सदियों से ही तो हमें बस यह दूसरा है और मै दूसरा हूं।बस इसी को सत्य मानकर सदियों से हम हैरान वा पशेमान हुऐ बैठे हैं। सभी में इकरस ज्ञानस्वरूप का फैलाव है। धन्यवाद आपका।
प्रणाम अलखनिरंजन पात्र को मिल जाता है पर पिछे रहनें पर शंका क्यों , और उसमें लाभ हानीं क्यू ? मार्गदर्शन करियेगा प्रणाम 🙏 महात्मन प्रणाम 🙏 मैं इस मार्ग पर चलनें की कोशिश कर रहा हूँ पर मुझे आजतक द्वैत और अद्वैत समझ नहीं आया है , विराट पर फिर भरोसे में शंशय क्यों होना चाहिये अज्ञानीं हूँ महात्मन शब्द में आपको समझा पाया हूँ प्रणाम 🙏 मार्गदर्शन करियेगा प्रणाम 🙏
यह अद्वैत का ज्ञान , श्रवण और सत्त मननन करते रहने से , प्रभु कृपा से अपने आप घाट जाता हैं ऐसा मेरा मत हैं । अपने प्रश्नों का स्वयं हाल खोजो , किसी के बताने से वह मन की एक और वृत्ति बन जाती हैं , और यह आत्म ज्ञान अनुभव का विषय है जिसको शब्दों से केवल संकेतिक किया जाता है। प्रभु मार्ग दर्शन करते है अगर आपकी जिज्ञासा त्रिव है तो । आप दर्पण में अपने दर्शन करते है वैसे ही शास्त्र दर्पण तुल्य है जो आपको स्वयं अपने स्वरूप का दर्शन कराते हैं । अयम आत्मा ब्रह्म 🙏🏽🕉️