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बालकाण्ड/शिव-विवाह/लिरिक्स/पाठ की सुगमता के लिए/स्वर-मंजूषा मिश्रा एवं अशोक पाठक/तबला-अशोक पाठक 

Kaundilya Music
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जिन कन्यायों के विवाह में बाधा आ रही हो , विलंब हो रहा हो , मनोनुकूल वर न् मिल रहा हो , उन सभी कन्याओं के लिए अत्यन्त्योपयोगी ।
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पाठ की सुगमता के लिए लिरिक्स है जो सभी कन्याओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगा ।
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लिरिक्स में शुद्धता का विशेष ध्यान रखा गया है ताकि शुद्ध पाठ हो सके और प्रभावशाली हो ।
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पाठ पूर्णतः शुद्ध अवस्था में 16 सोमवार तक करें , अवश्य लाभ मिलेगा ।
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धन्यवाद
🙏 जय श्री राम 🙏
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लिरिक्स
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तेहि अवसर नारद सहित अरु ऋषि सप्त समेत ।
समाचार सोनी तुहिनगिरी गवने तुरत निकेत ।।
तब नारद सबही समुझावा । पूरुब कथा प्रसंगु सुनावा ॥
मयना सत्य सुनहु मम बानी । जगदंबा तव सुता भवानी ॥
जनमीं प्रथम दच्छ गृह जाई । नामु सती सुंदर तनु पाई ॥
तहँहुँ सती संकरहि बिबाहीं । कथा प्रसिद्ध सकल जग माहीं ॥
एक बार आवत सिव संगा । देखेउ रघुकुल कमल पतंगा ॥
भयउ मोहु सिव कहा न कीन्हा । भ्रमबस बेषु सीय धर लीन्हा ॥
सिय बेषु सतीं जो कीन्ह तेहिं अपराध संकर परिहरीं ।
हर बिरहँ जाइ बहोरि पितु कें जग्य जोगानल जरीं ॥
अब जनमि तुम्हरे भवन निज पति लागि दारुन तपु किया ।
अस जानि संसय तजहु गिरिजा सर्वदा संकर प्रिया ।
जय जय गिरिबरराज किसोरी । जय महेस मुख चंद चकोरी ॥
जय गजबदन षडानन माता । जगत जननी दामिनी दुति गाता ॥
तब मयना हिमवंतु आनंदे । पुनि पुनि पारबती पद बंदे ॥
नारि पुरुष सिसु जुबा सयाने । नगर लोग सब अति हरषाने ॥
लगे होन पुर मंगल गाना । सजे सबहिं हाटक घट नाना ॥
भाँति अनेक भई जेवनारा । सूपसास्त्र जस कछु ब्यवहारा ॥
सो जेवनार कि जाई बखानी । बसहिं भवन जेहिं मातु भवानी ॥
सादर बोले सकल बराती । बिष्नु बिरंचि देव सब जाती ॥
बिबिधि पाँति बैठी जेवनारा । लागे परुसन निपुन सुआरा ॥
नारिबृंद सुर जेवँत जानी । लगीं देन गारीं मृदु बानी ॥
गारीं मधुर स्वर देहिं सुंदरि बिंग्य बचन सुनावहीं ।
भोजनु करहिं सुर अति बिलंबु बिनोद सुनि सच पावहीं ॥
जेवँत जो बढ्‌यो अनंद सो मुख कोटिहूँ न परै कह्यो ॥
अचवाँइ दीन्हें पान गवने बास जहँ जाको रह्यो ॥
बहुरि मुनीसन्ह उमा बोलाईं । करि सिंगारु सखी लै आईं ॥
देखत रूपु सकलसुर मोहे । बरनै छबि असजग कबिको है ॥
जगदंबिका जानि भवभामा । सुरन्ह मनहिं मन कीन्ह प्रनामा ॥
सुंदरता मरजाद भवानी । जाइ न कोटिहुँ बदन बखानी ॥
कोटिहुँ बदन नहिं बनै बरनत जग जननि सोभा महा ।
सकुचहिं कहत श्रुति सेष सारद मंदमति तुलसी कहा ॥
छबिखानि मातु भवानि गवनीं मध्य मंडप सिव जहाँ ।
अवलोकि सकहिं न सकुच पति पद कमल मनु मधुकर तहाँ ॥
पानिग्रहन जब कीन्ह महेसा । हियँ हरषे तब सकल सुरेसा ॥
बेदमंत्र मुनिबर उच्चरहीं । जय जय जय संकर सुर करहीं ॥
बाजहिं बाजन बिबिध बिधाना । सुमनबृष्टि नभ भै बिधि नाना ॥
हर गिरिजा कर भयउ बिबाहु । सकल भुवन भरि रहा उछाहु ॥
जय जय गिरिबरराज किसोरी । जय महेस मुख चंद चकोरी ॥
जय गजबदन षडानन माता । जगत जननी दामिनी दुति गाता ॥
दाइज दियो बहु भाँति पुनि कर जोरि हिमभूधर कह्यो ।
का देउँ पूरनकाम संकर चरन पंकज गहि रह्यो ॥
सिवँ कृपासागर ससुर कर संतोषु सब भाँतिहिं कियो ।
पुनि गहे पद पाथोज मयनाँ प्रेम परिपूरन हियो ॥
नाथ उमा मम प्रान सम गृहकिंकरी करेहु ।
छमेहु सकल अपराध अब होइ प्रसन्न बर देहु ॥
जय जय गिरिबरराज किसोरी । जय महेस मुख चंद चकोरी ॥
जय गजबदन षडानन माता । जगत जननी दामिनी दुति गाता ॥
! विश्राम !
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9 сен 2024

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शिव विवाह प्रसंग
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