उत्तराखंड के लोक देवता नरसिंग
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परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा
हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली
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यूट्यूब चैनल संपादकीय न्यूज
जै हिमालय, जै भारत। हिमालयीलोग यूट्यूब चैनल में आपका स्वागत है। मैं हूं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा। इस बार आपको उत्तराखंड के लोक देवता- भगवान नरिसंह या नारिसंह या नृसिंह की गाथा सुनाने जा रहा हूं। उत्तराखंड के यह लोक देवता भगवान विष्णु के अवतारों वाला देवता नहीं है। हिमालयी जीवन में लोक देवताओं का बड़ा महत्व है। लोक देवताओं के साथ ही यहां वैदिक देवता भी पूजे जाते हैं। इनके अलावा हिमालय की कंदराओं, गुफाओं, नदियों के तटों पर सदियों से तपस्या करने वाले ऋषि- मुनि भी देवता का रूप पाते गए। यहां तक कि भूत बन कर भटकती आत्माओं को भी पूजा जाने लगा। इस बारे में भी विस्तार से बताऊंगा, परंतु इस बार नरसिंह देवका ती बात करते हैं। जब तक मैं आगे बढ़ूं, आपसे आग्रह है कि हिमालयीलोग यूट्यूब चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करके हमारे मिशन का हिस्सा बनिए।
भगवान नरसिंह का उल्लेख आते ही हमें भगवान विष्णु जी के उस अवतार का स्मरण आ आता है, जिनका मुंह सिंह का और धड़ मनुष्य का था। जो पौराणिक ग्रन्थों में इसी रूप में पूजे जाते हैं। भगवान विष्णु के दशावतारों में से चौथा अवतार भगवान नरसिंह को माना जाता है जिन्होंने अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए हिरण्यकश्यप को मारने के लिए पृथ्वी पर इस रूप में अवतार लिया था। मान्यता है कि वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को नरसिंह भगवान खंभे को फाड़कर प्रकट हुए थे। ज्योतिर्मठ यानी जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में जो भूर्ति है वह तो भगवान विष्णु के चौथे अवतार की है। परंतु इनका सम्बंध उत्तराखंड में जागर के रूप में पूजे जाने वाले नरसिंह देवता से नहीं है। क्योंकि जोशीमठ नृसिंह भगवान मंदिर में भगवान विष्णु अपने चौथे अवतार में पूजे जाते है, जो कि मुंह से सिंह और धड़ से मनुष्य रूप में हैं। परन्तु उत्तराखंड में नरसिंग देवता को भगवान विष्णु के अवतार की बजाए एक सिद्ध नाथ योगी की तरह पूजा जाता है। उत्तराखंड के जागरों में पूजे जाने वाले लोक देवता नरसिंह देवता एक जोगी हैं। नाथपंथी साधु। नरसिंह देवता के कई जगह इनके चार और कई जगह नौ रूप माने जाते हैं। इनके चार रूप इस तरह हैं। दुधिया नरसिंह, कच्या नरसिंह, खरंडा नरसिंह और डौडया नरसिंह। भगवान नरसिंह को लगभग पूरे उत्तराखंड में पूजा जाता है। इन्हें घर में आला बनाकर स्थापित किया जाता है। कहा जाता है कि ये नरसिंह एक सिद्ध पुरुष थे। उन्होंने नाथ सम्प्रदाय के गुरु गोरखनाथ से दीक्षा ग्रहण की थी । तत्कालीन राजनीति में इनका काफी दखल और प्रभाव था। यह एक सिद्ध और सतपुरुष होने के कारण कालान्तर में इन्हें देव रूप में पूजा जाने लगा। उत्तराखंड में नरसिंह देवता की जागर में इनके 52 वीरों और 9 रूपों का वर्णन किया जाता है। जिसमें नरसिंह देवता का एक जोगी के रूप में वर्णन होता है। ये हमेशा ही एक प्रिय झोली, चिमटा और टिमुरू या तिमुर का डंडा साथ में लिए रहते है। नरसिंह देवता के इन्ही प्रतीकों को देखकर उनको देवरूप मान कर उनकी पूजा की जाती हैं।…..
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22 сен 2022