भीष्म पितामह और भगवान परशुराम के युद्ध का महर्षि वेदव्यास रचित महान महा काव्य महाभारत में विस्तार से वर्णन है| भीष्म पितामह ने अंबा को स्वयंवर में जीत कर हरण करने के पश्चात अपने क्षत्रिय धर्म के विरुद्ध जाकर अंबा से विवाह नहीं किया था| तब लाचार अंबा अपनी प्रार्थना लेकर भृगुवंश शिरोमणि नारायण आवेशवतार (व्याख्यान चित्र नम्बर 7) परशुराम जी के पास गई थीं| भगवान परशुराम ने अपने शिष्य भीष्म पितामह को अंबा से विवाह कर अपना क्षत्रिय धर्म निभाने का संकेत दिया, लेकिन प्रतिज्ञा से बंधे भीष्म पितामह इसे न मान सके| जिसके फलस्वरूप आरंभ हुआ भीष्म और परशुराम के बीच धर्मोच्चित महासंग्राम, जो 23 दिनों तक चला| इस युद्ध में आखिर कौन विजित हुआ था और कौन पराजित, ऐसे प्रश्न कोई संकुचित सोच का व्यक्ति ही उठा सकता है| अंबोपख्यान पर्व के 179वे अध्याय में लिखा है कि स्वयं भीष्म पितामह अपने गुरु परशुराम के चरण स्पर्श करने जाते हैं| ये संदर्भ जो लोगो के लिए प्रेरणा होनी चाहिए वो दुर्भाग्यवश कुंठित मानसिकता का परिचायक बन गया है| युद्ध बिभिन्न चरणों में होता है| परशुराम जी ने युद्ध के प्रारंभ में ही भीष्म पितामह को अपने बाहुबल से हरा दिया था, जैसा की निम्न दिए श्लोकों में वर्णित है| जिसके बाद उनके वसु भाई, उनकी माता गंगा के साथ ब्राह्मण का रूप धरकर उन्हें बचाने पहुंचे थे | यह प्रसंग उद्योग पर्व के अन्तर्गत अंबोपख्यान पर्व के 182वे अध्याय से है| और फिर स्वयं भीष्म पितामह स्वीकार करते हैं कि महाबली परशुराम से उनका जितना संभव नहीं| ये भीष्म पितामह की महानता थी तब भीष्म पितामह को उनके वसु भाईयो ने उन्हें अमोघ प्रस्प्वापनास्त्र अस्त्र दिया था | ये अस्त्र ब्रह्मशिर की भांति प्रबल था और श्रृष्टि का विनाश कर सकता था| भीष्म क्षत्रिय धर्म से बंधे थे| भगवान परशुराम अम्बा के वचन से बंधे थे| देवताओं और परशुराम के पितरों ने इस विनाश को रोकने के लिए दोनों योद्धाओं से विनती की| परन्तु दोनों ही नहीं माने उसके पश्चात स्वयं भीष्म पितामह की माता ने परशुराम जी से अपने शस्त्र छोड़ने की प्रार्थना की जिसके पश्चात भृगुनंदन नारायण अवतार परशुराम जी ने अपने शस्त्र छोड़ दिए| | ये भगवान परशुराम की महानता थी| जय पराजय में इस युद्ध को तौलने वाले कभी सनातन सभ्यता की गुरु-शिष्य परम्परा को नहीं समझे| घटिया प्रवृति के लोग इसमें ब्राह्मण क्षत्रिय के बीच फुट डालने का अवसर तलाश रहे हैं पर सनातन का जोड़ इतना कमजोर नहीं है| महर्षि वेदव्यास ने जब इस प्रसंग की व्याख्या की तब उनका आशय क्या ऐसी दुष्प्रचारित मानसिकता होगी? वो गुरु शिष्य के अनन्य प्रेम को दर्शा रहे थे| भगवान परशुराम और भीष्म पितामह के बीच का युद्ध, गुरु और शिष्य के बीच का युद्ध था। आजतक सनातन इतिहास में कहीं भी गुरु से शिष्य श्रेष्ठता नहीं दिखाता। शिष्य हमेशा गुरु का आदर करता है। युद्ध भी गुरु की आज्ञा से करता है| अर्जुन ने भी गुरु द्रोणाचार्य की आज्ञा लेकर ही उनपर शस्त्र उठाये| यही हमारी संस्कृति है। परशुराम ने अम्बा को वचन दिया था, भीष्म भी अपनी गुरु की आज्ञा से ही लड़े। इसमें श्रेष्ठता ढूढंने वाले उसी कुचक्र कुविचार का शिकार हैं, जिसने सनातन सभ्यता को चोट पहुँचाई है। गुरु शिष्य को शिक्षा ही इसलिए देता है क्योंकि शिष्य एक दिन गुरु से भी श्रेष्ठ और निपुण बने। एक गुरु के लिए वो सबसे आनंद-विभोर पल होता है।सिर्फ विकारों से शिकार व्यक्ति ही इसमें प्रतियोगीता ढूंढ़ सकता है। धिक्कार है ऐसे लोगों पर, जो सनातन संस्कृति की एकता के शल्य बने बैठे हैं। धिक्कार है| भीष्म पितामह एक महान प्रतिज्ञनिष्ठ वसु, अपना धर्म निभा रहे थे तो वहीँ भगवान परशुराम स्वयंभु नारायण अवतार, अपनी लीला में मग्न थे| भीष्म परशुराम युद्ध में श्रेष्ठ बस भारतवर्ष की युग युगांतर से चली आ रही गुरु शिष्य की परम्परा है| हमें सहयोग दीजिये अगर आप चाहते हैं कि हम इसी तरह देश विदेश के मुद्दे उठाकर सच का साथ देते रहें, तो आप भी मदद कर सकते हैं।
@@kartikaytiwari3945 arjun ne bheshm dron karn ashwathama sab ko haraya tha pr nihate hone par unka vad nahi krta tha bheshm ne khud kaha tha mujhe shikahndi se marwao virat parv pdlo mahabharat ke pehle tirse din bhi arjun ne bheshm ko gayal karke behosh kia tha
@Anshuman Singh ek baar bhi bheshm dron ne arjun ko nahi haraya kintu arjun ne dron bheshm samet 5 maharathio ko akele haraya tha virat yudh me 14 ve din ke yudh ke akele arjun ne bina rath ke 8 maharathio ko haraya tha tb sab ne chhal se nihate arjun par baan chalaye the arjun ne sab ko hara dia tha karn ko bachane toh ashwathama agya tha😂usi raat duryudhan ne dron se kaha tha arjun ke hote hoye yeh yudh jitna asambv he arjun harakar kisi ka vad nahi krta tha kyuki nihato par baan nahi chalan chta tha lekin aap kaurvo ke bhakto ko tv serial dekhne hr mahabharat kaha pdni he😂
@@harsh312harshh arjun bhisma ke age kuch nahi tha wo pehli baat arjun ko bahut prem karte the isliye dhuryodhan Unko baar baar boltha tha pithma ap puri sakti se kiu yudh nahi kar rahe unhe bhi patha tha galat kon hai jo parsuram ko serender karwa diye arjun kon hai
क्या संस्कार हैं कि युद्ध से पहले आशीर्वाद लेते हैं फिर उन्हीं के विरुद्ध रोते हुए युद्ध करते हैं। उच्चतम कोटि का संस्कार, धैर्य एवं वीरता का साहस अपने आप में बहुत कुछ प्रदर्शित करता है। धन्य है ये भारत देश, धन्य हैं हम सभी भारतवासी जो ऐसे देश में जन्म लिया।
Bhai hum to uss dharm se hai jisme Prithviraj Chauhan jaise Raja ne apne dushman Ghori ko bhi shama daan de diya usko haraane ke baad. (Shama veerasya bhushanam)
भीष्म पितामह और भगवान परशुराम के युद्ध का महर्षि वेदव्यास रचित महान महा काव्य महाभारत में विस्तार से वर्णन है| भीष्म पितामह ने अंबा को स्वयंवर में जीत कर हरण करने के पश्चात अपने क्षत्रिय धर्म के विरुद्ध जाकर अंबा से विवाह नहीं किया था| तब लाचार अंबा अपनी प्रार्थना लेकर भृगुवंश शिरोमणि नारायण आवेशवतार (व्याख्यान चित्र नम्बर 7) परशुराम जी के पास गई थीं| भगवान परशुराम ने अपने शिष्य भीष्म पितामह को अंबा से विवाह कर अपना क्षत्रिय धर्म निभाने का संकेत दिया, लेकिन प्रतिज्ञा से बंधे भीष्म पितामह इसे न मान सके| जिसके फलस्वरूप आरंभ हुआ भीष्म और परशुराम के बीच धर्मोच्चित महासंग्राम, जो 23 दिनों तक चला| इस युद्ध में आखिर कौन विजित हुआ था और कौन पराजित, ऐसे प्रश्न कोई संकुचित सोच का व्यक्ति ही उठा सकता है| अंबोपख्यान पर्व के 179वे अध्याय में लिखा है कि स्वयं भीष्म पितामह अपने गुरु परशुराम के चरण स्पर्श करने जाते हैं| ये संदर्भ जो लोगो के लिए प्रेरणा होनी चाहिए वो दुर्भाग्यवश कुंठित मानसिकता का परिचायक बन गया है| युद्ध बिभिन्न चरणों में होता है| परशुराम जी ने युद्ध के प्रारंभ में ही भीष्म पितामह को अपने बाहुबल से हरा दिया था, जैसा की निम्न दिए श्लोकों में वर्णित है| जिसके बाद उनके वसु भाई, उनकी माता गंगा के साथ ब्राह्मण का रूप धरकर उन्हें बचाने पहुंचे थे | यह प्रसंग उद्योग पर्व के अन्तर्गत अंबोपख्यान पर्व के 182वे अध्याय से है| और फिर स्वयं भीष्म पितामह स्वीकार करते हैं कि महाबली परशुराम से उनका जितना संभव नहीं| ये भीष्म पितामह की महानता थी तब भीष्म पितामह को उनके वसु भाईयो ने उन्हें अमोघ प्रस्प्वापनास्त्र अस्त्र दिया था | ये अस्त्र ब्रह्मशिर की भांति प्रबल था और श्रृष्टि का विनाश कर सकता था| भीष्म क्षत्रिय धर्म से बंधे थे| भगवान परशुराम अम्बा के वचन से बंधे थे| देवताओं और परशुराम के पितरों ने इस विनाश को रोकने के लिए दोनों योद्धाओं से विनती की| परन्तु दोनों ही नहीं माने उसके पश्चात स्वयं भीष्म पितामह की माता ने परशुराम जी से अपने शस्त्र छोड़ने की प्रार्थना की जिसके पश्चात भृगुनंदन नारायण अवतार परशुराम जी ने अपने शस्त्र छोड़ दिए| | ये भगवान परशुराम की महानता थी| जय पराजय में इस युद्ध को तौलने वाले कभी सनातन सभ्यता की गुरु-शिष्य परम्परा को नहीं समझे| घटिया प्रवृति के लोग इसमें ब्राह्मण क्षत्रिय के बीच फुट डालने का अवसर तलाश रहे हैं पर सनातन का जोड़ इतना कमजोर नहीं है| महर्षि वेदव्यास ने जब इस प्रसंग की व्याख्या की तब उनका आशय क्या ऐसी दुष्प्रचारित मानसिकता होगी? वो गुरु शिष्य के अनन्य प्रेम को दर्शा रहे थे| भगवान परशुराम और भीष्म पितामह के बीच का युद्ध, गुरु और शिष्य के बीच का युद्ध था। आजतक सनातन इतिहास में कहीं भी गुरु से शिष्य श्रेष्ठता नहीं दिखाता। शिष्य हमेशा गुरु का आदर करता है। युद्ध भी गुरु की आज्ञा से करता है| अर्जुन ने भी गुरु द्रोणाचार्य की आज्ञा लेकर ही उनपर शस्त्र उठाये| यही हमारी संस्कृति है। परशुराम ने अम्बा को वचन दिया था, भीष्म भी अपनी गुरु की आज्ञा से ही लड़े। इसमें श्रेष्ठता ढूढंने वाले उसी कुचक्र कुविचार का शिकार हैं, जिसने सनातन सभ्यता को चोट पहुँचाई है। गुरु शिष्य को शिक्षा ही इसलिए देता है क्योंकि शिष्य एक दिन गुरु से भी श्रेष्ठ और निपुण बने। एक गुरु के लिए वो सबसे आनंद-विभोर पल होता है।सिर्फ विकारों से शिकार व्यक्ति ही इसमें प्रतियोगीता ढूंढ़ सकता है। धिक्कार है ऐसे लोगों पर, जो सनातन संस्कृति की एकता के शल्य बने बैठे हैं। धिक्कार है| भीष्म पितामह एक महान प्रतिज्ञनिष्ठ वसु, अपना धर्म निभा रहे थे तो वहीँ भगवान परशुराम स्वयंभु नारायण अवतार, अपनी लीला में मग्न थे| भीष्म परशुराम युद्ध में श्रेष्ठ बस भारतवर्ष की युग युगांतर से चली आ रही गुरु शिष्य की परम्परा है| हमें सहयोग दीजिये अगर आप चाहते हैं कि हम इसी तरह देश विदेश के मुद्दे उठाकर सच का साथ देते रहें, तो आप भी मदद कर सकते हैं।
@@Jaat_ravi001 Dronacharya ji ek brahman the kshtriya nahi. Ve Pandav aur Kauravon ke guru the unhe Kshtriya shikha di parantu wah swayam ek brahman the. Isliye PARSHURAM ji ne unhe apna shisha banaya.
गुरु श्रेष्ठ परशुराम शिष्य श्रेष्ठ भीष्म पितामह की जय हो जय हो जय हो | अद्भुत अद्भुत अद्भुत ! ऐसा संस्कारवान वीर योद्धा सिर्फ और सिर्फ मेरी मातृभूमि भारत मे ही हो सकता है | जय हो जय हो जय हो कृष्ण कन्हैया बंशी वाले की जय हो | 🙏🙏🙏
भीष्म पितामह और भगवान परशुराम के युद्ध का महर्षि वेदव्यास रचित महान महा काव्य महाभारत में विस्तार से वर्णन है| भीष्म पितामह ने अंबा को स्वयंवर में जीत कर हरण करने के पश्चात अपने क्षत्रिय धर्म के विरुद्ध जाकर अंबा से विवाह नहीं किया था| तब लाचार अंबा अपनी प्रार्थना लेकर भृगुवंश शिरोमणि नारायण आवेशवतार (व्याख्यान चित्र नम्बर 7) परशुराम जी के पास गई थीं| भगवान परशुराम ने अपने शिष्य भीष्म पितामह को अंबा से विवाह कर अपना क्षत्रिय धर्म निभाने का संकेत दिया, लेकिन प्रतिज्ञा से बंधे भीष्म पितामह इसे न मान सके| जिसके फलस्वरूप आरंभ हुआ भीष्म और परशुराम के बीच धर्मोच्चित महासंग्राम, जो 23 दिनों तक चला| इस युद्ध में आखिर कौन विजित हुआ था और कौन पराजित, ऐसे प्रश्न कोई संकुचित सोच का व्यक्ति ही उठा सकता है| अंबोपख्यान पर्व के 179वे अध्याय में लिखा है कि स्वयं भीष्म पितामह अपने गुरु परशुराम के चरण स्पर्श करने जाते हैं| ये संदर्भ जो लोगो के लिए प्रेरणा होनी चाहिए वो दुर्भाग्यवश कुंठित मानसिकता का परिचायक बन गया है| युद्ध बिभिन्न चरणों में होता है| परशुराम जी ने युद्ध के प्रारंभ में ही भीष्म पितामह को अपने बाहुबल से हरा दिया था, जैसा की निम्न दिए श्लोकों में वर्णित है| जिसके बाद उनके वसु भाई, उनकी माता गंगा के साथ ब्राह्मण का रूप धरकर उन्हें बचाने पहुंचे थे | यह प्रसंग उद्योग पर्व के अन्तर्गत अंबोपख्यान पर्व के 182वे अध्याय से है| और फिर स्वयं भीष्म पितामह स्वीकार करते हैं कि महाबली परशुराम से उनका जितना संभव नहीं| ये भीष्म पितामह की महानता थी तब भीष्म पितामह को उनके वसु भाईयो ने उन्हें अमोघ प्रस्प्वापनास्त्र अस्त्र दिया था | ये अस्त्र ब्रह्मशिर की भांति प्रबल था और श्रृष्टि का विनाश कर सकता था| भीष्म क्षत्रिय धर्म से बंधे थे| भगवान परशुराम अम्बा के वचन से बंधे थे| देवताओं और परशुराम के पितरों ने इस विनाश को रोकने के लिए दोनों योद्धाओं से विनती की| परन्तु दोनों ही नहीं माने उसके पश्चात स्वयं भीष्म पितामह की माता ने परशुराम जी से अपने शस्त्र छोड़ने की प्रार्थना की जिसके पश्चात भृगुनंदन नारायण अवतार परशुराम जी ने अपने शस्त्र छोड़ दिए| | ये भगवान परशुराम की महानता थी| जय पराजय में इस युद्ध को तौलने वाले कभी सनातन सभ्यता की गुरु-शिष्य परम्परा को नहीं समझे| घटिया प्रवृति के लोग इसमें ब्राह्मण क्षत्रिय के बीच फुट डालने का अवसर तलाश रहे हैं पर सनातन का जोड़ इतना कमजोर नहीं है| महर्षि वेदव्यास ने जब इस प्रसंग की व्याख्या की तब उनका आशय क्या ऐसी दुष्प्रचारित मानसिकता होगी? वो गुरु शिष्य के अनन्य प्रेम को दर्शा रहे थे| भगवान परशुराम और भीष्म पितामह के बीच का युद्ध, गुरु और शिष्य के बीच का युद्ध था। आजतक सनातन इतिहास में कहीं भी गुरु से शिष्य श्रेष्ठता नहीं दिखाता। शिष्य हमेशा गुरु का आदर करता है। युद्ध भी गुरु की आज्ञा से करता है| अर्जुन ने भी गुरु द्रोणाचार्य की आज्ञा लेकर ही उनपर शस्त्र उठाये| यही हमारी संस्कृति है। परशुराम ने अम्बा को वचन दिया था, भीष्म भी अपनी गुरु की आज्ञा से ही लड़े। इसमें श्रेष्ठता ढूढंने वाले उसी कुचक्र कुविचार का शिकार हैं, जिसने सनातन सभ्यता को चोट पहुँचाई है। गुरु शिष्य को शिक्षा ही इसलिए देता है क्योंकि शिष्य एक दिन गुरु से भी श्रेष्ठ और निपुण बने। एक गुरु के लिए वो सबसे आनंद-विभोर पल होता है।सिर्फ विकारों से शिकार व्यक्ति ही इसमें प्रतियोगीता ढूंढ़ सकता है। धिक्कार है ऐसे लोगों पर, जो सनातन संस्कृति की एकता के शल्य बने बैठे हैं। धिक्कार है| भीष्म पितामह एक महान प्रतिज्ञनिष्ठ वसु, अपना धर्म निभा रहे थे तो वहीँ भगवान परशुराम स्वयंभु नारायण अवतार, अपनी लीला में मग्न थे| भीष्म परशुराम युद्ध में श्रेष्ठ बस भारतवर्ष की युग युगांतर से चली आ रही गुरु शिष्य की परम्परा है| हमें सहयोग दीजिये अगर आप चाहते हैं कि हम इसी तरह देश विदेश के मुद्दे उठाकर सच का साथ देते रहें, तो आप भी मदद कर सकते हैं।
भारत भूमि में अनगिनत योद्धा हुए,, परन्तु कुछ वीर योद्धाओं ने मरते- मरते सबके हृदय मेंं अपनी ऐसी छवि बनायी जो अमिट है। ऐसे वीर योद्धाओं को कोटि कोटि प्रणाम🙏🙏
भीष्म पितामह और भगवान परशुराम के युद्ध का महर्षि वेदव्यास रचित महान महा काव्य महाभारत में विस्तार से वर्णन है| भीष्म पितामह ने अंबा को स्वयंवर में जीत कर हरण करने के पश्चात अपने क्षत्रिय धर्म के विरुद्ध जाकर अंबा से विवाह नहीं किया था| तब लाचार अंबा अपनी प्रार्थना लेकर भृगुवंश शिरोमणि नारायण आवेशवतार (व्याख्यान चित्र नम्बर 7) परशुराम जी के पास गई थीं| भगवान परशुराम ने अपने शिष्य भीष्म पितामह को अंबा से विवाह कर अपना क्षत्रिय धर्म निभाने का संकेत दिया, लेकिन प्रतिज्ञा से बंधे भीष्म पितामह इसे न मान सके| जिसके फलस्वरूप आरंभ हुआ भीष्म और परशुराम के बीच धर्मोच्चित महासंग्राम, जो 23 दिनों तक चला| इस युद्ध में आखिर कौन विजित हुआ था और कौन पराजित, ऐसे प्रश्न कोई संकुचित सोच का व्यक्ति ही उठा सकता है| अंबोपख्यान पर्व के 179वे अध्याय में लिखा है कि स्वयं भीष्म पितामह अपने गुरु परशुराम के चरण स्पर्श करने जाते हैं| ये संदर्भ जो लोगो के लिए प्रेरणा होनी चाहिए वो दुर्भाग्यवश कुंठित मानसिकता का परिचायक बन गया है| युद्ध बिभिन्न चरणों में होता है| परशुराम जी ने युद्ध के प्रारंभ में ही भीष्म पितामह को अपने बाहुबल से हरा दिया था, जैसा की निम्न दिए श्लोकों में वर्णित है| जिसके बाद उनके वसु भाई, उनकी माता गंगा के साथ ब्राह्मण का रूप धरकर उन्हें बचाने पहुंचे थे | यह प्रसंग उद्योग पर्व के अन्तर्गत अंबोपख्यान पर्व के 182वे अध्याय से है| और फिर स्वयं भीष्म पितामह स्वीकार करते हैं कि महाबली परशुराम से उनका जितना संभव नहीं| ये भीष्म पितामह की महानता थी तब भीष्म पितामह को उनके वसु भाईयो ने उन्हें अमोघ प्रस्प्वापनास्त्र अस्त्र दिया था | ये अस्त्र ब्रह्मशिर की भांति प्रबल था और श्रृष्टि का विनाश कर सकता था| भीष्म क्षत्रिय धर्म से बंधे थे| भगवान परशुराम अम्बा के वचन से बंधे थे| देवताओं और परशुराम के पितरों ने इस विनाश को रोकने के लिए दोनों योद्धाओं से विनती की| परन्तु दोनों ही नहीं माने उसके पश्चात स्वयं भीष्म पितामह की माता ने परशुराम जी से अपने शस्त्र छोड़ने की प्रार्थना की जिसके पश्चात भृगुनंदन नारायण अवतार परशुराम जी ने अपने शस्त्र छोड़ दिए| | ये भगवान परशुराम की महानता थी| जय पराजय में इस युद्ध को तौलने वाले कभी सनातन सभ्यता की गुरु-शिष्य परम्परा को नहीं समझे| घटिया प्रवृति के लोग इसमें ब्राह्मण क्षत्रिय के बीच फुट डालने का अवसर तलाश रहे हैं पर सनातन का जोड़ इतना कमजोर नहीं है| महर्षि वेदव्यास ने जब इस प्रसंग की व्याख्या की तब उनका आशय क्या ऐसी दुष्प्रचारित मानसिकता होगी? वो गुरु शिष्य के अनन्य प्रेम को दर्शा रहे थे| भगवान परशुराम और भीष्म पितामह के बीच का युद्ध, गुरु और शिष्य के बीच का युद्ध था। आजतक सनातन इतिहास में कहीं भी गुरु से शिष्य श्रेष्ठता नहीं दिखाता। शिष्य हमेशा गुरु का आदर करता है। युद्ध भी गुरु की आज्ञा से करता है| अर्जुन ने भी गुरु द्रोणाचार्य की आज्ञा लेकर ही उनपर शस्त्र उठाये| यही हमारी संस्कृति है। परशुराम ने अम्बा को वचन दिया था, भीष्म भी अपनी गुरु की आज्ञा से ही लड़े। इसमें श्रेष्ठता ढूढंने वाले उसी कुचक्र कुविचार का शिकार हैं, जिसने सनातन सभ्यता को चोट पहुँचाई है। गुरु शिष्य को शिक्षा ही इसलिए देता है क्योंकि शिष्य एक दिन गुरु से भी श्रेष्ठ और निपुण बने। एक गुरु के लिए वो सबसे आनंद-विभोर पल होता है।सिर्फ विकारों से शिकार व्यक्ति ही इसमें प्रतियोगीता ढूंढ़ सकता है। धिक्कार है ऐसे लोगों पर, जो सनातन संस्कृति की एकता के शल्य बने बैठे हैं। धिक्कार है| भीष्म पितामह एक महान प्रतिज्ञनिष्ठ वसु, अपना धर्म निभा रहे थे तो वहीँ भगवान परशुराम स्वयंभु नारायण अवतार, अपनी लीला में मग्न थे| भीष्म परशुराम युद्ध में श्रेष्ठ बस भारतवर्ष की युग युगांतर से चली आ रही गुरु शिष्य की परम्परा है| हमें सहयोग दीजिये अगर आप चाहते हैं कि हम इसी तरह देश विदेश के मुद्दे उठाकर सच का साथ देते रहें, तो आप भी मदद कर सकते हैं।
*हे प्रभु,मुझे कुछ नहीं चाहिए,सिर्फ जो प्यारी आंखें मेरा कॉमेंट पढ़ रही हैं,उनके माता पिता को लंबा जीवन और संसार की सारी खुशियां दे देना🤗🤗❤️* *जय श्री कृष्णा..........❤️🚩🌹*
@@subhashparmar5227 hahaa o भा ई थोड़ा महाभारत पढ़ भी लेना कभी सीरियल छोड़कर ,कर्ण को गंधर्वो, सात्यकि ,भीम ,अर्जुन , अभिमन्यु ,सबने युद्ध में हराया था सीरियल वाले कर्ण और रियल वाले कर्ण जिसको वेदव्यास ने महाभारत में बताया है उसमे जमीन आसमान का अंतर है भाई
@@navdeeptanwar9854 😂😂he sakha...me it to ni janta lekin jita bhi janta hu har ek serial..me sabhi Mahabharat dekhi he or mene sabhi me dekha he...karna jesa yodha na tha na he or na hi rahega or osne sabhi padvo ko hraya tha ..or shree.. Krishna ne bhi kaha tha he Arjun karna jesa yodha mahan he esa yodha mene aaj tak ni dekha..or vah..bar bar Karna ki tarif karte the Jisse Arjun krodhit hote the tab ye sab onhone ye kaha🙏🙏
@@subhashparmar5227 Accha to fir बताइए कि सात्यकि ,भीम ,गंधर्वो और अर्जुन के हाथों से भी कई बार हारने के कारण कर्ण महान योद्धा और भीष्म के बराबर का योद्धा कैसे हो गया थोड़ा हमारा भी ज्ञान बढ़ा दीजिए
भीष्म पितामह और भगवान परशुराम के युद्ध का महर्षि वेदव्यास रचित महान महा काव्य महाभारत में विस्तार से वर्णन है| भीष्म पितामह ने अंबा को स्वयंवर में जीत कर हरण करने के पश्चात अपने क्षत्रिय धर्म के विरुद्ध जाकर अंबा से विवाह नहीं किया था| तब लाचार अंबा अपनी प्रार्थना लेकर भृगुवंश शिरोमणि नारायण आवेशवतार (व्याख्यान चित्र नम्बर 7) परशुराम जी के पास गई थीं| भगवान परशुराम ने अपने शिष्य भीष्म पितामह को अंबा से विवाह कर अपना क्षत्रिय धर्म निभाने का संकेत दिया, लेकिन प्रतिज्ञा से बंधे भीष्म पितामह इसे न मान सके| जिसके फलस्वरूप आरंभ हुआ भीष्म और परशुराम के बीच धर्मोच्चित महासंग्राम, जो 23 दिनों तक चला| इस युद्ध में आखिर कौन विजित हुआ था और कौन पराजित, ऐसे प्रश्न कोई संकुचित सोच का व्यक्ति ही उठा सकता है| अंबोपख्यान पर्व के 179वे अध्याय में लिखा है कि स्वयं भीष्म पितामह अपने गुरु परशुराम के चरण स्पर्श करने जाते हैं| ये संदर्भ जो लोगो के लिए प्रेरणा होनी चाहिए वो दुर्भाग्यवश कुंठित मानसिकता का परिचायक बन गया है| युद्ध बिभिन्न चरणों में होता है| परशुराम जी ने युद्ध के प्रारंभ में ही भीष्म पितामह को अपने बाहुबल से हरा दिया था, जैसा की निम्न दिए श्लोकों में वर्णित है| जिसके बाद उनके वसु भाई, उनकी माता गंगा के साथ ब्राह्मण का रूप धरकर उन्हें बचाने पहुंचे थे | यह प्रसंग उद्योग पर्व के अन्तर्गत अंबोपख्यान पर्व के 182वे अध्याय से है| और फिर स्वयं भीष्म पितामह स्वीकार करते हैं कि महाबली परशुराम से उनका जितना संभव नहीं| ये भीष्म पितामह की महानता थी तब भीष्म पितामह को उनके वसु भाईयो ने उन्हें अमोघ प्रस्प्वापनास्त्र अस्त्र दिया था | ये अस्त्र ब्रह्मशिर की भांति प्रबल था और श्रृष्टि का विनाश कर सकता था| भीष्म क्षत्रिय धर्म से बंधे थे| भगवान परशुराम अम्बा के वचन से बंधे थे| देवताओं और परशुराम के पितरों ने इस विनाश को रोकने के लिए दोनों योद्धाओं से विनती की| परन्तु दोनों ही नहीं माने उसके पश्चात स्वयं भीष्म पितामह की माता ने परशुराम जी से अपने शस्त्र छोड़ने की प्रार्थना की जिसके पश्चात भृगुनंदन नारायण अवतार परशुराम जी ने अपने शस्त्र छोड़ दिए| | ये भगवान परशुराम की महानता थी| जय पराजय में इस युद्ध को तौलने वाले कभी सनातन सभ्यता की गुरु-शिष्य परम्परा को नहीं समझे| घटिया प्रवृति के लोग इसमें ब्राह्मण क्षत्रिय के बीच फुट डालने का अवसर तलाश रहे हैं पर सनातन का जोड़ इतना कमजोर नहीं है| महर्षि वेदव्यास ने जब इस प्रसंग की व्याख्या की तब उनका आशय क्या ऐसी दुष्प्रचारित मानसिकता होगी? वो गुरु शिष्य के अनन्य प्रेम को दर्शा रहे थे| भगवान परशुराम और भीष्म पितामह के बीच का युद्ध, गुरु और शिष्य के बीच का युद्ध था। आजतक सनातन इतिहास में कहीं भी गुरु से शिष्य श्रेष्ठता नहीं दिखाता। शिष्य हमेशा गुरु का आदर करता है। युद्ध भी गुरु की आज्ञा से करता है| अर्जुन ने भी गुरु द्रोणाचार्य की आज्ञा लेकर ही उनपर शस्त्र उठाये| यही हमारी संस्कृति है। परशुराम ने अम्बा को वचन दिया था, भीष्म भी अपनी गुरु की आज्ञा से ही लड़े। इसमें श्रेष्ठता ढूढंने वाले उसी कुचक्र कुविचार का शिकार हैं, जिसने सनातन सभ्यता को चोट पहुँचाई है। गुरु शिष्य को शिक्षा ही इसलिए देता है क्योंकि शिष्य एक दिन गुरु से भी श्रेष्ठ और निपुण बने। एक गुरु के लिए वो सबसे आनंद-विभोर पल होता है।सिर्फ विकारों से शिकार व्यक्ति ही इसमें प्रतियोगीता ढूंढ़ सकता है। धिक्कार है ऐसे लोगों पर, जो सनातन संस्कृति की एकता के शल्य बने बैठे हैं। धिक्कार है| भीष्म पितामह एक महान प्रतिज्ञनिष्ठ वसु, अपना धर्म निभा रहे थे तो वहीँ भगवान परशुराम स्वयंभु नारायण अवतार, अपनी लीला में मग्न थे| भीष्म परशुराम युद्ध में श्रेष्ठ बस भारतवर्ष की युग युगांतर से चली आ रही गुरु शिष्य की परम्परा है| हमें सहयोग दीजिये अगर आप चाहते हैं कि हम इसी तरह देश विदेश के मुद्दे उठाकर सच का साथ देते रहें, तो आप भी मदद कर सकते हैं।
✍🏻अंग्रेजी में एक कहावत है: Every cloud has a silver lining. यह कोरोना पर भी लागु होता है। सोशल मीडिया में लोग तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं सडकों पर नीलगाय और हिरणों के विचरण की। यह भी कि प्रदुषण में भारी कमी आयी है। लेकिन इसके दुसरे पक्ष के ऊपर विचार कीजिये। अस्पतालों में OPD बंद है; इसके बावजूद इमरजेंसी में भीड़ नहीं है। तो बीमारियों में इतनी कमी कैसे आ गयी? माना, सड़कों पर गाड़ियां नहीं चल रही हैं; इसलिए सड़क दुर्घटना नहीं हो रही है। परन्तु कोई हार्ट अटैक, ब्रेन हेमरेज या हाइपरटेंशन जैसी समस्याएं भी नहीं आ रही हैं। ऐसा कैसे हो गया की कहीं से कोई शिकायत नहीं आ रही है की किसी का इलाज नहीं हो रहा है? दिल्ली के निगमबोध घाट पर प्रतिदिन आने वाले शवों की संख्या में २४ प्रतिशत की कमी आयी है। दिल्ली छोड़िये साहब बनारस का हाल देखे हरिश्चनद्र घाट पर औसतन प्रतिदिन 80 से 100 शव आते थे आज करोना के माहौल मे प्रतिदिन 20 या 25 डेड बॉडी आ रही हैं इसी तरह मणीकरणिका पर भी यही हालात वहॉ के डोम राज परिवार से पुछने पर वो भी आश्चर्य चकित होते हुए बताते है की ये सन्धी मौसम है (जाड़े से गर्मी मे जाना) इस समय हर साल डेड बॉडी मे बढोत्तरी होती है परन्तु पता नही क्यो भारी कमी है डेड बाडी की जबकी केवल B H U से प्रतिदिन10से 15 शव आते थे वो एक दम बन्द है मै BHU गया जो मरिज भर्ती थे वो तो सब है नये मरिज की भर्ती नही हो रही तो वाकई मे ये आश्चर्य चकित करने वाला है की सारी बिमारी सब गायब है क्या कोरोना वायरस ने सभी बिमारियों को मार दिया...? नहीं. यह सवाल उठाता है मेडिकल पेशा के वणिज्यीकरण का। जहाँ कोई बीमारी नहीं भी हो वहां डॉक्टर उसे विकराल बना देते हैं। कॉर्पोरेट हॉस्पिटल के उदभव के बाद तो संकट और गहरा हो गया है। मामूली सर्दी-खांसी में भी कई हज़ारों और शायद लाख का भी बिल बन जाना कोई हैरतअंगेज़ बात नहीं रह गयी है। अभी अधिकतर अस्पतालों में बेड खाली पड़े हैं। मैं डॉक्टरों की सेवा की अहमियत को कम करने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ। कोविद १९ में जो सेवा दे रहे हैं उन्हें मैं नमन करता हूँ। लेकिन डर कुछ ज़्यादा ही हो गया है। बहुत सारी समस्याएं डॉक्टरों के कारण भी है। इसके अलावा लोग घर का खाना खा रहे हैं, रेस्तराओं का नहीं। इससे भी फर्क पड़ता है। अगर PHED अपना काम ठीक से करे और लोगों को पीने का पानी शुद्ध मिले तो आधी बीमारियां ऐसे ही खत्म हो जाएंगी। कनाडा में लगभग ४-५ दशक पूर्व एक सर्वेक्षण हुआ था। वहां लम्बी अवधि के लिए डॉक्टरों की हड़ताल हुई थी। सर्वेक्षण में पाया गया कि इस दौरान मृत्यु दर में कमी आ गयी। स्वास्थ्य हमारी जीवनशैली का हिस्सा है जी केवल डॉक्टरों पर निर्भर नहीं है। महत्मा गाँधी ने हिन्द स्वराज में लिखा है कि डॉक्टर कभी नहीं चाहेंगे की लोग स्वस्थ रहें; वकील कभी नहीं चाहेंगे कि आपसी कलह खत्म हो। जो भी हो, lockdown से परेशानियां हैं जो अपरिहार्य हैं लेकिन इसने कुछ ज्ञानवर्धक एवं दिलचस्प अनुभव भी दिए हैं। ज़रा सोचिये...!😞🤔🤭👌🤔🙏🏻🙏🏻
Ha lekin jit parshuram ki भीष्म पितामह और भगवान परशुराम के युद्ध का महर्षि वेदव्यास रचित महान महा काव्य महाभारत में विस्तार से वर्णन है| भीष्म पितामह ने अंबा को स्वयंवर में जीत कर हरण करने के पश्चात अपने क्षत्रिय धर्म के विरुद्ध जाकर अंबा से विवाह नहीं किया था| तब लाचार अंबा अपनी प्रार्थना लेकर भृगुवंश शिरोमणि नारायण आवेशवतार (व्याख्यान चित्र नम्बर 7) परशुराम जी के पास गई थीं| भगवान परशुराम ने अपने शिष्य भीष्म पितामह को अंबा से विवाह कर अपना क्षत्रिय धर्म निभाने का संकेत दिया, लेकिन प्रतिज्ञा से बंधे भीष्म पितामह इसे न मान सके| जिसके फलस्वरूप आरंभ हुआ भीष्म और परशुराम के बीच धर्मोच्चित महासंग्राम, जो 23 दिनों तक चला| इस युद्ध में आखिर कौन विजित हुआ था और कौन पराजित, ऐसे प्रश्न कोई संकुचित सोच का व्यक्ति ही उठा सकता है| अंबोपख्यान पर्व के 179वे अध्याय में लिखा है कि स्वयं भीष्म पितामह अपने गुरु परशुराम के चरण स्पर्श करने जाते हैं| ये संदर्भ जो लोगो के लिए प्रेरणा होनी चाहिए वो दुर्भाग्यवश कुंठित मानसिकता का परिचायक बन गया है| युद्ध बिभिन्न चरणों में होता है| परशुराम जी ने युद्ध के प्रारंभ में ही भीष्म पितामह को अपने बाहुबल से हरा दिया था, जैसा की निम्न दिए श्लोकों में वर्णित है| जिसके बाद उनके वसु भाई, उनकी माता गंगा के साथ ब्राह्मण का रूप धरकर उन्हें बचाने पहुंचे थे | यह प्रसंग उद्योग पर्व के अन्तर्गत अंबोपख्यान पर्व के 182वे अध्याय से है| और फिर स्वयं भीष्म पितामह स्वीकार करते हैं कि महाबली परशुराम से उनका जितना संभव नहीं| ये भीष्म पितामह की महानता थी तब भीष्म पितामह को उनके वसु भाईयो ने उन्हें अमोघ प्रस्प्वापनास्त्र अस्त्र दिया था | ये अस्त्र ब्रह्मशिर की भांति प्रबल था और श्रृष्टि का विनाश कर सकता था| भीष्म क्षत्रिय धर्म से बंधे थे| भगवान परशुराम अम्बा के वचन से बंधे थे| देवताओं और परशुराम के पितरों ने इस विनाश को रोकने के लिए दोनों योद्धाओं से विनती की| परन्तु दोनों ही नहीं माने उसके पश्चात स्वयं भीष्म पितामह की माता ने परशुराम जी से अपने शस्त्र छोड़ने की प्रार्थना की जिसके पश्चात भृगुनंदन नारायण अवतार परशुराम जी ने अपने शस्त्र छोड़ दिए| | ये भगवान परशुराम की महानता थी| जय पराजय में इस युद्ध को तौलने वाले कभी सनातन सभ्यता की गुरु-शिष्य परम्परा को नहीं समझे| घटिया प्रवृति के लोग इसमें ब्राह्मण क्षत्रिय के बीच फुट डालने का अवसर तलाश रहे हैं पर सनातन का जोड़ इतना कमजोर नहीं है| महर्षि वेदव्यास ने जब इस प्रसंग की व्याख्या की तब उनका आशय क्या ऐसी दुष्प्रचारित मानसिकता होगी? वो गुरु शिष्य के अनन्य प्रेम को दर्शा रहे थे| भगवान परशुराम और भीष्म पितामह के बीच का युद्ध, गुरु और शिष्य के बीच का युद्ध था। आजतक सनातन इतिहास में कहीं भी गुरु से शिष्य श्रेष्ठता नहीं दिखाता। शिष्य हमेशा गुरु का आदर करता है। युद्ध भी गुरु की आज्ञा से करता है| अर्जुन ने भी गुरु द्रोणाचार्य की आज्ञा लेकर ही उनपर शस्त्र उठाये| यही हमारी संस्कृति है। परशुराम ने अम्बा को वचन दिया था, भीष्म भी अपनी गुरु की आज्ञा से ही लड़े। इसमें श्रेष्ठता ढूढंने वाले उसी कुचक्र कुविचार का शिकार हैं, जिसने सनातन सभ्यता को चोट पहुँचाई है। गुरु शिष्य को शिक्षा ही इसलिए देता है क्योंकि शिष्य एक दिन गुरु से भी श्रेष्ठ और निपुण बने। एक गुरु के लिए वो सबसे आनंद-विभोर पल होता है।सिर्फ विकारों से शिकार व्यक्ति ही इसमें प्रतियोगीता ढूंढ़ सकता है। धिक्कार है ऐसे लोगों पर, जो सनातन संस्कृति की एकता के शल्य बने बैठे हैं। धिक्कार है| भीष्म पितामह एक महान प्रतिज्ञनिष्ठ वसु, अपना धर्म निभा रहे थे तो वहीँ भगवान परशुराम स्वयंभु नारायण अवतार, अपनी लीला में मग्न थे| भीष्म परशुराम युद्ध में श्रेष्ठ बस भारतवर्ष की युग युगांतर से चली आ रही गुरु शिष्य की परम्परा है| हमें सहयोग दीजिये अगर आप चाहते हैं कि हम इसी तरह देश विदेश के मुद्दे उठाकर सच का साथ देते रहें, तो आप भी मदद कर सकते हैं।
गुरु द्रोण जैसा होना चाहिए, जो अपने शिष्य से श्रेष्ठ योद्धाओंका अँगूठा काट कर माँग सके । आर्य नीती, भूमिपुत्रों को कमजोर करो, उनका छल करो, कपट करो औऱ मुलनिवासिय भूमिपुत्रों को निर्बल, असहाय बनाने की ।
पृराने महाभारत सीरियल में जिसने भी जो पात्र निभाया वह काबिले तारीफ है,आज जो सीरियल लोग बना रहे हैं इसमें वह संवाद नजर नहीं आता। पहले के महाभारत को जो भी देखता है मानो लोग उसी युग में चले गए हों।
@@vidit2534 to mere bhai usne brahmin+kshatriya likha hai isme kahi bhi vaishya ya shudra ki bezatti ya unko gaali di hai kya ?? Or naam naa likhna koi jahilta ya crime to h nahi. :)
भीष्म जीते नहीं थे, अपितु उन्होंने परशुराम जी के सामने उनके इष्ट और गुरु शिव का अस्त्र प्रयोग करना चाहा, जिसका उत्तर परशुराम जी नहीं देना चाहते थे। परशुराम जी, श्री हरि विष्णु के षष्ठमावतार हैं। विष्णु के किसी अवतार को पराजित करना असम्भव है। हरि हरि विष्णु
isme mazak kon uda raha h .. Mne serials ki Tamiz aur Tehzib k uper tariff ki .. mazak kaha se laga apko .. kuch bhi yar pehle parh to lo sahi se kya cmnt kiya h mne .. wse tumhe reply krne me mujhe koi intrest nhi .. lekin shayad mera cmnt tumhari smjh nhi aya isliye kiya. . Aur 2sri baat me dharam waram ko nhi maanta OK .
@@aliasadzaidi1945 kuch log pagal kutte Jaise hote hai, in logo se muh mat lariye, aapka samay lost Hoga. In logon ke chalte desh aage nahi bar rahe hai.
What do you mean by show? He's a great actor but it is the power of the character that he portrayed and story of Mahabharata that is binding the viewers ..
PARSHURAM JI'S role was played by popular character artist of Punjabi films nowadays Shivender Mahal ,, he also played SHIVJI'S role in this epic serial ..
The character of Bheeshma Pitamah by Mukesh Khanna is etched in minds. Nobody and I repeat nobody can even come hundreds of miles close to his performance in this epic Mahabharata serial. His dialogue delivery, expressions , body language was un matchable. I have not seen any actor , not even my favourite AB, have such a screen presence. He was way too dominating. I must have seen this epic serial innumerable times and every time it as engrossing as ever. His next larger than life performance was in Yalgaar as Police commissioner.
Mukesh Khanna carried the serial single handedly on his shoulders👍🙏👍🙏👌👌👌👍💪if any other had played PITAMAHAA's role the serial would have been a big ""disaster''",only bhagwan SRI KRISHNA & PITAMAHAA themselves saved CHOPRA team by inaculating a Divine influence on B R CHOPRA & team ..... Like those agree...
2013 Star Plus Mahabharat??? Made by jokers, acted by Models not Actor's. The full series was shit, Nothing in Front of BR CHOPRA'S ORIGINAL MAHABHARATA 1988
Trillions Trillions Trillions Trillions Trillions Uncountable Salute to Shri BR Chopra Jee and Ramanand Sagar Jee for making such a Wonderful Serials....Both these Serials Ramayan and Mahabharat are so awesome that it seems these characters in real are there in this Era too. I don't have Words and Numbers to Define how great these Serials are till today. Future Generations will love it....This is the real Knowledge, real Education for our future generations. Love them both. Jai Shree Ram, Jai Shree Krishna.
@@jaimataki2615 He didn't snatch anything. Guru Parashuram handed over the bow to Lord Rama and went for tapasya after he had recognised Lord Rama as Lord Vishnu.
दोस्तो, जब भी शरीर से आत्मा निकलेगी भले, कितने ही साल बित जाये. रामायण और महाभारत सिरीयल हमेशा याद आयेगी. शत शत नमन उन लोगोको जिन्होने इस सिरीयल के लिये अपना योगदान दिया.
रामानंद सागर जी और बी आर चोपड़ा दोनों द्वारा बनाया गया रामायण एवं महाभारत उत्कृष्ट रचना है जो आज तक भारतीय जनमानस में रमा हुआ है । ये दोनों ही धारावाहिक सभी हिन्दुओं को एकजुट करने के लिए पर्याप्त है।
Sirf hindu nahi mere dost ye granth toh sabhi ke liye hai, ye gyan ke bhandar hai. Mahabharat Bachpan mein dekhta tha ab lockdown mein shuru ki ab tak 55 episode dekh liye hai
Abe chutiye kya hindu hindu bol raha hai iske samwad dr rahi Masum raja sahab ne likhe aur kunti aur Arjun k kirdar do muslim play kar rahe hai chutiye mandbuddhi
@Manvi Chaudhry please dnt talk abt starplus Mahabharata. It was joke n a big insult to the original Mahabharata. The old Mahabharata was true to the original epic, bt the starplus one was like a masala bollywood movie where plot, actions n incidents were created by the serial's scriptwriter 😂😂😂 And Sourabh Jain looked like a charming romantic dashing lover but not so much the wise, knowledgeable, intelligent, mature politician that Krishna was at Hastinapur.
ru-vid.com/video/%D0%B2%D0%B8%D0%B4%D0%B5%D0%BE-5vM0d5JWFTg.html अगर आप तंत्र मंत्र में विश्वास रखते हो तो ऊपर दिए हुए लिंक को टच कीजिए और मेरे साथ जुड़ चाहिए सभी प्रकार का निशुल्क जानकारी मिलेगा
@Krupal Parekh best Mahabharata of this era is B.R chopra Mahabharata...starplus Mahabharata is nothing in front of this old masterpiece...actors of old Mahabharata are way better than any shit Mahabharata of EKTA Kapoor trp Mahabharata....
इतनी पराक्रमी योद्धा थे हमेशा धर्म और आचरण से युद्ध करते थे ऐसी मानवता ऐसी वीरता विश्व में कहीं देखने को नहीं मिलेगी भारत विश्व को आचरण और मनुष्यता का पाठ पढ़ा पढ़ाता है जय भारत जय हिंदुस्तान
जिसके अंदर महाभारत के गुणों का समावेश है वो निश्चित ही महान बनेगा । महाभारत के किरदारों को नमन । महाभारत देखने से सद्गुणों का वातावरण बनता है , जिससे मन सांत एवं सात्विक होता है । इसलिए हमेशा इसका आवरण बनाए रखना चाहिए ।
2:54 मन को चमत्कृत करने वाली बहुत अद्भुत बात कही आचार्य परशुराम जी आपने ; बचपन में जब 5 साल की उम्र में पहली बार ये सीरीयल महाभारत देखी थी तब परशुराम जी को एक बाबा जी समझता था मैं , इसे पितामह भीष्म का एक डेरे के बाबाजी से युद्ध समझा था .
Guru koi Vyakti ya Devta nahi hota Bure waqt me sahi rah Dikhane wala Hi humara Asli Guru hota he Ma k rup me Behen k rup me GF k rup me Bhai k rup me Pita k rup me Chhote bhai k rup me Uske aneko rup ho sakte he magar Gyan ek hi hota he
भीष्म पितामह और भगवान परशुराम के युद्ध का महर्षि वेदव्यास रचित महान महा काव्य महाभारत में विस्तार से वर्णन है| भीष्म पितामह ने अंबा को स्वयंवर में जीत कर हरण करने के पश्चात अपने क्षत्रिय धर्म के विरुद्ध जाकर अंबा से विवाह नहीं किया था| तब लाचार अंबा अपनी प्रार्थना लेकर भृगुवंश शिरोमणि नारायण आवेशवतार (व्याख्यान चित्र नम्बर 7) परशुराम जी के पास गई थीं| भगवान परशुराम ने अपने शिष्य भीष्म पितामह को अंबा से विवाह कर अपना क्षत्रिय धर्म निभाने का संकेत दिया, लेकिन प्रतिज्ञा से बंधे भीष्म पितामह इसे न मान सके| जिसके फलस्वरूप आरंभ हुआ भीष्म और परशुराम के बीच धर्मोच्चित महासंग्राम, जो 23 दिनों तक चला| इस युद्ध में आखिर कौन विजित हुआ था और कौन पराजित, ऐसे प्रश्न कोई संकुचित सोच का व्यक्ति ही उठा सकता है| अंबोपख्यान पर्व के 179वे अध्याय में लिखा है कि स्वयं भीष्म पितामह अपने गुरु परशुराम के चरण स्पर्श करने जाते हैं| ये संदर्भ जो लोगो के लिए प्रेरणा होनी चाहिए वो दुर्भाग्यवश कुंठित मानसिकता का परिचायक बन गया है| युद्ध बिभिन्न चरणों में होता है| परशुराम जी ने युद्ध के प्रारंभ में ही भीष्म पितामह को अपने बाहुबल से हरा दिया था, जैसा की निम्न दिए श्लोकों में वर्णित है| जिसके बाद उनके वसु भाई, उनकी माता गंगा के साथ ब्राह्मण का रूप धरकर उन्हें बचाने पहुंचे थे | यह प्रसंग उद्योग पर्व के अन्तर्गत अंबोपख्यान पर्व के 182वे अध्याय से है| और फिर स्वयं भीष्म पितामह स्वीकार करते हैं कि महाबली परशुराम से उनका जितना संभव नहीं| ये भीष्म पितामह की महानता थी तब भीष्म पितामह को उनके वसु भाईयो ने उन्हें अमोघ प्रस्प्वापनास्त्र अस्त्र दिया था | ये अस्त्र ब्रह्मशिर की भांति प्रबल था और श्रृष्टि का विनाश कर सकता था| भीष्म क्षत्रिय धर्म से बंधे थे| भगवान परशुराम अम्बा के वचन से बंधे थे| देवताओं और परशुराम के पितरों ने इस विनाश को रोकने के लिए दोनों योद्धाओं से विनती की| परन्तु दोनों ही नहीं माने उसके पश्चात स्वयं भीष्म पितामह की माता ने परशुराम जी से अपने शस्त्र छोड़ने की प्रार्थना की जिसके पश्चात भृगुनंदन नारायण अवतार परशुराम जी ने अपने शस्त्र छोड़ दिए| | ये भगवान परशुराम की महानता थी| जय पराजय में इस युद्ध को तौलने वाले कभी सनातन सभ्यता की गुरु-शिष्य परम्परा को नहीं समझे| घटिया प्रवृति के लोग इसमें ब्राह्मण क्षत्रिय के बीच फुट डालने का अवसर तलाश रहे हैं पर सनातन का जोड़ इतना कमजोर नहीं है| महर्षि वेदव्यास ने जब इस प्रसंग की व्याख्या की तब उनका आशय क्या ऐसी दुष्प्रचारित मानसिकता होगी? वो गुरु शिष्य के अनन्य प्रेम को दर्शा रहे थे| भगवान परशुराम और भीष्म पितामह के बीच का युद्ध, गुरु और शिष्य के बीच का युद्ध था। आजतक सनातन इतिहास में कहीं भी गुरु से शिष्य श्रेष्ठता नहीं दिखाता। शिष्य हमेशा गुरु का आदर करता है। युद्ध भी गुरु की आज्ञा से करता है| अर्जुन ने भी गुरु द्रोणाचार्य की आज्ञा लेकर ही उनपर शस्त्र उठाये| यही हमारी संस्कृति है। परशुराम ने अम्बा को वचन दिया था, भीष्म भी अपनी गुरु की आज्ञा से ही लड़े। इसमें श्रेष्ठता ढूढंने वाले उसी कुचक्र कुविचार का शिकार हैं, जिसने सनातन सभ्यता को चोट पहुँचाई है। गुरु शिष्य को शिक्षा ही इसलिए देता है क्योंकि शिष्य एक दिन गुरु से भी श्रेष्ठ और निपुण बने। एक गुरु के लिए वो सबसे आनंद-विभोर पल होता है।सिर्फ विकारों से शिकार व्यक्ति ही इसमें प्रतियोगीता ढूंढ़ सकता है। धिक्कार है ऐसे लोगों पर, जो सनातन संस्कृति की एकता के शल्य बने बैठे हैं। धिक्कार है| भीष्म पितामह एक महान प्रतिज्ञनिष्ठ वसु, अपना धर्म निभा रहे थे तो वहीँ भगवान परशुराम स्वयंभु नारायण अवतार, अपनी लीला में मग्न थे| भीष्म परशुराम युद्ध में श्रेष्ठ बस भारतवर्ष की युग युगांतर से चली आ रही गुरु शिष्य की परम्परा है| हमें सहयोग दीजिये अगर आप चाहते हैं कि हम इसी तरह देश विदेश के मुद्दे उठाकर सच का साथ देते रहें, तो आप भी मदद कर सकते हैं।
इच्छा मृत्यु का बरदान होते हुए भी भीष्म पितामह ने अपने गुरु का सम्मान किया वह प्रशंसनीय है,, परशुराम जी ने भी एक स्त्री के सम्मान के लिए युद्ध किया वह भी प्रशंसा योग्य हैं, धन्य हैं भारत भूमि,,जय हिन्द,, सतश्रीअकाल 🇮🇳🇳🇵
🕉 श्री महादेव के परम भक्त भगवान महर्षि श्री परशुराम जी, भगवान श्री हरि विष्णु के एक मात्र ऐसे अवतार हैं। जो आदिकाल से हर युग में ७सात चिरंजीवीयों में से एक हैं तथा तीनों लोकों में सदा के लिए धर्म की रक्षा हेतु अपने भक्तों का कल्याण करते हैं। एवं अन्य ६ छः चिरंजीवी #> महावीर श्री हनुमान जी, श्री लंकेश विभीषण जी, राजा श्री बलि जी, महर्षि श्री वेदव्यास जी, गुरु श्री कृपाचार्य जी एवं श्री अश्वथामा जी एवं इन सभी के साथ महर्षि श्री मार्कंडेय जी का स्मरण अति आवश्यक प्रमुख्य है। तथा इन सभी के स्मरण मात्र से ही मनुष्य को कल्याण की प्राप्ति होती है। क्योंकि यह सब अजय अमर है तथा इन्हें कोई भी परास्त नहीं कर सकता। , जय श्रीराम # जय भगवान महर्षि परशुराम जी। #🚩 'ॐ ब्रह्मक्षत्राय विद्महे क्षत्रियान्ताय धीमहि तन्नो राम: प्रचोदयात्।।' 'ॐ रां रां ॐ रां रां परशुहस्ताय नम:।।🙏🏻
Dwait Astroguru@ अपने बौखलाहट को अपने पास रखो और अपने अहंकार में किसी भी ऋषि मुनि एवं भगवान का अपमान करने से पहले सौ बार सोचो नहीं तो इसका परिणाम बुरा भुगतना पड़ेगा।
Dwait Astroguru क्षत्रिय उत्पन्न कहां से हुए थे मूर्ख पहले तो तू मुझे यह बता। अगर तुझे नहीं पता तो मैं तो यह बता देता हूं वह भगवान महर्षि श्री कश्यप जी के द्वारा उत्पन्न हुए थे। जिनकी तेरह न पत्नियां थी किसी के दैत्य पैदा हुए थे , किसी के मनुष्य , किसी के देवता, किसी के गंधर्व या किसी के नाग तथा क्षत्रीय वंश महर्षि कश्यप के द्वारा ही उत्पन्न हुए थे। अगर तूने शास्त्रों का अध्ययन नहीं किया है तो पहले शास्त्रों का अध्ययन कर उसके बाद कुछ बात कर।
Dwait Astroguru तेरे सहस्त्रार्जुन उर्फ सहस्त्रबाहु ने भगवान ब्रह्मदेव से शक्तियां पाकर अधर्म करने पर तुला हुआ था वह निर्दोषों को और महर्षि ब्राह्मणों को उनके यज्ञ से वंचित कर देता था तथा अपने आप को भगवान समझने लगा था। इसीलिए भगवान विष्णु ने भगवान परशुराम के रूप में इस पृथ्वी पर उसका एवं दुष्टों क्षत्रियों का नाश करने के लिए जन्म लिया।, जय भगवान परशुराम जी
Dwait Astroguru@ @World Tour TV छत्रिय उत्पन्न कहां से हुए थे मूर्ख पहले तो तू मुझे यह बता। अगर तुझे नहीं पता तो मैं तो यह बता देता हूं वह भगवान महर्षि श्री कश्यप जी के द्वारा उत्पन्न हुए थे। जिनकी तेरे पत्नियां थी किसी के दैत्य पैदा हुए थे , किसी के मनुष्य , किसी के देवता, किसी के गंधर्व या किसी के नाग सूर्यवंश एवं क्षेत्रीय वंश महर्षि कश्यप के द्वारा ही उत्पन्न हुए थे। अगर तूने शास्त्रों का अध्यन नहीं किया है तो पहले शास्त्रों का अध्ययन कर उसके बाद कुछ बात कर।
क्या अद्भुत भारतीय संस्कृति थी। शिष्य गुरु से विद्या प्राप्त करने के बाद भी दम्भी नहीं था। राज्याधिकारी होकर भी पैदल गुरु के प्रति सम्मान था। आज तो विद्यार्थी छात्र-नेता भी बन गया तो गुरु की छाती पर जूतों सहित चढ़ना चाहता है। और नेता बन गया तो क्या कहने- गुरुजन ही जूता हो जाते हैं। भारतीय समाज तो और चार कदम आगे है।
दादा भीष्म पिता मह के दरबार में सदैव कृपाचार्य द्रोणाचार्य जैसे ब्राह्मणों का सदैव परिवार की तरह सम्मान रहा ब्राह्मण सदैव से देशभक्त क्षत्रियों का मित्र रहा है और अत्याचारी घमंडी क्षत्रियों के लिए परशुराम है
भीष्म पितामह की जय यह वह वीर है जिसका जीवन अंतराल समय के लिए भी गर्व है मुझे गर्व है कि मैंने जिस देश में जन्म लिया उस देश में भीष्म पितामह जैसे वीरों ने भी जन्म जय हिंद
IT WAS 1988 WHEN THIS GREATEST MEGA SERIAL WAS TELECASTED . I WATCHED EVERY EPISODES. I BECAME FAN OF MUKESH KHANNA !!! I BEGAN TO IMITATE MUKESH JI. I GOT FAME . THIS SERIAL IS IMMORTAL ! 🌎🌍
Background music gives the goosebumps and the dialogue ye bhumi mera rath hai awesome level of dialogues na hi ekta Kapoor ki Mahabharat jaise low level ke dialogues hai.
🕉 महादेव के परम भक्त भगवान महर्षि श्री परशुराम जी, भगवान श्री हरि विष्णु के एक मात्र ऐसे अवतार हैं। जो आदिकाल से हर युग में ७सात चिरंजीवीयों में से एक हैं तथा तीनों लोकों में सदा के लिए धर्म की रक्षा हेतु अपने भक्तों का कल्याण करते हैं। एवं अन्य ६ छः चिरंजीवी #> महावीर श्री हनुमान जी, लंकेश श्री विभीषण जी, राजा श्री बलि जी, महर्षि श्री वेदव्यास जी, गुरु श्री कृपाचार्य जी एवं श्री अश्वथामा जी एवं इन सभी के साथ महर्षि श्री मार्कंडेय जी का स्मरण करना अति आवश्यक प्रमुख्य है। तथा इन सभी के स्मरण मात्र से ही मनुष्य को कल्याण की प्राप्ति होती है। क्योंकि यह सब अजय अमर है तथा इन्हें कोई भी परास्त नहीं कर सकता। , जय श्रीराम # जय भगवान महर्षि परशुराम जी। #🚩 'ॐ ब्रह्मक्षत्राय विद्महे क्षत्रियान्ताय धीमहि तन्नो राम: प्रचोदयात्।।' 'ॐ रां रां ॐ रां रां परशुहस्ताय नम:।।🙏🏻
Apne guru se vijay bhaw ka ashirvaad lene se hi bhisma pitamah ji us time hi jit gaye the mere favorite character the voo😘😘😘😘🚩🚩🚩🚩🚩🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️ Aur me bhi ek rajput(shatri) ho