चिकिटराज मेला 2024 (Read Caption)
चिकिटराज के वार्षिक अनुष्ठान मे सदियों पुरानी रियासतकालीन परंपरा का आज भी विद्धमान
छत्तीसगढ़ का आदिवासी बाहुल्य बस्तर अपनी अनोखी परंपरा, आदिवासी रीति-रिवाज, कला-संस्कृति, मेले मंड़ई के लिए विख्यात है।
बस्तर के आदिवासियों से जुड़ी परंपरा शायद ही अन्यत्र देखने को मिले। आदिवासी अपनी परंपरा को ही मुख्य धरोहर मानते हैं और यही वजह है कि सदियों से चली आ रही परंपरा आज भी विद्यमान है।
आज हम ऐसी ही एक पंरपरा के बारे बताने जा रहे हैं, जिसका संबंध बस्तर संभाग मुख्यालय से लगभग 159 किमी दूर बीजापुर जिला मुख्यालय में विराजमान चिकटराज देव से हैं, जो ना सिर्फ बीजापुर के आराध्य है बल्कि वर्ष में केवल एक बार ही वार्षिक अनुष्ठान के दौरान अंचलवासियों को दर्शन देते हैं।
तीन दिवसीय वार्षिक अनुष्ठान के दरम्यान ही चिकटराज देव नगर के तहसील आफिस भी पहुंचते हैं। जानकार गौतम राव बताते हैं कि रियासतकाल में राजकोष में वित्तीय व्यवस्था अंतर्गत कर इत्यादि के संग्रह के लिए खजांची नाम से व्यवस्था लागू थी, राजा-महाराजाओं द्वारा जिसका समय-समय पर निरीक्षण किया जाता था, चूंकि अब रियासतों का दौर खत्म हो चुका है और उसकी जगह तहसील दफतर ने ले ली है फिर भी कर्ता-धर्ता के रूप में चिकटराज देव तहसील दफतर पहुंचते हैं। जहां राजस्व व प्रशासन के आला अधिकारियों की मौजूदगी में खजांची के रूप में एक बक्सा रखकर देव की उपस्थिति में परंपरा का निवर्हन होता है।
वार्षिक अनुष्ठान के द्वितीय दिन यह परंपरा निभाई जाती है। पूरे विधि-विधान को संपन्न कराने के दौरान चिकटराज देव के साथ पुजारी, मंदिर समिति सदस्य और नगरवासी तहसील कार्यालय पहुंचते हैं।
मंदिर समिति से जुड़े सदस्य बताते हैं कि बस्तर की आराध्य मां दंतेश्वरी जब दंतेवाड़ा में विराजित हुई थी, उसी दौरान चिकटराज देव बीजापुर में विराजमान हुए। बीजापुर के अंतिम छोर में बसे पुजारी कांकेर में इनके पिता धर्मराज विराजमान है, इसी तरह गोंगला में कनपराज , चेरपाल में पोतराज, कोंडराज समेत इनके पांच भाई अंचल में विराजमान है।
स्पेशली थैंक्स P.Rajan Das sir
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21 окт 2024