आपने तो बहा दीअमृत रसधार ।हम सबके तो श्री राधे कृष्ण ही हैं जीवन आधार ।वो बेदर्दी नहीं दर्द हरने वाले हैं । जैसे कुम्हार एक घड़े का निर्माण करने वाले अंदर से हांथ का सहारा देकर बाहर से चोट मारते नजर आते हैं ठीक वैसे ही वो परमात्मा भी हमारे साथ बर्ताव करता है । जैसे कुम्हार अपने मिट्टी से बनाये हुए बर्तन को आंवा में तब तक पकाता है जब तक लाल सुर्ख नहीं हो जाता खूब जलाता है आग में पकाता है और पकाकर उसमें फिर चाहे जितना पानी भरते रहो लेकिन गलकर नहीं फूटता और खूब पके हुए घड़े को बजाते हैं सुर-ताल निकालते हैं घड़े से क्या बेहतरीन आवाज निकालते हैं ।तो परिपक्व हो जाता है जो भक्ति में उसके मउखआरबइदओं से निकले हुए एक एक शब्द अति महत्वपूर्ण होते हैं जो उनके पात्र होते हैं उन्हें ही प्राप्त होते हैं बाकी की समझ से परे होते हैं उनके लिए तो सब बकवास जैसा लगता है । बहुत बहुत धन्यवाद एवं नमस्कार आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।