श्राद्ध क्या है ? श्राद्ध का अर्थ है सत्य का धारण करना अथवा जिसको श्रद्धा से धारण किया जाए ..श्रद्धापूर्वक मन में प्रतिष्ठा रखकर,विद्वान,अतिथि,माता-पिता, आचार्य आदि की सेवा करने का नाम श्राद्ध है | श्राद्ध जीवित माता-पिता,आचार्य ,गुरु आदि पुरूषों का ही हो सकता है,मृतकों का नहीं.मृतकों का श्राद्ध तो पौराणिकों की लीला है..वैदिक युग में तो मृतक श्राद्ध का नाम भी नहीं था.. वेद तो बड़े स्पष्ट शब्दों में माता-पिता,गुरु और बड़ों की सेवा का आदेश देता है,यथा-- अनुव्रतः पितुः पुत्रो मात्रा भवतु संमनाः ! --अथर्व:-३-३०-२ पुत्र पिता के अनुकूल कर्म करने वाला और माता के साथ उत्तम मन से व्यवहार करने वाला हो.. श्राद्ध जीवितों का ही हो सकता है,मृतकों का नहीं..पितर संज्ञा भी जीवितों की ही होती है मृतकों की नहीं ..वैदिक धर्म की इस सत्यता को सिद्ध करने लिए सबसे पहले पितर शब्द पर विचार लिया जाता है.. पितर शब्द "पा रक्षेण" धातु से बनता है,अतः पितर का अर्थ पालक,पोषक,रक्षक तथा पिता होता है..जीवित माता-पिता ही रक्षण और पालन-पोषण कर सकते है..मरा हुआ दूसरों की रक्षा तो क्या करेगा उससे अपनी रक्षा भी नहीं हो सकती,अतः मृतकों को पितर मानना मिथ्या तथा भ्रममूलक है..वेद,रामायण, महाभारत,गीता,पुराण,ब्राह्मण ग्रन्थ तथा मनुस्मृति आदि शास्त्रों के अवलोकन से यह स्पष्ट विदित हो जाता है कि पितर संज्ञा जीवितों कि है मृतकों कि नहीं.. उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु ! त आ गमन्तु त इह श्रुवन्त्वधि ब्रुवन्तु ते अवन्त्वस्मान !! (यजुर्वेद:-१९-५७) हमारे द्वारा बुलाये जाने पर सोमरस का पान करनेवाले पितर प्रीतिकारक यज्ञो तथा हमारे कोशों में आएँ.वे पितर लोग हमारे वचनों को सुने,हमें उपदेश दें तथा हमारी रक्षा करें . इस मन्त्र ने इस बात को स्वीकार किया है कि पितर जीवित होते है,मृतक नहीं क्योंकि मृतक न आ सकते है,न सुन सकते है न उपदेश कर सकते है और न रक्षा कर सकते है..