जिणरा कंठ सदा मोस्यां, सरकारां दैवे झांसा है ।
तरसे अब राज मानता नें, आ राजस्थानी भाषा है ।।
जिण बखत देश आजाद हुयो, भासावां सारी लड़गी ही ।
हिन्दी ने मान दिरावण री, जद बात बीच में अड़गी ही ।
कड़की तमिल तेलुगू कन्नड़, मलयालम आडी ऊबी ही ।
हिन्दी रो मन में लियां हेत, भारत माँ चिंता डूबी ही ।
दिखणादी बोल्यां ताके ही, जद हिन्दी अंश मिटावण नें ।
न्हानकड़ी हिन्दी अरज करी, दादी सुं प्राण बचावण नें ।
उण बखत जीभ रे दे ताळो, कुर्बान करी निज आसा है ।
हिन्दी नें राखण आप मिटी, आ राजस्थानी भाषा है ।1।
श्री लालदासजी मेवाती, ढूंढाड़ी दादू दाखी है ।
वागड़ री मीरां ही गवरी , बां लिखी वागड़ी साखी है ।
कवि सुर्यमल्ल हाड़ौती में, साहित रो सूरो बाज्यो हो ।
ई मारवाड़ी सुँ चहुँकूंटा, डिंगल रो डंको गाज्यो हो ।
इण माँय शेखाटी सौरम है, इण माँय बागड़ी बलखाती ।
इण माँय प्रताप रे हेले सुं, मेवाड़ी भीली मदमाती ।
जिणभाँत जगत सै भासा में, उपबोल्यां अर उपभासा है ।
उणभाँत बोलियां सुं समृद्ध, आ राजस्थानी भाषा है ।2।
जै कोनीं ही लिपि रजथानी, तद कांकर ग्रंथ रच्योड़ा है ।
किण माँय हूवतो पत्रचार, किण मांहि लेख खुद्योड़ा है ।
किण माँय हुवती ही संधियाँ, किण मांहि सनद जागीरां ही ।
किण माँहि लिखता संतवाणी, किण माँहि लिखती मीरां ही ।
किंण माँय राज रा परवाना, किंण माँय राज रो हो लेखो ।
किंण माँय कचेड़्यां न्याव कियो, ओ कूप मंडूकां थें देखो ।
इण देवनागरी सुं पेलां, जिण मांही मँडिया रासा है ।
मुड़िया अर महाजनी लिपि में, आ राजस्थानी भाषा है ।3।
रचनावां लेग्या गोरख री, आदि सुं थें तो आखी ही ।
रासौ भी लेग्या हिन्दी में, जो राजस्थानी साखी ही ।
थें लेग्या कुलपति वृंद ग्वाल, रैदास और आसाइत नें ।
मीरां दादू अर पयहारी, जैनां रे सगळे साहित नें ।
जानकवि अर सुंदरदास भी, खोस कियो है घण खेलो ।
थें लेग्या सुरति प्रतापसाहि, अठछापी किसनो अलबेलो ।
ऐ हिन्दी रो आधार सभी, जितरा भी साहित रासा है ।
बां ग्रंथां वाळा छंद कहे, आ राजस्थानी भाषा है ।4।
म्हें नहीं विरोधी हिन्दी रा, हिन्दी भारत री बिंदी है ।
म्हें चावां हिन्दी उत पूगे, जित अबलग राज अहिन्दी है ।
हिन्दी सुं म्हांनें घणों हेत, हिन्दी है मासी मतवाळी ।
पण मायड़ नें म्हें किम भूलां, आ भासा म्हारी अंकपाळी ।
जै मान करां म्हें मायड़ रो, मासी क्यूं हुवै उदासी है ।
माता तो मासी सुं बढकर, सनमान तणीं अभिलाषी है ।
अब सार लैवसी बैनड़ री, मासी सुं आ ही आसा है ।
हिन्दी रो हरपल मान कियो, आ राजस्थानी भासा है ।5।
आ तरसे है आजादी सुं, पण राज मानता नीं देवे ।
इणरी ही धरती इण भासा, अब शपथ समारोह नीं रैवे ।
इण मांय छपे नीं पोथ्यां है, अखबार छपे नीं इण मांही ।
अब सौ पचास ही लेखक है,बे लिखसी साहित कद तांही।
नीं हुवै पढायां इण माँही, नीं हुवै योजना सरकारी ।
आ एक सदी सुं दुख झेल्या, पण आज बुढ़ापा में हारी ।
अब काच छायगो आंख्यां में, अर दिखे न एको आसा है ।
माँचो झाल्योड़ी मरणासन, आ राजस्थानी भासा है ।6।
© सत्येंद्र सिंह चारण झोरड़ा
5 окт 2024