगल में डीएम की कोठी थी। एक देवता का छोटा सा मंदिर था जिसमे सिगरेट चढ़ाते थे। बढ़िया जानकारी व पौड़ी कवर करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
तुम मुझे भूल न पाओगे यात्रा कथा का इतना सुंदर वीडियो चित्रांकन छायांकन और संवाद पटकथा जो आपने तैयार की, इसके लिए बहुत-बहुत बधाई धन्यवाद l और जो साँस्कृतिक धार्मिक पौराणिक ऐतिहासिक संदर्भ को आपने शोध में समेटा है, अतुलनीय है, सरकार का ध्यान ईश्वर आकृष्ट होना चाहिए ऐसे पौराणिक मंदिरों का पुनरुद्धार होना चाहिए और शोध छात्रों की इस ओर आकर के अपने इतिहास को समझना चाहिए और यह हमारा धार्मिक सांस्कृतिक और पर्यटक की दृष्टि से कॉरिडोर के रूप में पौड़ी गढ़वाल का जो स्थान है बहुत महत्व रखता है l इस पर और आगे शोध की जरूरत है और आप जैसे इतिहास कार और धार्मिक पर्यटन से जुड़े हुए लोग पहाड़ के गर्भ के मर्म को समझ सकते हैं, इस मुहिम को जो आपने छेड़ा है निश्चित रूप से युवा पीढ़ी को एक मार्ग मिलेगा और सरकार के लिए गौरव का स्थान मिलेगा, इस पर और काम हो पर्यटक भी आए l बहुत-बहुत धन्यवाद बहुत अच्छा शोध हम लोगों के सामने आया है निश्चित रूप से यह ऐसे स्थान है जो विलुप्त होते नजर आ रहे थे और आपकी वजह से यह सरकार तक उनकी जानकारी पहुंचेगी और आने वाले वक्त में इस पर काम हो सकेगा l डॉक्टर साहब आपको विशेष धन्यवाद वीरेंद्र जी और राजेश जी आप बहुत अच्छा कार्य कर रहे और समस्त टीम को बहुत-बहुत शुक्रिया धन्यवाद मेरी ओर से l
Very nice 👍 great work...this place is my birth place..or sch kha apne pauri ko kbhi nhi bhula payenge....aj ye dekh k apna bachpan ka vo tym yaad aa gya jb kbhi ma papa k sath hm aaya krte thye vhan hmara bzaar hi pauri hua krta tha ...i miss ma birth place ❤❤❤❤❤
महोदय,आपने सितोनस्यू पट्टी के देवल और phalswadi गांव का उल्लेख किया कि महिलाएं सीता माता के लिए कलेवा लाती हैं किन गावों की महिलाएं लाती हैं नहीं बताया। सीता माता मेले का आयोजन कौन। सा गांव करता है? नही बताया यहां के adhtees गावों में रावण की पूजा होती है? इनमे से किस गांव में रावण के प्रति आस्था है? आप इतिहासकार है तो बताने का कष्ट करे। अन्यथा पौराणिक कथाओं को गलत तरीके से लोगों को बताकर इस पट्टी के लोगों का अपमान न करें और जरूर बताएं की किस गांव में रावण की पूजा होती है। शायद हम भी कुछ ऐसे ही ज्ञानी बन जाएं।
न जाने आपने इसे अपमान क्यों समझा । सितोंसू घाटी तो गढ़वाल की गौरवशाली संस्कृति का चमकता अध्याय है। मेले का नाम मनसार है। यही नहीं इस पट्टी को उत्तराखंड सरकार सीता माता टूरिस्ट सर्किट बनाने का प्लान कर रही है।जहां तक बात रावण के प्रति आस्था की है तो कनेक्टिविटी के बाद सब जगह का कल्चर एक सा होता जा रहा है, जो बहुत दुखद है । दरअसल रावण इतना विद्वान था कि श्रीराम रावण वध के बाद ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त होने के लिए देवप्रयाग आए थे और वशिष्ठ कुंड में स्नान कर उन्होंने तपस्या की थी। संयोग देखिए की देवप्रयाग से ही सितोंसु घाटी शुरू होती है ।कोटसाड़ा गांव से कलेवर लाने की बात की पुष्टि के लिए पिछले मेले की राज्य समीक्षा की रिपोर्ट कॉपी पेस्ट कर रहा हूं...... गढ़वाल: यहां माता सीता ने ली थी भू समाधि, जमीन खोदने की है अद्भुत परंपरा देवभूमि की परंपरा कितनी समृद्ध है कि महाभारत और रामायण काल की कहानियों के अंश भी यहां मिलते हैं। क्या आप जानते हैं कि देवभूमि में एक स्थान ऐसा भी है, जहां माता सीता ने भू समाधि (Sita Mata Pauri Garhwal Mansar mela) ली थी? जी हां पौड़ी गढ़वाल के कोटसाड़ा, फलस्वाड़ी और देवल में ये मान्यता प्रचलित है। माना जाता है कि तबसे यहां मनसार मेले का आयोजन होता आ रहा है। इस बार भी कोट ब्लॉक के फलस्वाड़ी गांव में इस वर्ष आयोजित हो रहे मनसार मेले को भव्य रूप से मनाया जा रहा है जिसको लेकर मंदिर समिति की ओर से सभी तैयारी पूरी कर ली गई है। मंदिर के पुजारी की ओर से बताया गया है कि आज लक्ष्मण मंदिर देवल से देव निशान फलस्वाड़ी गांव के लिए गए साथ ही कोटसाड़ा गांव से ग्रामीण बबले (घास) की रस्सी व दूण-कंडी (मिठाई की टोकरी) लेकर पहुंचे। जिसके बाद कोटसाड़ा व देवल के ग्रामीण फलस्वाड़ी गांव में पहुंचकर माता सीता की आराधना कर रहे है।
Etana sunder yata sik pourd jha se agrejo ka bhi agao raha wahese bhi angrej ko pura pahardi ccheter bheheth basanth theye per.un hone bhoogolik parshithi you ke karan pahardp meion jhada khana nahikaraya es ka karan yaha bhoogolik rachana aur kubh surati ko bar kar rakhi taki jada construction nahi kiya jis aaj ke bakt meion bina soche samjhe hi yaha per thuord ford ho rahi hai kahi vikash ke nam per binash per yaha yaha ke logo ka koi faida nahi jo bhi parshan kar rahi kewal jo jagh jagh non ukd ke log ake bas gaye jo ki yaha ke liye sahi nahi hua hai aj kal jo ukd alag rajiya bane ke baad yaha per bhut matra. Meion bhari log aye aur yaha per kubh property investment ki hai jo ki ukd ke liye sahi nahi hua netao ne ukd ki kubh surati cchabi ko nash kiya hai
bhu kanoon khunni maara maari paas ma karin pehle aphri Uttaranchali (gadwali-kumaoni) bhasha thai toh bachai-lhya, shuruat ma hi khankriyal ji hindi ma bachyana chin, tab bwala, kya hwalu... yakh ham England ma angrezo thai gadwali bulnai ki training dena chon (meru naunu dhara-prwah gadwali ma bwaldu yakh ham dagadi aur angrezo thai bhi sikhandu) aur saal ma dwi baar jab ham seedha gau jando wakh log ham thai gau ku hu samjhadin... tab bal bhu kanoon toh aalu jab aalu, pehli aphri bhasha ch bhasha... baki baat aur kya buln, kuda aur kabaad ku dher jo ham lukhun lagayu yakh paudi ma, wyeka baara ma toh kya hi buln bhai
आपकि बात बिलकुल ठिक च लेकिन यो चैनल हिंदीक च। जब हम लोग आपस म बात करणा छाय त खंखरियाल जी गड्वलई म हि बुने छै। पर आपकु गड्वलई प्रेम देखकि बहुत अच्छू लाग 🙏🙏
Apka bolne ka andaj aisa hai ki jaise ap neend,(sleep) se uthkar turant bolne kag gaye hon. Kuch karm kijiye na Maharaj. Neend se jagiye, muh hath dhokar phir videos tajgi k sath banaye. Kya hal bana rakha, kuchh lete kyon nahi. Bura mat manna, balki apna atm manthan karna. Thanks.