कभी ए हक़ीकते मुंतज़र, नज़र आ हक़ीकते मज़ाज में, कि हजारों सजदे तड़प रहे हैं मेरी जमीं ने नियाज़ में। हकीकते मुंतज़र=प्रभू। हकीकते मज़ाज=इन्सानी रूप में क्योकि उसका नूरानी रूप शरीर की आँखों मे देखने की ताब नही है, ज़मीं ने नियाज़= रूह की प्रार्थना,फरियाद