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डॉ भगवान दास कीर्तनकार, कामवन
(अष्टछाप के श्रीगोविंदस्वामीजी के वंशज)
ડૉ ભગવાન દાસ કીર્તનકાર, કામવન
(અષ્ટછાપ કે શ્રીગોવિંદસ્વામીજી કે વંશજ)
सम्पर्क 9828737151
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ब्रज भयौ महरि कें पूत जब यह बात सुनी ।।
सुनि आनंदे सब लोग गोकुल गणित गुनी ।।
ब्रज पूरब पूरे पुन्य रूपी कुल सुथिर थुनी ।।
ग्रह लग्न नक्षत्र बलि सोधि कीनी वेद धुनी ॥
सुनि धाईं सब व्रजनारि सहज सिंगार कियें ॥
तन पहरें नौतन चीर काजर नैन दियें ।।
कसि कंचुकी तिलक लिलाट शोभित हार हियें।
कर कंकण कंचन थार मंगल साज लियें ॥
वे अपने अपने मेल निकसीं भांति भलीं ॥
मानों लाल मुनिनकी पांति पिंजरन चूर चलीं ।
वे गावें मंगलगीत मिलि दश पांच अलीं ।
मानों भोर भयौ रवि देखि फूली कमल कलीं ॥
उर अंचल उड़त न जान्यौ सारी सुरंग सुहीं ।।
मुख मांड्यों रोरी रंग सेंदुर मांग छुहीं ।
श्रम श्रवनन तरल तरौना बेनी शिथिल गुहीं ॥
शिर वरषत कुसुम सुदेश मानो मेघ फुहीं ॥
पीय पहलें पौहोंचीं जाय अति आनंद भरीं ।
लई भीतर भवन बुलाय सव शिशु पाँय परीं ॥
एक बदन उघारि निहारत देत असीस खरी ॥
चिरजीयौ यशोदानंद पूरन काम करी ॥
धन्य धन्य दिवस धन्य रात्र धन्य यह पहर घरी ॥
धन्य धन्य महरिजू की कूँख भागि सुहाग भरी ॥
जिन जायों एसौ पूत सब सुख फलन फरी ॥
थिर याप्यों सब परिवार मनकी शूल हरी ॥
सुनि ग्वालन गाय वहोरि बालक बोलि लिये ।।
गुहि गुंजा घसि वनधातु अँग अँग चित्र ठये ।।
शिर दधि माखनके माँट गावत गीत नये ॥
संग झांझ मृदंग बजावत सब नंद भवन गये ॥
एक नाचत करत कुलाहल छिरकत हरद दही ।।
मानों बरखत भादों मास नदी घृत दूध बही ॥
जाको जहीं जहीं चित्त जाय कौतुक तहीं तहीं ।।
रस आनंद मगन गुवाल काहू बदत नहीं ॥
एक धाय नंदजूपै जाय पुनि पुनि पाँय परें ।
एक आप आपुहिं माँझ हँसि हँसि अंक भरें ।
एक अंबर सब ही उतारि देत निशंक खरें ॥
एक दधिरोचन ओर दूब सबनके शीश धरै ॥
तव नंद न्हाय भये ठाड़े अरु कुश हाथ धरै ॥
नांदीमुख पितर पुजाय अंतर सोच हरें ।
घसि चंदन चारू मँगाय विप्रन तिलक करें ।
वर गुरुजन द्विजन पहराय सवनके पाँय परें ।
गन गैया गिनी न जाय तरुन सुबच्छ बढ़ी ।।
नित चरें यमुनाजूके काछ दूने दूध चढ़ी ॥
खुर रूपे तांबे पीठ सोने सींग मढ़ी ॥
ते दीनी द्विजन अनेक हरखि असीस पढ़ी ॥
तब अपने मित्र सुबंधु हँसि हँसि बोलि लिये ॥
मथि मृगमद मलय कपूर माथें तिलक किये ॥
उर मणिमाला पहराय बसन विचित्र दिये ॥
मानों बरषत मास अषाढ दादुर मोर जिये ।।
वर बंदी मागध सूत आंगन भवन भरै ॥
ते बोलें लै लै नाम हित कोऊ ना बिसरै ॥
जिन जो जाँच्यौ सो दीनौ रस नंदराय ढरै ॥
अति दान मान परधान पूरन काम करै ॥
तब रोहिनी अंबर मंगाय सारी सुरंग घनी ॥
ते दीनी बधून बुलाय जैसी जाय बनी ॥
वे अति आनंदित बहोरि निज गृह गोप धनी।।
मिलि निकसीं देत असीस रुचि अपुनी अपुनी ॥
तब घरघर भेरि मृदंग पटह निसान बजे ॥
वर बांधी वंदनमाल अरु ध्वज कलश सजे ॥
तब ता दिनतें वे लोग सुख संपति न तजे ॥
सुनि सूर सबनकी यह गति जे हरि चरन भजे
24 сен 2024