सन (1398-1518) 120yrs गलत धरना - कबीर जी का जन्म विधवा ब्रह्माणी से हुआ, उसने कबीर जी को त्याग दिया, और नीरू नीमा ने उठा लिया वास्तविकता - कबीर जी सन 1398 में बृहमूह्रत के समय सतलोक से एक प्रश्न रूप में आकर काशी के लहर तारा तालाब में कमल के फूल प्रकट हुए थे, जिसके साक्षात् दृष्टा ऋषि अष्टानांद जी थे, फिर नीरू नीमा बाद में उनको ले गए *कबीर जयंती* ❌ *कबीर प्राकट्य दिवस* ✅ ✅ कबीर साहेब द्वारा अपने प्रकट होने के विषय में बताना ➡️ *कबीर शब्दावली, भाग 2 (पृ 47, 63)* काशी में हम प्रगट भये हैं, रामानन्द चिताये । समरथ का परवाना लाये, हंस उबारन आये ।। क्षर अक्षर दोनूं से न्यारा, सोई नाम हमारा । सारशब्द को लेइके आये, मृत्यु लोक मंझारा ।। ➡️ *कबीर साखी ग्रंथ, परिचय को अंग* काया सीप संसार में, पानी बूंद शरीर । बिना सीप के मोतिया, प्रगटे दास कबीर ।74। धरती हती नहि पग धरूं, नीर हता नहि न्हाऊं । माता ते जनम्या नहीं, क्षीर कहां ते खाऊं ।82। ➡️ *कबीर पंथी शब्दावली, खंड 4* अमरलोक से चल हम आये, आये जक्त मंझारा हो । सही छाप परवाना लाये, समिरथ के कड़िहारा हो ।। जीव दुखि देखा भौसागर, ता कारण पगु धारा हो । वंश ब्यालिश थाना रोपा, जम्बू द्वीप मंझारा हो ।। ➡️ *कबीर सागर, अगम निगम बोध (पृ 41), ज्ञानबोध (पृ 29)* न हम जन्मे गर्भ बसेरा, बालक होय दिख लाया । काशी नगर जंगल बिच डेरा, तहां जुलाहे पाया ।। मात पिता मेरे कछु नहीं, नाहीं हमरे घर दासी । जाति जुलाहा नाम धराये, जगत कराये हांसी ।। हम हैं सत्तलोक के वासी । दास कहाय प्रगट भये काशी ।। कलियुग में काशी चल आये । जब तुम हमरे दर्शन पाये ।। तब हम नाम कबीर धराये । काल देख तब रहा मुरझाये ।। नहीं बाप ना मात जाये । अवगति ही से हम चले आये ।। सतियुग में सत्त सुकृत कहाय । त्रेता नाम मुनींदर धराय ।। द्वापर में करुणामय कहाय । कलियुग नाम कबीर रखाय ।। ➡️ *कबीर बीजक, साखी प्रकरण* कहां ते तुम आइया, कौन तुम्हारा ठाम । कौन तुम्हारी जाति है, कौन पुरुष को नाम ।1072। अमर लोक ते आइया, सुख सागर के ठाम । जाति हमारी अजाति है, सत्तपुरुष को नाम ।1073। ✅ कबीर साहेब के प्रकट होने पर संतों के विचार ➡️ *संत धर्मदास जी (मध्यप्रदेश)* हंस उबारन सतगुरू, जगत में अइया । प्रगट भये काशी में, दास कहाइया ॥ धन कबीर! कुछ जलवा, दिखाना हो तो ऐसा हो । बिना मां बाप के दुनियां में, आना हो तो ऐसा हो ॥ उतरा आसमान से नूर का, गोला कमल दल पर । वो आके बन गया बालक, बहाना हो तो ऐसा हो ॥ अब मोहे दर्शन दियो हो कबीर ॥ सत्तलोक से चलकर आए, काटन जम जंजीर ॥ थारे दरश से पाप कटत हैं, निरमल होवै है शरीर ॥ हिंदूओ के देव कहाये, मुस्लमानओं के पीर ॥ दोनों दीन का झगड़ा हुआ, टोहा ना पाया शरीर ॥ ➡️ *संत गरीबदास जी (हरियाणा)* अनंत कोटि ब्रम्हंड में, बन्दी छोड़ कहाय । सो तौ एक कबीर हैं, जननी जना न मांय ॥ शब्द सरूपी उतरे, सतगुरू सत कबीर । दास गरीब, दयाल हैं, डिंगे बंधावैं धीर ॥ साहिब पुरुष कबीर कूं, जन्म दिया नहीं कोय । शब्द स्वरूपी रूप है, घट - घट बोलै सोय ॥ ➡️ *संत हरिराम व्यास जी (वृंदावन)* कलि में सांचो भक्त कबीर ॥ दियो लेत ना जांचै कबहूं, ऐसो मन को धीर । पांच तत्त्व ते जन्म न पायो, काल ना ग्रासो शरीर । व्यास भक्त को खेत जुलाहों, हरि करुणामय नीर ।