दुर्गा कौन थी?जानने के बाद पूजना छोड़ सकते है#कबीर_सत्संग ●परम् पूज्य सन्त श्री अमृत साहेब जी
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दुर्गा देवी हिंदू धर्म में शक्ति और शक्ति की देवी मानी जाती हैं। वे देवताओं और धरती की रक्षा के लिए राक्षसों का संहार करने वाली देवी के रूप में पूजनीय हैं। दुर्गा का स्वरूप अनेक रूपों में वर्णित है, जिनमें प्रमुख हैं - महिषासुरमर्दिनी, शेरावाली, अष्टभुजा आदि। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब महिषासुर नामक राक्षस ने देवताओं को परेशान करना शुरू किया, तो भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपनी शक्तियों को मिलाकर दुर्गा का निर्माण किया। इस प्रकार, दुर्गा को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना गया है।
दुर्गा पूजा का महत्व विशेषकर भारत में बहुत अधिक है, खासकर नवरात्रि के समय में जब देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इसमें श्रद्धालु देवी के अलग-अलग अवतारों की पूजा करके उनसे आशीर्वाद मांगते हैं। दुर्गा को मातृत्व, शक्ति, करुणा और साहस का प्रतीक माना जाता है।
लेकिन यह भी सत्य है कि धार्मिक विचारों के प्रति विभिन्न दृष्टिकोण होते हैं। संत कबीर जैसे संतों ने पूजा के बाहरी रूप की बजाय आंतरिक साधना पर अधिक जोर दिया है। उनके विचारों के अनुसार, ईश्वर की पूजा बाहरी अनुष्ठानों से अधिक आत्मिक जागरूकता और सत्य की खोज से होती है। यदि आप इस दृष्टिकोण को समझना चाहते हैं, तो "संत कबीर भजन कुबेरपुर" जैसे चैनल आपको कबीर के भजनों और विचारों के माध्यम से आंतरिक साधना का महत्व समझा सकते हैं।
12 окт 2024