(नलोपाख्यानपर्व) - द्विपञ्चाशत्तमोऽध्यायः
भीमसेन-युधिष्ठिर-संवाद, बृहदश्वका आगमन तथा युधिष्ठिरके पूछनेपर बृहदश्वके द्वारा नलोपाख्यानकी प्रस्तावना
जनमेजयने पूछा-ब्रह्मन्! अस्त्रविद्याकी प्राप्तिके लिये महात्मा अर्जुनके इन्द्रलोक चले जानेपर युधिष्ठिर आदि पाण्डवोंने क्या किया? ।। १ ।।
वैशम्पायनजीने कहा-राजन्! अस्त्रविद्याके लिये महात्मा अर्जुनके इन्द्रलोक जानेपर भरतकुलभूषण पाण्डव द्रौपदीके साथ काम्यकवनमें निवास करने लगे ।। २ ।।
तदनन्तर एक दिन एकान्त एवं पवित्र स्थानमें, जहाँ छोटी-छोटी हरी दूर्वा आदि घास उगी हुई थी, वे भरतवंशके श्रेष्ठ पुरुष दुःखसे पीड़ित हो द्रौपदीके साथ बैठे और धनंजय अर्जुनके लिये चिन्ता करते हुए अत्यन्त दुःखमें भरे अश्रुगद्गद कण्ठसे उन्हींकी बातें करने लगे। अर्जुनके वियोगसे पीड़ित उन समस्त पाण्डवोंको शोकसागरने अपनी लहरोंमें डुबो दिया ।। ३-४ ।।
पाण्डव राज्य छिन जानेसे तो दुःखी थे ही। अर्जुनके विरहसे वे और भी क्लेशमें पड़ गये थे। उस समय महाबाहु भीमने युधिष्ठिरसे कहा- ।। ५ ।।
‘महाराज! आपकी आज्ञासे भरतवंशका रत्न अर्जुन तपस्याके लिये चला गया। हम सब पाण्डवोंके प्राण उसीमें बसते हैं ।। ६ ।।
‘यदि कहीं अर्जुनका नाश हुआ तो पुत्रोंसहित पांचाल, हम पाण्डव, सात्यकि और वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण-ये सब-के-सब नष्ट हो जायँगे ।। ७ ।।
‘जो धर्मात्मा अर्जुन अनेक प्रकारके क्लेशोंका चिन्तन करते हुए आपकी आज्ञासे तपस्याके लिये गया, उससे बढ़कर दुःख और क्या होगा? ।। ८ ।।
‘जिस महापराक्रमी अर्जुनके बाहुबलका आश्रय लेकर हम संग्राममें शत्रुओंको पराजित और इस पृथ्वीको अपने अधिकारमें आयी हुई समझते हैं ।। ९ ।।
‘जिस धनुर्धर वीरके प्रभावसे प्रभावित होकर मैंने सभामें शकुनिसहित समस्त धृतराष्ट्रपुत्रोंको तुरंत ही यमलोक नहीं भेज दिया ।। १० ।।
‘हम सब लोग बाहुबलसे सम्पन्न हैं और भगवान् वासुदेव हमारे रक्षक हैं तो भी हम आपके कारण अपने उठे हुए क्रोधको चुपचाप सह लेते हैं ।। ११ ।।
‘भगवान् श्रीकृष्णके साथ हमलोग कर्ण आदि शत्रुओंको मारकर अपने बाहुबलसे जीती हुई सम्पूर्ण पृथ्वीका शासन कर सकते हैं ।। १२ ।।
17 окт 2024