यह सोंग आदि अनादि सनातनधर्म हिंदुआं कौमी एकता का प्रतीक है।इस सोंग मे समस्त हिंदुआं जातियों व ना ना प्रकार के पंथ सम्प्रदायों चेतावनी दी ग्ई है कि संठित रहो कोई किसी से आपसी वैरभाव मत रखो।सभी हिंदुवाणी जातियों कर्मप्रधान से जरूर अलग हो ग्ई है लेकिन सभी हिनदुत्ववादी सभी सनातनी है सभी को अपनी हिंदुवाणी राय अनुसार चलना है। सभी को चार वैद छ शास्त्र एवं महापुरुषों की वाणी मे बताई हुई बातों मानना ओर उन पर चलना हर हिंदुओंके लिए अति आवश्यक है।यह एक हिंदू ओं की सभी जातियों के लिए संठित होने व माधक पदार्थों का सेवन न करने तथा पिया अर्थात परमात्मा का ध्यान करते रहने के लिए मुख्य रूप से चेतावनी स्वरूप शुद्ध फागण सोंग गाया गया है। इसका लेखक भारमल गोदारा सादूलढाणी चितलवाना सांचोर है। गाणे का शुरुआति अंतरा "हक रो खाणो हद मे रहणो वैर किणुईं ना करणो रे" है।
20 сен 2024