स्वामी जी जय ओशो , प्रणाम🙏, ये बात बहुत हद तक सच है कि, सहज संतोष, स्वयं की जीवंतता में दृष्टि, और पूरी प्रकृति समेत सम्पूर्ण अस्तित्व अस्तित्व के प्रति धन्यता यानि कृतज्ञता का भाव, और पल पल जीवन और मरण में पारस्परिक प्रसन्नवत सहज कलरव का प्राकृतिक संगीतमय दृश्य, उसमें सदा कुछ न कुछ नैसर्गिक रूप से सार से सार्थकता को पा जाने वाली हमारी दृष्टि और अहोभाव, अस्तित्व या प्रकृति के समक्ष - उसका हिस्सा स्वयं को अनुभव करते हुए स्वयं की सदा की प्राप्त सदा तुष्ट प्रसन्नता -मैत्री- प्रेम भाव, सदा निस्वार्थ सत्य कहने और करने की वृत्ति, मन वचन कर्म में एक रस रहने सद्वृत्ति, और सबसे बड़ी बात सबके प्रति अपनी भी आत्मनिर्भरता और अपने दृष्टि में बहुत अधिक सीमा तक सबके अस्तित्व की सहज स्वीकार्यता,,,,, ये सब हमारे हृदय को निश्छलता और गहराई देने के सूक्ष्म मनो कारक हैं। फिर भी हम साधारण लोग हों या आप सम अपने विकारों पे पूर्ण विजय किए हुए स्वविजित स्वामी जन हों,, कोई न कोई वैचार्य भाव की प्रधानता रखते ही है,, जैसे आपश्री के पिछले २० वीडियो एक दिन में देखे कोई तो पायेगा की, कुछ दिनों से आपकी वैचारिकी का झुकाव इस समय- लोगों की मनो सदव्यवहार की क्षीर्णता, मनो रोगों और उसपे पुरानी शिक्षा नीति का दुष्प्रभाव सहज दिखता है, मानो कुछ दिनों से आप नई शिक्षा नीति लाने और बाह पसारे उसके स्वागत को बहुत व्याकुल हों, भगवन। ये हमारे मनो मर्म में एक अदृश्य polarity लाता ही है,, वास्तव में आपका उद्देश्य सर्वहित ही है, फिर भी कोई एक बात इस polarity में कभी कभी छूट जाती है,, वही जो मैने कहा पाटस्पारिक निर्भरता और अन्य के स्वीकार्यता का भाव,, जैसे आप खुद पे विचार करें भगवन,, मानवी मूल्यों में हुई इतने गिरावट के बावजूद कुछ लोग टिके रह जाते हैं, ऐसे टिकाऊ लोग शोषित वर्ग में भी बिन अध्यात्म दृष्टि के या उसके साथ भी कुछ संख्या में मिल जाते हैं जैसे आप स्वयं हैं भले आप पर शोषण का असर नहीं हो सकता पर हुआ तो अवस्य है, आप टिकाऊ हैं क्युकी आध्यात्म के संतोष धन से युक्त हैं, मगर बहुधा टिकाऊ लोग शोषक वर्ग में बिना अध्यात्मिक दृष्टि, भौतिक धन से संपन्न लोग भी मिलते हैं, तो भगवन ना सिर्फ मानवीय मूल्य या मनो शान्ति के स्तर में कमी हुई है, साथ ही आपसी निर्भरता की स्वीकार्यता और सही सीखने योग्य सीखने की वृत्ति में भी कमी आई है,, चूकि लोगों को धनी शोषक वर्ग में ज्यादा टिकाऊ लोग मिलते हैं तो उन्होंने सीखना शुरू कर दिया कि सन्त को मत देखो स्वयं शोषक धनी या निर्दोष धनी लोगो को देखो , और देखा तो पाया की money matters, ये फैक्टर कॉमन है इसलिए सब महत्वाकांक्षी होते गए, केवल शिक्षा का दोष नहीं, शिक्षा ने भी समाज को बहुत दिया है अगर कोई सही संतोषी है तो, क्या दिया है ये भी देख पाएगा, सुषमा स्वराज के uno में पाकिस्तान के खिलाफ अंतिम भाषण को सुनिए जिसके बाद सच बोलने के अपराध में ईश्वर ने उन्हेंअपने पास बुला लिया। संगीत, आर्थिक स्वतन्त्रता, सर्व स्वीकार्यता, सेवा भाव भी, मनो रोग को ठीक करने के अच्छे माध्यम मध्यम हैं कि, शायद १३ मई या किसी तिथि को भारत में संगीत चिकित्सा दिवस पहले ही घोषित रूप से मनाया जाता रहा है। इन बातों पे भी तनिक दृष्टि डालें भगवन 🙏🙏 जय ओशो
@@krishanrajpal688 आपको ये भी लिखना चाहिए - कृपया time waste न करें, बिन मांगे opinion न दे। अपना सिरदर्द दूसरों के मगज में न घुसाए। शायद ये भाषा अब ठीक लगे, ज्यादा समझ आए।