यह अध्यात्मिक चेतावनी हेली भजन है। इनके लेखक भवानीदासजी महाराज है जो करीबन पांचसौ साल पूर्व हूऐ थे। जिन्होने मानव मात्र के इस संसार की मोह माया को एक तरह तरह की रिंझावणी वस्तुऐं जो मणिहारा के पास होती है उनको देख कर हम उस पर आकृषित होते है उसी भांति ये मोह माया भी उसी का प्रतीक है एसी मणिहारिक मोह माया मे लिप्त होना जीव कल्याण के लिए बहुत ही घातक है ,बाधक है। यह सोंग सोरठ का ही भाग है। इस बारह माह के अनुरूप महिनेवार अलग अलग वर्णन करते हुए कवि ने अपने पद व्याख्या की है जो बहुत ज्ञानवर्धक चेतावनी के साथ जीव आत्मा को हेली के नाम से सम्बोधित कर महिने वा मौसम का शुभ महौल दिखाया है यानि कि हर घड़ी परमात्म चिंतन के लिए आवश्यक है।यह बात गुरूम्हारा जांभोजी ने भी अपनी वाणी मे बतलाई गई है कि "हि्र्दे नाम विष्णु को जप्पो , हाथां करो टवाई।यानि हर्दय मे परमात्मा का भजन ओर बाहरी व्यवहारिक शारीरिक निर्वाहन के लिए काम करते रहो। इस हेली को गाने की ओरिजनल लय ताल हमने हमारे पिताश्री धूंकलरामजी मिहीरियाणी गोदारा से सुना करता था।आज मैने उन्ही लय ताल को वापस याद करते हुए उसी लहजै मे मैने इस ज्ञान योग चेतावनी हेली भजन प्रस्तुति देकर आप सभी श्रोतागणों को सादर प्रेषित किया है जो अवश्य मन लगाकर सुनना सोंग बीन मिनट का है जरूर लम्बा तो है लेकिन जिज्ञासु लोगों के लिए बहुत ही भक्ति भावविभोर करने वाला है। यह सोंग सोरठ है इसमे रिकोर्डिंग व म्यूजिक केबीएम स्टुडियो चितलवाना से है। गायक भारमल गोदारा सादूलढाणी चितलवाना सांचोर है।
20 сен 2024