तालागांव, देवरानी - जेठानी मंदिर और रुद्र शिव।
देवरानी-जेठानी का मंदिर एक प्राचीन पुरातात्विक स्थान, सर्वप्रथम जिसकी ख़ोज 1873 में ब्रिटिशकाल के समय जे० डी० वैंगलर नामक पुरातात्विक विद् ने की थी।
महानिदेशक एलेक्जेंडर कर्निंघम के सहयोगी वेंगलर को ताला गांव की सूचना 1873-74 में तत्कालीन कमिश्नर फिशर ने दी। वेंगलर ने फिशर की सूचना के आधार पर पुरातात्विक स्थल के रूप में देवरानी-जेठानी मंदिर का नाम दर्ज कर लिया। यह नाम भग्नावशेष मंदिरों की स्थिति के अनुसार ग्रामीणों द्वारा नामकरण पर रखा गया।इसी मंदिर प्रांगण के जेठानी मंदिर में स्थित है एक ऐसी प्रतिमा जिसे रुद्र शिव कहा जाता है। 9 फुट की ऊंचाई और 4 फुट की चौड़ाई के साथ यह अद्भुत प्रतिमा मंदिर में विराजमान है।
इसका वजन करीब 5 टन है। दुनिया भर से लोग मंदिर से अधिक इस मूर्ति को देखने के लिए यहां आते हैं।
क्यों यह मूर्ति विशेष है ?
मूर्ति को तो लोगो ने रुद्र शिव का नाम दे दिया, पर अभी तक यह प्रमाणित नही है कि यह मूर्ति क्या वाकई में शिव का ही कोई रूप है या कोई और है।मूर्ति का हर भाग किसी न किसी जानवर, साँप या कीड़े के रूप में है, बड़े ही अनूठे तरीके से सारा कुछ एक मूर्ति में उकेरा गया है। मंदिर जहाँ 1500 साल पुराना बताया जाता है वही मूर्ति कब की है उसका कुछ पता नहीं, माना जाता है मूर्ति मंदिर से भी पुरानी है। शायद मूर्ति के संरक्षण के लिए ही मंदिर का निर्माण किया गया था।
प्रतिमा एक शारीरिक रूप में है जिसका हर भाग पशु, पक्षियों, सर्पो व कीड़ो के रूप में है। मूर्ति से सर पर पगड़ी की तरह दो साँप लपेटे गए है, नाक और आँखों के भौह स्थान पर छिपकली जैसे प्राणी है। मूँछे दो मछलियों से बनी है, कानों को मोर की आकृति से बनाया गया है। सर के पीछे साँप के फेन बनाये गए है, वहीं कंधा मगर के मुख जैसा है जिसमे से दोनों भुजाएं निकली हुई है। शरीर के कई जगहों पर मानव मुख की आकृति है जिनकी संख्या 7 है। पेट का निर्माण भी बड़े मानव मुख की तरह है। एक मूर्ति में इतना सब होने के बाद भी मूर्ति में कई आकृतियां और है जिन्हें समझना मुश्किल है।
इस प्रकार की प्रतिमा देश के अन्य किसी भाग में नही पाई गई, अभी तक यह नही जाना जा सका कि यह प्रतिमा किसकी है और इसका निर्माण किसने और क्यों किया। @Dk808
20 сен 2024