स्वामी जी बहुत बहुत धन्यवाद आपको विस्तार से समझने के लिए आपके चरण स्पर्श करता हूं बहुत बहुत धन्यवाद ऐसे भी लोगों को प्रेरणा देते रहिए ताकि लोगों को समझ में आ सके भक्ति क्या है ज्ञान क्या है बहुत बहुत आभार आपका आपको कोटि कोटि प्रणाम
सगुण के बिना निर्गुण को जाना ही नही जा सकता यात्रा तो सगुण से ही करनी पड़ेगी कोई डायरेक्ट निर्गुण को कैसे जान सकता है शुरुआत सगुण से ही करनी पड़ेगी बिल्कुल क से ही शुरुआत करनी पड़ेगी
जय श्री गुरू देव जी आप के प्रवचनों से आपका दिन शुभ एवं मंगलमय हो जी निराकार साकार रूप में आज तक मैंने ऐसे उपयोग में आपका स्वागत करता हूं जी कृपा करके आप मुझे अपने जीवन भर अंतिम समय तक जय श्री राम जय गुरुदेव भगवान आपको दंडवत कोटि कोटि नमन प्रणाम आपको गुरुदेव भगवान
उपासना कब से शुरू हुई। मन में विचार आया कि जैसे किसी शक्तिशाली व्यक्ति को कुछ उपहार देकर जी हजूरी करके चापलूसी करके अपना काम कराया जा सकता है उसी तरह काल्पनिक सगुण और निर्गुण ब्रह्म की उपासना करके कोई अलौकिक शक्ति प्राप्त किया जा सकता है। उपासना एक तरह की चापलूसी है मन द्वारा बनाए गए भगवान को खुश करने के लिए, जो है ही नही। मन को नियंत्रण में रखना, और शुद्ध विचार रखना, मानव कल्याण बिना भेदभाव के करना मनुष्य का परम उद्देश्य होना चाहिए।
महाराज जी सरगुन निर्गुण का छतवान देते रहिए और संत गुरु सद्गुरु कबीर पर निर्गुण ब्रह्म का कलंक लगते और रोजी रोटी आप की दुकान चलाते रहे सदगुरु कबीर कभी भी निर्गुण ब्रह्म की उपासना नहीं की थी आप लोग सदगुरु कबीर को नीचा दिखाने के प्रयास क्या है लेकिन सदगुरु कबीर आप जैसे लोगों से उसकी ख्याति काम नहीं हो सकती है सदगुरु कबीर निर्गुण और स्वर गुण दोनों का विरोध किया है
Your reference is based on tulasidasji ram charitmanas ,you never refer valmiki he is also writer of original the first ramayan pl donot take in otherwise .
सगुण के बिना निर्गुण को जाना ही नही जा सकता यात्रा तो सगुण से ही करनी पड़ेगी कोई डायरेक्ट निर्गुण को कैसे जान सकता है शुरुआत सगुण से ही करनी पड़ेगी बिल्कुल क से ही शुरुआत करनी पड़ेगी
हां जी सगुण निर्गुण दोनों में ईश्वर खेलता है यानी नर। नारी दोनों में ईश्वर ही है या। ईश्वर ही दोनों है।नर। बिना नारी नहीं है और। नारी बिना नर। भी नहीं होता है इसी प्रकार सगुण बिना निर्गुण नहीं और। निर्गुण बिना सगुण नहीं होता है जैसे। किसी का। पुत्र नहीं होता तो।वो। व्यक्ति पिता कैसे होता है नहीं होता है इसी प्रकार सगुण बिना निर्गुण नहीं और निर्गुण नहीं तो सगुण भी। नहीं होता है इसी प्रकार निराकार बिना आकार। नहीं होता है और आकार बिना निराकार नहीं होता है जैसे छोटा नहीं होता तो बड़ा नहीं होता है और बड़ा नहीं होता तो छोटा। नहीं होता है इसी प्रकार सारा। ज्ञान समझो भ्रम ज्ञान में आना। पड़ता है। वेद ज्ञान से पुरा या। सही ज्ञान नहीं प्राप्त होता है जैसे भजन में साकी। आती है भ्रम ज्ञान है जो ज्ञान है बाकी सब ज्ञानडी ऐसा एक साकी में आता है सबका ज्ञान और सबका नाम।लो।तब। ज्ञानी बनो जैसे एक व्यक्ति एक ही।पुराण।का। ज्ञान जाणे या पढ़ें और एक व्यक्ति अट्ठारह पुराणों को पढ़ें।और।समझे। तो दोनों में एक ज्यादा ज्ञानी तो होगा पहले कवि। तो बहुत है आप तुलसी जी का।ही। ज्ञान में पड़े हो। ज्यादा ज्ञानी बनना चाहते हो।।तो सब कवियों की बात। और नाम होना चाहिए ताकि भगवान भी जानते हैं इस व्यक्ति में। कोई घमंड अहंकार नहीं है और उसको ज्ञान भी।देते। है घमंड और। अहंकार वाला व्यक्ति कभी। ज्ञानी नहीं होता है उसको। भगवान ज्ञानी नहीं मानते हैं चाहे वह कितना ज्ञानी केम।न।हो।उसको। ज्ञानी नहीं माना। जाता है क्योंकि अमृत के। अन्दर थोड़ा जहर मिला दें। तो वह अमृत नहीं काम आता।है। जैसे रावण बहुत ज्ञानी था। उसमें सच्चाई थी लेकिन सच्चाई के। अन्दर झूठ।मिला।दी।तो।उसकी सच्चाई बिगड़ी।के। नहीं बिगड़ी इसी। प्रकार कोई व्यक्ति की। बात की।कितनी। भी सच्चाई केम।न।हो। सच्चाई के। अन्दर थोड़ी झूठ।मिला।दे। तो उसकी। सच्चाई। नहीं काम। आवे हैं तुलसी ने सच्चाई के। अन्दर झूठ मिला दी। है अतः उनका। ज्ञान सब। झूठा।हो। गया है तुलसी घमंड और। अहंकार में फंस गए क्योंकि वे बराबर ज्ञानी नहीं हुए।थे अतः वे घमंड और अहंकार में फंस गए इसी। प्रकार बड़ी जाति के।लोग।भी। घमंड और अहंकार में फंसे।हुए।है।इनको। नहीं पता है घमंड और अहंकार क्या है इनका।उपयोग करने से क्या लाभ है और क्या हानि है ये किस का।गुण।है। राम का।है।या।रावण का। है गुण।है।ये।इन। लोगों को पता नहीं है अतः ये घमंड और। अहंकार से भरे हुए हैं।626
निर्गुण और सगुण में अन्तर इतना है सही बात सुनो। अन्तर सारी। बात छोड़ तत् और सत् में अन्तर है यानी सत् पिता है और तत् पुत्र हैं इसी प्रकार सगुण पिता है जो। पिता का गुण है दो। भागों में है पिता अगर निर्गुण रहें तो परिवार न।मानें। अतः पिता को तमो गुण।रहना पड़ता है।तमो गुण यानी परिवार में कोई सदस्य सच्चाई पर न चल।कर। कोई ग़लत रास्ते पर चलें तब। पिता थोड़ा गुस्से से समझाएं फिर भी नहीं माने। तो पिता कर्म के। हिसाब से दण्ड भी।देते।है। इसी गुण को।तमो गुण के नाम से जाने।जाते।है। इसी गुण को ही सगुण। भी कहते हैं और निर्गुण का। दुसरा नाम। निर्मल और निर्बल भी कहते हैं निर्गुण या। निर्मल गुण वहीं होता है जो पुत्र पिता के।सामने या किसी के। सामने न।बोले। और सबसे छोटा होकर रह।सकें। वही निर्गुण कहलाता है 626😊