ब्रह्मसंहिता-5.48 यस्यैकनिश्वासितकालमथावलम्बय जीवन्ति लोमविलजा जगदण्डनाथाः।। विष्णुर्महान् सैहयस्य कलाविशेषो। गोविन्दमादि पुरुषं तमहं भजामि ।। हिंदी अनुवाद: "अनन्त ब्रह्माण्डों में से प्रत्येक ब्रह्माण्ड के शंकर, ब्रह्मा और विष्णु, महाविष्णु के श्वास भीतर लेने पर उनके शरीर के रोमों से प्रकट होते हैं और श्वास बाहर छोड़ने पर पुनः उनमें विलीन हो जाते हैं। मैं, उन श्रीकृष्ण की वन्दना करता हूँ जिनके महाविष्णु विस्तार हैं।"
Agar ap aisa chahti hain to Deen duniya se matlab khatam karna padta hai parmatma se sacchi ashtha or lagan lagani padegi apko jai shree ram jai Bala ji maharaj ki
@@DevSingh-fitness08 हा मैं बोलती हु और सब कुछ छोड़ भी दिया है जब भगवान हमे चुनेंगे तो दुनिया से मतलब भी छोड़ दुगी क्या रखा है इस संसार मे सब झूट और पाखंड ही है और कुछ नही दीक्षा लेनी है मुझे लेकिन अच्छे गुरु नही मिलते है बागेश्वर धाम से जुड़ना चाहती हु बस वो मुझे अपना ले येही पार्थना है🙏🙏
@@rupalirajput4967 bageshawar dhaam bhi accha hai but ap chaho to shiv ji ko apna guru bana sakti ho ya fir apne gali mohalle mein hi kisi pandit ji bade bujurg ho unhe apna guru ji bana k puja path kar sakti hain or jyada apki iccha hai to ap govardhan bhi jaa sakti ho ap baha se vidya prapt kar sakti ho ap ek vyaas ban sakti ho like krishna priya ji
यन्नखंदुरुचिरब्रह्म धेयं ब्रह्मादीभिः सुरेः गुणत्रयत्तिम् तम वन्दे वृन्दावनेश्वरम् (पद्मपुराण, पाताल खण्ड-77.60) वृंदावन के भगवान श्रीकृष्ण के चरणों के पंजों के नखों से प्रकट ज्योति परब्रह्म है जिसका ध्यान ज्ञानी और स्वर्ग के देवता करते हैं।
ब्रह्म वैवर्त पुराण ब्रह्मखण्ड : अध्याय 5 श्रीकृष्णके दाहिने नेत्रसे भयंकर गण प्रकट हुए, जो हाथोंमें त्रिशूल और पट्टिश लिये हुए थे। उन सबके तीन नेत्र थे और मस्तकपर चन्द्राकार मुकुट धारण करते थे। वे सब-के-सब विशालकाय तथा दिगम्बर थे। प्रजजलित अग्रिशिखाके समान जान पड़ते थे। वे सभी महान् भाग्यशाली भैरव कहलाये। वे शिवके समान ही तेजस्वी थे। रुरुभेरव, संहारभेरव, कालभेरव, असितभेरव, क्रोधभैरव, भीषणभेरव, महाभेरव तथा खट्वाड्रभैरव--ये आठ भैरव माने गये हैं।
ब्रह्म वैवर्त पुराण ब्रह्मखण्ड (अध्याय १७) ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि देवेश्वर, देवसमूह और चराचर प्राणी- ये सब आप भिन्न-भिन्न ब्रह्माण्डोंमें अनेक हैं। उन ब्रह्माण्डों हैं और देवताओंकी गणना करनेमें कौन समर्थ है? उन सबके एकमात्र स्वामी भगवान् श्रीकृष्ण हैं,
भाई 49 प्रकार के मारूत,,सबके कुल देवी देवता,,ग्राम देवता,,भैरवी के नाना प्रकार के भेद बताए गए हैं जो इस प्रकार हैं त्रिपुरा भैरवी, चैतन्य भैरवी, सिद्ध भैरवी, भुवनेश्वर भैरवी, संपदाप्रद भैरवी, कमलेश्वरी भैरवी, कौलेश्वर भैरवी, कामेश्वरी भैरवी, नित्याभैरवी, रुद्रभैरवी, भद्र भैरवी तथा षटकुटा भैरवी आदि। त्रिपुरा भैरवी ऊर्ध्वान्वय की देवता हैं। इन्हें ही मां त्रिपुर सुंदरी को महात्रिपुरसुंदरी, लीलामती, ललिताम्बिका, लीलेशी, षोडशी, ललिता, लीलावती, लीलेश्वरी, ललितागौरी,,,,,नव दुर्गा,, दशमहाविद्या,, देवी भागवत में 108 शक्तिपीठ हैं कितने प्रकार के भैरव तंत्रशास्त्र में अष्ट-भैरव का उल्लेख है - असितांग-भैरव, रुद्र-भैरव, चंद्र-भैरव, क्रोध-भैरव, उन्मत्त-भैरव, कपाली-भैरव, भीषण-भैरव तथा संहार-भैरव ,,वैसे भैरव 64 प्रकार के होते हैं,,,64 योगिनियां,,, इन्द्र आदि देवता और उनकी पत्नियां,,,कितने प्रकार की नदियां,,, समुद्र देव,,कितने प्रकार के पर्वत देवता,, कितने प्रकार के मेघ,,, कितने प्रकार की अग्नि,, कितने प्रकार के पवन,,अष्ट मात्रिका,,,नव ग्रह,,27 नक्षत्र और उनके चार चार चरण और उन चार चार चरणों के अधिष्ठाता देवता और भी बहुत विस्तार है यहां संभव नहीं है सब लिखना,,,यह सब हमारे सनातन हिन्दू धर्म संस्कृति के शत्रुओं का षड्यंत्र है कि किसी भी प्रकार सनातन हिन्दू धर्म और संस्कृति को सीमित करके बताना ताकी सनातन संस्कृति को हानि पहुंचाई जा सके,,,, हमारा धर्म और संस्कृति बहुत विस्तृत है इतना विस्तृत है कि गुरु बिन ज्ञान संभव नहीं,,,,
@@kalawathidevi5099 तो इसका अर्थ यह हुआ कि आपकी दृष्टि में और भी देवी देवता हैं जिनका वर्णन मैं यहां नहीं कर सका क्योंकि बहुत विस्तार है,,,,और एक बात क्या आपको पूर्ण ज्ञान है क्या आप संपूर्ण ज्ञानी हैं,,, मैं तो संपूर्ण ज्ञानी नहीं हूं
@@rupalirajput4967 thank you apke acche vichar k liye koshish meri bhi yehi hai ki main logo ka bhala karu isi liye brahma muhrat mein uth k naha k 4 baje hanuman ji puja bhi karta hu jis din mujhe hanuman ji sakshat darshan or apni sacchi abaj denge main usi din se sabki kalesh or bhut pret bhagane lag jaunga jai shree ram jai Bala ji maharaj ki
कुल की परिभाषा ही आपको पता नही होगी तो कुल देवता की बात करना ही व्यर्थ है अच्छा कुल देवता का अर्थ आपने बताया अपने पूर्वज जो अल्पायु मे मृत हो गये तो रामायण की एक चौपाई:- रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाही पर वचन न जाही इस चौपाई मे रामजी के कुल को रघुकुल से सम्बोधित किया है तो क्या महाराज रघु अल्पायु मे संसार से विदा ले लिए और फिर उन्हे आगे स्वर्ग मे भी जगह ना मिली ? ऐसा है क्या कुल किसी व्यक्ति के नाम से होता है और जिस देवता या देवी को वह व्यक्ति पूजता है वही देवी देवता आने वाली पीढी के कुल देवता या कुलदेवी कहलाते है
बृहदारण्य उपनिषद में एक बहुत सुन्दर संवाद है जिसमें यह प्रश्न है कि कितने देव हैं। उत्तर यह है कि वास्तव में केवल एक है जिसके कई रूप हैं। 1 पहला उत्तर है एक जिसने सृष्टि की रचना की 2 दूसरा उत्तर है त्रिदेव अर्थात (ब्रह्मा विष्णु महादेव) 3 तीसरा उत्तर है 33 कोटि अर्थात (33 प्रकार) इनमें 12 आदित्य,11 रूद्र,8 वसु और 2 अश्विनी कुमार हैं। 4 चौथा उत्तर हैं 3339 ये इंद्रलोक के देवता है जिनको अलग अलग कार्य मिला है जैसे इंद्र बारिश के देवता, पवन वायु के देवता, सूर्य देवता, अग्नि देवता, जल देवता, इत्यादि
कुल देवताका असलि मतलव आपने वताया जेसा नहि है. आपने वताए देवताको वायु देवता केहते हे, वायु देवता होने से पेहले वो कच्चि पिचास होते हे उने एक बिशेष तरिके के पुजा करके वायु बनाते है। ख्याल रहै पिचास वह लोग बनते है जो अल्पायु मे sucide या कोहि भि तरिके से ज्यान गवाते है। वायुका मतलव तो मुझे भि अच्छे से तो नहि मालुम लेकिन ज्यादातर शिव के योगिनि प्रायके कुल देवि होति है। 🙏
एक भगवान शिव ही है जो युगों युगों के बाद धरा पर आ कर देवी देवता बनाते भी है और हर रुप का अपने शरीर मे प्रकट करके इंसानी रुप से प्रदर्शन भी करते है । क्या देवता किसी शरीर मे आते हैं? कभी नही😅😅😅 यह इन्सान और गुरुओं की अज्ञानता का मार्ग दर्शाता है ।
Swami aap ko Namaskar Sharper Aani vaali Koi devataa ki ke si ne bandhan kar deya to usi bhandhan ko kaise bhahaar aana hai Swami aap kuch Upaay bholi ya Swami app ko sastanga pranaam